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Sunday, November 30, 2008

दे जाना चाहता हूँ तुम्हे

ऊब और उदासी से भरी इस दुनिया में पांच हंसते हुए सालों के लिए देना तो चाहता था तुम्हे बहुत कुछ प्रकृति का सारा सौंदर्य शब्दों का सारा वैभव और भावों की सारी गहराई लेकिन कुछ भी नहीं बच्चा मेरे पास तुम्हे देने के लिए फूलों के पत्तों तक अब नहीं पहुंचती ओस और पहुँच भी जाए किसी तरह बिलकुल नहीं लगती मोतियों सी समंदर है तो अभी भी उतने ही अद्भुत और उद्दाम पर हर लहर लिख दी गयी है किसी और के नाम पह्दों के विशाल सीने पर अब कविता नहीं विज्ञापनों के जिंगल सजे हैं खेतों में अब नहीं उगते स्वप्न और न बंदूकें ... बस बिखरी हैं यहाँ-वहां नीली पद चुकीं लाशें सच मनो इस सपनीले बाज़ार में नहीं बचा कोई दृश्य इतना मनोहारी जिसे दे सकूँ तुम्हारी मासूम आँखों को नहीं बचा कोई भी स्पर्श इतना पवित्र जिसे दे सकूँ तुम्हे पहचान की तरह बस समझौतों और समर्पण के इस अँधेरे समय में जितना भी बचा है संघर्षों का उजाला समेटकर भर लेना चाहता हूँ अपनी कविता में और दे जाना चाहता हूँ तुम्हे उम्मीद की तरह जिसकी शक्ल मुझे बिलकुल तुम्हारी आँखों सी लगती है

अशोक कुमार पाण्डेय

http://asuvidha.blogspot.com

Saturday, November 29, 2008

चुनावी हवा बह रही है ...

राजनीत की रसोई में नित बनते नए पकवान चुनावी हवा बह रही है सुनो नेताओं के गुणगान सुनो नेताओं के गुणगान जो लगे हैं देश को बांटने गली गली में घूम रहे हैं सिर्फ़ वोटरों को आंकने कह सुलभ कविराय आज सुनलो सारे उम्मीदवार सीधे नरक में जाओगे जो चुनोगे जाती-धर्म की दीवार ॥ सुलभ पत्र - Hindi Kavita Blog

शहीद हूँ मैं .....

दोस्तों , मेरी ये नज़्म , उन सारे शहीदों को मेरी श्रद्दांजलि है , जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर , मुंबई को आतंक से मुक्त कराया. मैं उन सब को शत- शत बार नमन करता हूँ. उनकी कुर्बानी हमारे लिए है . शहीद हूँ मैं ..... मेरे देशवाशियों जब कभी आप खुलकर हंसोंगे , तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी नही हँसेंगे... जब आप शाम के अपने घर लौटें ,और अपने अपनों को इन्तजार करते हुए देखे, तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी भी मेरा इन्तजार नही करेंगे.. जब आप अपने घर के साथ खाना खाएं तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... जो अब कभी भी मेरे साथ खा नही पायेंगे. जब आप अपने बच्चो के साथ खेले , तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... मेरे बच्चों को अब कभी भी मेरी गोद नही मिल पाएंगी जब आप सकून से सोयें तो मेरे परिवार को याद कर लेना ... वो अब भी जागते है ... मेरे देशवाशियों ; शहीद हूँ मैं , मुझे भी कभी याद कर लेना .. आपका परिवार आज जिंदा है ; क्योंकि , आज मैं नही हूँ....

यह कैसी बहस?

