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Wednesday, February 6, 2008

ऐ रंगरेज .....

ऐ रंगरेज ..... सब रंग हैं न तेरे पास ....... भर दो पीत मेरे बचपन को बाबुल के संग जब मैं रहती हूँ इठलाती इत उत जब फिरती हूँ रोती माँ है मैं जब गिरती हूँ फिर बाबु जी की गोदी होती हूँ ऐ रंगरेज ..... भर दो नील मेरे अल्हर्पण को जब मैं तितली सी उड़ती हूँ ले बलाएँ दादी कहती है कैसी सुंदर नील परी हूँ ऐ रंगरेज ..... भर दो गुलाबी मेरे यौवन को जब मैं यादों का पनघट हूँ टूटे फूटे सपनों का अम्बर हूँ धुंधली भूली टूटी खंडहर हूँ ऐ रंगरेज ..... हर लो न यह कला रंग मैं फिर जीना चाहती हूँ वह बचपन के छोटे मोटे पल जब दुनिया अच्छी है मैं भोली हूँ ..... ऐ रंगरेज ..... दे दो न मुझको यह हरा रंग बोलो न ..... क्या दोगे मुझको अपना इन्द्रधनुष ... ऐ रंगरेज ..... कीर्ती वैद्य

4 comments:

Reetesh Gupta said...

सुंदर भाव अच्छी कविता ...बधाई

Parvez Sagar said...

आपकी इस रचना मे भी रंगों की कमी नही है..... ईश्वर आपके जीवन मे भी सभी रंग भरें बस यही कामना है..... उम्मीद है इंद्रधनुष आपका ही होगा....... Keep it up.

Asha Joglekar said...

कीर्ती जी बहुत खूबसूरत कविता, जीवन के सारे रंग छलकाती हुई ।

vinodbissa said...

अनायास ही ''रंगकर्मी'' में आपकी रचना ''ऐ रंगरेज .....'' पढने को मिली अच्छा लगा॰॰॰॰॰॰
बहुत ही शानदार कविता लिखी है आपने॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ आपको ढेरों बधाई॰॰॰॰एवं शुभकामनायें॰॰॰॰॰॰॰॰

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