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Wednesday, November 26, 2008

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई; सपनो की आंखो से देखा तो, तुम थी, मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी, उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए, एक उम्र भर के लिए ... आज कही खो गई थी, वक्त के धूल भरे रास्तों में ...... शायद उन्ही रास्तों में .. जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो.... क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं कि, परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते..... विजय कुमार M : 09849746500 E : vksappatti@rediffmail.com B : www.poemsofvijay.blogspot.com

3 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है।

आज कही खो गई थी,
वक्त के धूल भरे रास्तों में ......
शायद उन्ही रास्तों में ..
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो....

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

bahut hee bhavpuran. narayan narayan

RADHIKA said...

बहुत ही सुंदर रचना

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