एक ब्लॉग पर टिप्पणियों के माध्यम से यह बहस चल रही है कि आतंकियों की गोलियों का शिकार बने एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद कहलाने का हक रखते हैं या नहीं? पूरी बहस महज बौद्धिकता के प्रदशॆन के लिए मौत के बाद किसी के चरित्रहनन जैसा ही है? शहीद नरकगामी नहीं होते..पर टिप्पणियों को देखकर लगता है, जैसे खुद को प्रबुद्ध साबित करने के लिए कुछ लोग, मर चुके कुछ लोगों की चीर-फाड़ में लगे हों। करकरे क्या किसी भी आदमी के अतीत के सभी पन्ने सुनहरे ही नहीं होते। कुछ पन्नों पर काली स्याही से लिखी कुछ इबारतें भी होती हैं। टिप्पणियां करनेवाले भी अपने अंदर टटोलकर देखें तो एेसा ही पाएंगे। घर बैठकर जुगाली करना बहुत आसान होता है। आतंकी हमले के बीच सिफॆ छुपने की बात सोचने वाले लोग ही किसी की मौत पर अफसोस प्रकट करने की बजाय तंज कर सकते हैं। वरना इतना तो सच है ही कि हेमंत करकरे हमले के बाद तुरंत अपने दायित्वों का निवॆहन करने निकल पड़े थे। ड्राइंगरूम में अलसाए हुए टीवी नहीं देख रहे थे। साध्वी की गिरफ्तारी जायज है या नाजायज यह अदालत के सिवा कोई और कैसे तय कर सकता है? यह गलत भी हो तो केवल साध्वी को गिरफ्तार भर कर लेने से उनका शहीद कहलाने का हक नहीं छिन जाता। वैसे तो आत्मप्रचार के लिए जानबूझकर किसी की मौत पर मजमा लगाना ही जायज नहीं माना जा सकता। कोई शहीद कहा जाएगा या नहीं यह तो बाद की बात है। अपनी संस्कृति और परंपरा तो यही कहती है कि हम किसी की मौत के बाद उसके बारे में अच्छा ही अच्छा सोचते और कहते हैं। कम से कम इस परंपरा का ख्याल तो रखा ही जाना चाहिए। वैसे भी इस पूरी बहस से नुकसान भले ही हो, किसी का भला होते तो नहीं दिखता।

आतंकंवेशन

क्या कारण है , आतंकवाद का ? अज्ञानता ,धर्मान्धता या फिर अन्याय !! क्या कारण है उनके निर्भीक होने का ? क्योंकि जान देके ही हो सकती है, उनकी आय !! उनके लिए जीना मरने से दुस्कर क्यों है ? क्योंकि उन्हें लगता है , कि उन्हें नहीं मिल सकता है न्याय !! आतंकवाद के पीछे बर्बाद राष्ट्र हैं , और उनके शासक राजनीती खेल रहें हैं !! इन राष्ट्रों के नागरिक पैदा होने पर रो रहें है , और एक रोटी के लिए खून कि होली खेल रहें हैं !! बिहार बंगाल का आतंक नक्श्ली है , बाहर का आतंक ही असली है , यह मानदंड दोहरा है , हमारी आंखों पर मोतियाबिंद धरा है !! घर के हालत शासनकर्ताओं मत बिगड़ने , जो अमेरिका ने जग में किया महारास्ट्र को भारत में न करने दो!! आतंकवाद के अंत कि अब एक ही गुंजाईश है , हर कोई खुश रहे जहाँ में , सबके पास कुछ खोने को हो; अल्लाह -ताला से यही गुजारिश है !! सोचता हूँ ,ऊपरवाला मुझे सुन रहा होगा , कदम सही बढ़ाना होगा तभी सब ठीक होगा !! ~विनयतोष मिश्रा

Friday, November 28, 2008

काले कपोत

किसी शांतिदूत की सुरक्षित हथेलियों में उन्मुक्त आकाश की अनंत ऊँचाइयों की निस्सीम उडान को आतुर शरारती बच्चों से चहचहाते धवल कपोत नही हैं ये न किसी दमयंती का संदेशा लिए नल की तलाश में भटकते धूसर प्रेमपाखी किसी उदास भग्नावशेष के अन्तःपुर की शमशानी शान्ति में जीवन बिखेरते पखेरू भी नही न किसी बुजुर्ग गिर्हथिन के स्नेहिल दाने चुगते चुरगुन मंदिरों के शिखरों से मस्जिदों के कंगूरों तक उड़ते निशंक शायरों की आंखों के तारे बेमज़हब परिंदे भी नही ये भयाकुल शहर के घायल चिकित्सागृह की मृत्युशैया सी दग्ध हरीतिमा पर निःशक्त परों के सहारे पड़े निःशब्द विदीर्ण ह्रदय के डूबते स्पंदनों में अँधेरी आंखों से ताकते आसमान गाते कोई खामोश शोकगीत बारूद की भभकती गंध में लिपटे ये काले कपोत ! कहाँ -कहाँ से पहुंचे थे यहाँ बचते बचाते बल्लीमारन की छतों से बामियान के बुद्ध का सहारा छिन जाने के बाद गोधरा की उस अभागी आग से निकलबडौदा की बेस्ट बेकरी की छतों से हो बेघर एहसान जाफरी के आँगन से झुलसे हुए पंखों से उस हस्पताल के प्रांगन में ढूँढते एक सुरक्षित सहारा शिकारी आएगा - जाल बिछायेगा - नहीं फंसेंगे का अरण्यरोदन करते तलाश रहें हो ज्यों प्रलय में नीरू की डोंगी पर किसी डोंगी में नहीं बची जगह उनके लिए या शायद डोंगी ही नहीं बची कोई उड़ते - चुगते- चहचहाते - जीवन बिखेरते उजाले प्रतीकों का समय नहीं है यह हर तरफ बस निःशब्द- निष्पंद- निराश काले कपोत ! ( यह कविता अहेमदाबाद के हास्पीटल में हुए विश्फोटों के बाद लिखी थी ... फिर एक हादसा... कवि और कर भी क्या सकता है.... या कर सकता है ? )

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कितनी अजीब बात है

कितनी अजीब बात है , बॉम्बे में धमाके न हुए जैसे सब को अपने अपने ब्लॉग पर लिखने का सामान मिल गया और इस में हम भी शामिल है ,इस बात से इनकार नही कोई आक्रोश करता है ,कोई हमदर्दी ,कोई शहीदों पर ताने कसता है ,कोई सरकार को गाली देता है क्या है ये सब ? सब को हक़ है अपने ब्लॉग पर अपने विचार रखने का मगर खुदा के लिए किसी शहीद का मजाक न बनाये हो सके उसके घर जाके सांत्वना दे कुछ निधि जमा करिएँ जिससे के उनके घरवालों को मदत मिले ली होगी किसी शहीद ने रिश्वत अ नही भी ,वो लाख बुरा इंसान सही ,मगर वो आज खून से धुला है अपनी जान दी है उसने देश के लिए हम सब के लिए हम में तो हिम्मत नही है न की गोली चलाये या गोली का सामना करे फिर जो ये कर सके उसका आदर तो हो

भारत और आतंकवाद

कभी घुसपैठ तो कभी जेहाद और आतंकवाद लगे हैं सबके सब करने भारत को बरबाद भारत को बरबाद रोज हो रहा ख़ूनी खेल ढुलमुल विदेश नीति की देखो रेलमपेल कह सुलभ कविराय क्षमादान अब त्यागो समय रहते आतंकवाद को जड़ से मिटादो

आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले....

आज सुबह देखा तो मुबई की घटनाओ ने दिल दहला दिया . मुझे ये बात समझ नही आती है कि कोई भी आतंकवादी , हमारे जैसा सामर्थ्यवान देश में कैसे बार - बार चले आतें है , शायद दुनिया में भारत ही अकेला ऐसा देश है जो इतना सामर्थ्यवान होने के बावजूद इन हमलों को रोक नही पाता है. अच्छा ,एक बात और ..; अगर बाहर के आतंकवादी हमलों से हमारा पेट नही भरता , जो आपस में ही धर्म, भाषा, जाती , इत्यादि के नाम पर लड़ लेते है . और इन सारी बातों में सिर्फ़ बेक़सूर लोग मरते है ... मेरा देश अब पूरी तरह से banana country बन गया है ... किसी को क्या दोष दे... ...आईये दोस्तों मेरे साथ प्रार्थना करें... आज मेरा देश जल रहा है , कोई तो मेरे देश को बचा ले. कौन है ये ? कोई हिंदू ,कोई मुस्लिम, कोई सिख या कोई ईसाई ; क्या इनका कोई चेहरा भी है ? क्या ये इंसान है .... क्यों ये मेरे देश की हत्या करतें है , क्यों ये मेरी माँ का सीना छलनी करतें है .. हे प्रभु ; कोई कृष्ण ,कोई बुद्ध ,कोई नानक , कोई ईसा ; पैगम्बर बन कर मेरे देश आ जाए .. मेरे देश को जलने से बचाए . मेरे देश को मरने से बचाए.. आओं दोस्तों , मिल कर हम सब, इंसानियत का धर्म आपस में फैलाएं मिल कर हम सब मेरे देश को बचाएँ ... मेरे देश को बचाएँ

"दोषी कौन"

"दोषी कौन" मैं ताज ..... भारत की गरिमा शानो शौकत की मिसाल शिल्प की अद्भुत कला आकाश की ऊँचाइयों को चूमती मेरी इमारतें , शान्ति का प्रतीक ... आज आंसुओं से सराबोर हूँ मेरा सीना छलनी जिस्म यहाँ वहां बिखरा पढा आग की लपटों मे तडपता हुआ, आवाक मूक दर्शक बन अपनी तबाही देख रहा हूँ व्यथित हूँ व्याकुल हूँ आक्रोशित हूँ मुझे कितने मासूम निर्दोष लोगों की कब्रगाह बना दिया गया... मेरी आग में जुल्स्ती तडपती, रूहें उनका करुण रुदन , क्या किसी को सुनाई नही पढ़ता.. क्या दोष था मेरा .... क्या दोष था इन जीवित आत्माओं का ... अगर नही, तो फ़िर दोषी कौन.... दोषी कौन, दोषी कौन, दोषी कौन?????

Thursday, November 27, 2008

इश्क की लत

कहते है आदते बदली जा सकती है जो कोई जिद्द पे उतर आए ये नामुमकिन है एक बार गर किसी को इश्क की लत लग जाऐ

सबसे बुरे दिन

सबसे बुरे दिन नहीं थे वे जब घर के नाम पर चौकी थी एक छह बाई चार की बमुश्किलन समा पाते थे जिसमे दो जिस्म लेकिन मन चातक सा उड़ता रहता था अबाध! बुरे नहीं वे दिन भी जब ज़रूरतों ने कर दिया था इतना मजबूर कि लटपटा जाती थी जबान बार बार और वे भी नहीं जब दोस्तों की चाय में दूध की जगह मिलानी होती थी मजबूरियां कतई बुरे नहीं थे वे दिन जब नहीं थी दरवाजे पर कोई नेमप्लेट और नेमप्लेटों वाले तमाम दरवाजे बन्द थे हमारे लिये इतने बुरे तो खैर नहीं हैं ये भी दिन तमाम समझौतों और मजबूरियों के बावजूद आ ही जाती है सात-आठ घण्टों की गहरी नींद और नींद में वही अजीब अजीब सपने सुबह अखबार पढ़कर अब भी खीजता है मन और फाइलों पर टिप्पणियाँ लिखकर ऊबी कलम अब भी हुलस कर लिखती है कविता। बुरे होंगे वे दिन अगर रहना पड़ा सुविधाओं के जंगल में निपट अकेला दोस्तों की शक्लें हो गई बिल्कुल ग्राहकों सीं नेमप्लेट के आतंक में दुबक गया मेरा नाम नींद सपनों की जगह गोलियों की हो गई गुलाम और कविता लिखी गई फाईलों की टिप्पणियांे सी। बहुत बुरे होंगे वे दिन जब रात की होगी बिल्कुल देह जैसी और उम्मीद की चेकबुक जैसी वि’वास होगा किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी का विज्ञापन खुशी घर का कोई नया सामान और समझौते मजबूरी नहीं बन जायेंगे आदत। लेकिन सबसे बुरे होंगे वे दिन जब आने लगेगें इन दिनों के सपने!

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Wednesday, November 26, 2008

परायों के घर

कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई; सपनो की आंखो से देखा तो, तुम थी, मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी, उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था, मैंने तुम्हारे लिए, एक उम्र भर के लिए ... आज कही खो गई थी, वक्त के धूल भरे रास्तों में ...... शायद उन्ही रास्तों में .. जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो.... क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं कि, परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते..... विजय कुमार M : 09849746500 E : vksappatti@rediffmail.com B : www.poemsofvijay.blogspot.com

Tuesday, November 25, 2008

घोटाला हो रहा है

घोटाला हो रहा है !
बैंकों में रहने वाला पैसा तकिये के अन्दर काला हो रहा है . 
रातों में भी चलने वाले कारखानो पर ताला हो रहा है .
अब नथ्थू हलवाई विदेशी शर्मा जी का साला हो रहा है 
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है ! 
बेरोजगार बिना रोजगार के जबरन उद्योगपति हो गए 
जो सच्चे कर्मों से उद्योगपति हुए थे वह रोडपति हो गए  
भाग्य को धन से बड़ा मान अमीर गरीबों के दम्पति हो गए 
शेयर के चक्कर में सपनों में जीने वाले दुर्गति को गए  
एक बार फिर से कापित्लिस्म का मुंह कला हो रहा है 
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है!
 
आज कर्ज में डूबा है हर बुढ्ढा हर बच्चा 
बड़े कारोबारी भी खा गए हैं गच्चा  
फिर से सुनने मैं आया स!दा जीवन सच्चा 
उद्योगपति बेरोजगार को लगने लगा उचक्का  
सपनों में भी सपनों पर ताला हो रहा है  
पता नहीं पहले हुआ था या अब कुछ घोटाला हो रहा है ! 
~विनयतोष मिश्रा

Monday, November 24, 2008

इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं

मालेगांव धमाके की जांच कर रही एटीएस बड़ी जल्दबाजी में है। रोज-रोज नए-नए खुलासे कर रही है। ऐसा जताया जा रहा है जैसे एटीएस बड़ी समझदारी के साथ गुत्थी सुलझाती जा रही है। हर खुलासे को मीडिया मैं जोर-शोर से उछाला जा रहा है। एटीएस और मीडिया की भी भाषा इन खुलासों को लेकर ऐसी ही होती है, जैसे ki बिना मुकदमा चलाए, बिना अदालत ka फैसला आए- निर्णय सुना दिया गया हो। एटीएस ने जिसकa नाम भर ले लिया वह अपराधी। समझ में नहीं आता ki एटीएस खुलासा करने ke मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों बरत रही है? हो सकता है, एटीएस जो खुलासे कर रही है-सच हों। उसke पास सुबूत हों, तथ्य हों। पर इन तथ्यों और सुबूतों को अदालत में परखा जाना तो अभी बाकी है। अदालत में यह तय होना अभी बाकी है ki क्या वास्तव में ये सारे लोग आतंकी हरकतों यानी धमाको में लिप्त हैं, जिनका नाम एटीएस ले रही है। lekin इससे पहले ही पूरी दुनिया में यह संदेश जा chuka है ki भारत में हिंदुओं ने भी आतंकवादी संगठन बना लिया है। इस आतंकी संगठन से जुड़े लोग धमाके कर रहे हैं। ऐसा है या नहीं, इसके पक्ष-विपक्ष में तमाम तर्क दिए जा रहे हैं। इन बातों को छोड़ दें तो जब तक अदालत ka फैसला आएगा पूरी दुनिया में यह बात स्थापित हो चुकी होगी िक भारत के हिंदू जवाबी आतंकी कार्रवाई कर रहे हैं। मान लिया जाए िक अदालत एटीएस द्वारा बताए जा रहे सभी आरोपियों को निर्दोष मान ले, तब क्या यह स्थापना खत्म की जा सकेगी? क्या तब हिंदू आतंकवादी शब्द, जिसे मीडिया में जोर-शोर से उछाला जा रहा है, खत्म हो जाएगा? या यह धब्बा तब भी बना रहेगा। इसके उलट यह मान लें िक अदालत में साबित हो जाता है िक एटीएस ·के द्वारा बताए गए और गिरफ्तार सभी लोग धमाकों में शामिल रहे हैं। तब भी कुछ सवाल हैं-क्या गिरफ्तार kiye गए पुरोहित, साध्वी, दयानंद जैसे चंद लोग पूरे हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं? आखिर हिंदू आतंकवादी क्यों, सिर्फ अपराधी या आतंकवादी क्यों नहीं? हां, यही आपत्ति मुस्लिम आतंकवादी कहने पर भी लागू होना चाहिए। और ऐसी आपत्तियां पूरे विश्व में जोर-शोर से उठती भी रहती हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है ki जब कश्मीर के मुस्लिम युवक kiसी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देते हैं तो समझदार माने/कहे जाने वाले लोग उसे भटके हुए चंद युवकों की कार्रवाई बताते हैं। आश्चर्य होता है ki वही समझदार लोग हिंदू आतंकवादी शब्द पर आपत्ति नहीं करते। एटीएस की थ्योरी सही भी हो तो यहां तो सचमुच चंद भटके हुए लोग हैं। एक जमाना था जब भारत में होने वाली हर आतंकी कार्रवाई के लिए पड़ोसी देश को जिम्मेदार ठहराया जाता था। बात-बात पर उसे आतंकियों को संरक्षण देने वाला देश कहा जाता था। हिंदू आतंकवादी शब्द को आज जिस जोर-शोर से प्रचारित kiya जा रहा है, कल को कोई भी पड़ोसी देश अपने यहां होने वाली आतंकी गतिविधियों के लिए हमें जिम्मेदार ठहराने लगे, तो क्या होगा? हमें सोचना ही होगा ki हमारी अभी ki जल्दबाजी के ऐसे भी परिणाम हो सकते हैं। खासकर मीडिया, अदालत के फैसले के पहले ही फतवा जारी करने की अपनी आदत से बाज आए। िकसी भी जांच एजेंसी की बातों को नतीजे जैसा प्रचारित करने की मीडिया की आदत पर रोक तो लगनी ही चाहिए। अन्यथा होता यह है ki आरोप को ही, जांच एजेंसी की बातों के आधार पर खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया चीख-चीखकर सत्य और तथ्य ka रूप दे देता है। दुखद तो यह भी है ki मीडिया में आरोपों की बात जितनी जोर-शोर से आती है, अदालत में आरोप खारिज होने पर मीडिया की आवाज उतनी ही धीमी होती है। इतनी धीमी ki अधिसंख्य लोग तो उसे सुन भी नहीं पाते।

Thursday, November 20, 2008

गुनाह

खुदा से कहते है बंदे तुझ से मोहोब्बत है बेपनाह इन्सा को इंसानियत से इश्क़ क्यूँ हो जाता गुनाह

"कभी कभी"

"कभी कभी"
दिल मे बेकली हो जो, " कभी कभी" क्यूँ शै बेजार लगे हमे सभी कोई तम्मना भी न बहला सकी, क्यूँ हर शाम गुनाहगार लगे" कभी कभी..........."

Wednesday, November 19, 2008

बड़ी मछली छोटी मछली

बहुत दिनों से मेरे मन में एक बात आ रही थी की क्या वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? खैर सबसे पहले सभी ब्लोगर भाइयों को बंडमरु का नमस्कार । देर से ही सही दुरुस्त आए तो काफी आच्छा होता है काफी दिनों बाद आ रहा हूँ मैं । तो मै आपनी बात पर आता हूँ की क्या वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? कहानी कुछ यु शुरू होती है मैं अपने ऑफिस में काम कर रहा था की मेरे सर आए और कुछ बडबडाते हुए से आए । और कहने लगे की सभी जगह एक ही हाल है हर बड़ी मछली छोटी मछली को खाने के लिए आतुर होती है । चुकी हमारे वो बॉस है मैं उनसे कुछ पूछ नही सकता लेकिन बातचीत से लगा की उनके बॉस ने उनको दे दिया है खाने पिने भर ........ हालाँकि वो भी यानि मेरे बॉस भी कुछ कम नही है लेकिन अपने पर बीतती है तब इसका आभास होता है। इधर कुछ महीनो से मैं आपने कार्यक्रम में ब्यस्त था हम लोग भोजपुर जिले में एक कार्यक्रम करते है भोजपुर बल महोत्सव जिसमे पुरे जिले से ५००० से ७००० बच्चें भाग लेतें हैं । यह कार्यक्रम जिले स्तर का प्रतियोगिता होता है। इसी कार्यक्रम में ब्यस्त होने के करण मैं ब्लॉग पर नही आ सका। इस कार्य क्रम में मैं और मेरे तिन दोस्तों के सात भी वही हुआ । इस कार्य क्रम को कराने वाली संस्था में मै भी एक आदना सा सदस्य हूँ। खैर मैं अपने ऑफिस में अपने सहकर्मी से इस बाबत बात किया की वाकई में बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है ? तो उसने कहा की बड़ी मछली को आजकल सोचना पड़ सकता है छोटी मछली को निगलने के लिए । वो पुराने ज़माने की बात है जब बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती थी। अब देखते है आप लोगो की क्या राय हैं ।

Monday, November 17, 2008

"कतरा कतरा"

"कतरा कतरा" कतरा कतरा दरया देखा , कतरे को दरया में न देखा , लम्हा लम्हा जीवन पाया, जीवित एक लम्हे को न पाया, आओ हम दोनों मिलकर एक लम्हे को जिंदा कर दें, प्रेम प्रणव से जीवन भर दें

Sunday, November 16, 2008

गिरगिट समाज के सामने संकट

श्रीगंगानगर की सड़कों पर बहुत ही अलग नजारा था। चारों तरफ़ जिधर देखो उधर गिरगिटों के झुंड के झुंड दिखाई दे रहे थे। गिरगिट के ये झुंड नारेलगा रहे थे " नेताओं को समझाओ, गिरगिट बचाओ", "गिरगिटों के दुश्मन नेता मुर्दाबाद", " रंग बदलने वाले नेता हाय हाय"," गिरगिट समाज का अपमान नही सहेगा हिंदुस्तान"। ये नजारा देख एक बार तो जो जहाँ था वही रुक गया। ट्रैफिक पुलिस को उनके कारन काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था। गिरगिटों के ये सभी झुंड जा रहे थे राम लीला मैदान। वहां गिरगिट बचाओ मंच ने सभा का आयोजन किया था। रामलीला मैदान का नजारा, वह क्या कहने। लो जी सभा शुरू हो गई। जवान गिरगिट का नाम पुकारा गया। उसने कहा- यहाँ सभा करना कायरों का काम है। हमें तो उस नेता के घर के सामने प्रदर्शन करना चाहिए जिसने रंग बदल कर हमारी जात को गाली दी है। बस फ़िर क्या था सभा में सही है, सही है, के नारों के साथ जवान गिरगिट खड़े हो गए। एक बुजुर्ग गिरगिट ने उनको समझा कर शांत किया। गिरगिट समाज के मुखिया ने कहा, इन नेताओं ने हमें बदनाम कर दिया। ये लोग इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि हम लोगों को शर्म आने लगती है। जब भी कोई नेता रंग बदलता है , ये कहा जाता है कि देखो गिरगिट कि तरह रंग बदल लिया। हम पूछतें हैं कि नेता के साथ हमारा नाम क्यों जोड़ा जाता है। नेता लोग तो इतनी जल्दी रंग बदलते हैं कि गिरगिट समाज अचरज में पड़ जाता है। मुखिया ने कहा, हम ये साफ कर देना चाहतें है कि नेता को रंग बदलना हमने नहीं सिखाया। उल्टा हमारे घर कि महिला अपने बच्चों को ये कहती है कि -मुर्ख देख फलां नेता ने गिरगिट ना होते हुए भी कितनी जल्दी रंग बदल लिया, और तूं गिरगिट होकर ऐसा नहीं कर सकता,लानत है तुझ पर ... इतना कहने के बाद तडाक और बच्चे के रोने की आवाज आती है।मुखिया ने कहा हमारे बच्चे हमें आँख दिखातें हैं कहतें हैं तुमको रंग बदलना आता कहाँ है जो हमको सिखाओगे, किसी नेता के फार्म हाउस या बगीचे में होते तो हम पता नहीं कहाँ के कहाँ पहुँच चुके होते। मुखिया ने कहा बस अब बहुत हो चुका, हमारी सहनशक्ति समाप्त होने को है। अगर ऐसे नेताओं को सबक नहीं सिखाया गया तो लोग "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को भूल जायेंगे। लम्बी बहस के बाद सभा में गिरगिटों ने प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में सभी दलों के संचालकों से कहा गया कि अगर उन्होंने रंग बदलने वाले नेता को महत्व दिया तो गिरगिट समाज के पाँच जीव हर रोज उनके घर के सामने नारे बाजी करेंगे। मुन्ना गिरी से उनको समझायेंगे। इन पर असर नही हुआ तो सरकार से "गिरगिट की तरह रंग बदलना" मुहावरे को किताबों से हटाने के लिए आन्दोलन चलाया जाएगा। ताकि ये लिखवाया जा सके "नेता की तरह रंग बदलना"। सभा के बाद सभी गिरगिट जोश खरोश के साथ वापिस लौट गए।

ग़ज़ल - प्रमोद कुश ' तनहा '

हम चले हम चल दिए हम चल पड़े आज फिर माथे पे उनके बल पड़े नींद सहलाएगी माथा उम्र भर आँख पे माँ का अगर आँचल पड़े आज हम पे आ पड़ा है वक्त ये आप की किस्मत में शायद कल पड़े रुक गए मेरे कदम क्यों दफअतन रास्ते कुछ दूर जो समतल पड़े ख़त मिला बेटे का बूढ़े बाप को बाप की आँखों से मोती ढ़ल पड़े रात गुज़री किस तरह मत पूछिये देखिये बिस्तर में कितने सल पड़े इक तसव्वुर एक 'तनहा' रात थी हर तरफ़ लाखों दिए क्यों जल पड़े - प्रमोद कुमार कुश ' तनहा '

Friday, November 14, 2008

"वीरानो मे"

"वीरानो मे"
खामोश से वीरानो मे, साया पनाह ढूंढा करे, गुमसुम सी राह न जाने, किन कदमो का निशां ढूंढा करे.......... लम्हा लम्हा परेशान, दर्द की झनझनाहट से, आसरा किसकी गर्म हथेली का, रूह बेजां ढूंढा करे.......... सिमटी सकुचाई सी रात, जख्म लिए दोनों हाथ, दर्द-ऐ-जीगर सजाने को, किसका मकां ढूंढा करें ........... सहम के जर्द हुई जाती , गोया सिहरन की भी रगें , थरथराते जिस्म मे गुनगुनाहट, सांसें बेजुबां ढूंढा करें................

Wednesday, November 12, 2008

तिरंगे नेता की दुरंगी चाल

लगभग चालीस साल पहले की बात है श्रीगंगानगर में राधेश्याम नाम का एक आदमी था। बिल्कुल एक आम आदमी जो पाकिस्तान से आया था। उसने मेहनत की, आगे बढ़ा,थोड़ा जयादा आगे बढ़ा,राजनीति में आ गया। नगरपालिका का चेयरमेन बना। नगर में पहचान बनी,रुतबा हुआ। तकदीर ने साथ दिया दो पैसे भी पल्ले हो गए। उसके बाद इस आदमी ने पीछे मुड़कर देखा ही नही। कांग्रेस ने इसका ऐसा हाथ पकड़ा कि यह कांग्रेस का पर्याय बन गया। १९७७ से २००३ तक सात बार कांग्रेस की टिकट पर श्रीगंगानगर से विधानसभा का चुनाव लड़ा। तीन बार जीता चार बार हारा। एक बार तो राधेश्याम के सामने भैरों सिंह शेखावत तक को हारना पड़ा। उसके बाद राधेश्याम, राधेश्याम से राधेश्याम गंगानगर हो गए। २००३ में यह नेता जी ३६००० मतों से हार गए। तब इनको ३४१४० वोट मिले थे। इनको हराने वाला था बीजेपी का उम्मीदवार। इस बार कांग्रेस ने राधेश्याम को उम्मीदवार नही बनाया। बस उसके बाद तो नेता जी आपे से बहार हो गए,कांग्रेस नेताओं को बुरा भला कहा। बिरादरी की पंचायत बुलाई,लेकिन सभी ने नकार दिया। आज इस नेता जी ने दिल्ली में बीजेपी को ज्वाइन कर लिया। अब इनके श्रीगंगानगर से बीजेपी उम्मीदवार होने की उम्मीद है। इनके घर पर कई दशकों से इनकी शान का प्रतीक बना हुआ कांग्रेस के झंडे के स्थान पर बीजेपी का झंडा लगा दिया गया है। जब झंडा बदला जा रहा था तब लोग यह कह रहे थे कि झंडा डंडा सब बदल गया, तब नारदमुनि का कहना था कि जब आत्मा ही बदल गई तो झंडे डंडे की क्या बात। आत्मा के इस बदलाव ने सब के चेहरे के भाव बदल कर रख दिए। राजनीति तेरी जय हो,ऐसी राजनीति जिसमे नीति कहीं दिखाई नहीं देती।

"सजाएं"

"सजाएं"
इस खामोशी मे भी हरदम तुमसे बातें होतीं हैं , दूर जुदा रह कर भी ख्यालों मे मुलाकातें होती हैं.... हमको वफा का इनाम दिया , जी भर के इल्जाम दिया , तुमने हमको भुला दिया ये सोच के ऑंखें रोती हैं....
क्या खोया क्या पाया था जीवन युहीं गवांया था , तुमने भी ठुकराया है अब खोने को सांसें होती हैं.....
एक बोझ मगर सीने मे है , कौन सा ऐसा जुर्म हुआ , चाहत मे मर मिटने की क्या खोफ-जदा "सजाएं" होतीं हैं

Friday, November 7, 2008

सास बहू को विदाई

---- चुटकी---- एक महिला ने दूसरी से कहा ये क्या हो गया हाय, एकता कपूर ने सास बहू को बोल दिया बाय। ---- पता नहीं किसने नजर लगाई है, जो इसको विदा करने की नौबत आई है। ---- शायद 'बा' अमरत्व ले बैठा इसको, बा तो मरती नहीं इसलिए ख़ुद ही खिसको। ----गोविन्द गोयल

Thursday, November 6, 2008

यमराज को भाई बनाया

हिंदुस्तान की संस्कृति उसकी आन बान और शान है। दुनिया के किसी कौने में भला कोई सोच भी सकता है कि मौत के देवता यमराज को भी भाई बनाया जा सकता है। श्रीगंगानगर में ऐसा होता है हर साल,आज ही के दिन। महिलाएं सुबह ही नगर के शमशान घाट में आनी शुरू हो गईं। हर उमर की महिला,साथ में पूजा अर्चना और भेंट का सामान,आख़िर यमराज को भाई बनाना है। यमराज की बड़ी प्रतिमा, उसके पास ही एक बड़ी घड़ी बिना सुइयों के लगी हुई, जो यह बताती है की मौत का कोई समय नहीं होता। उन्होंने श्रद्धा पूर्वक यमराज की आराधना की उसके राखी बांधी, किसी ने कम्बल ओढाया किसी ने चद्दर। यमराज को भाई बनाने के बाद महिलाएं चित्रगुप्त के पास गईं। पूजा अर्चना करने वाली महिलाओं का कहना था कि यमराज को भाई बनाने से अकाल मौत नहीं होती। इसके साथ साथ मौत के समय इन्सान तकलीफ नही पाता। चित्रगुप्त की पूजा इसलिए की जाती है ताकि वह जन्मो के कर्मों का लेखा जोखा सही रखे। यमराज की प्रतिमा के सामने एक आदमी मारा हुआ पड़ा है,उसके गले में जंजीर है जो यमराज के हाथ में हैं। चित्रगुप्त की प्रतिमा के सामने एक यमदूत एक आत्मा को लेकर खड़ा है और चित्रगुप्त उसको अपनी बही में से उसके कर्मों का लेखा जोखा पढ़ कर सुना रहें हैं। सचमुच यह सब देखने में बहुत ही आनंददायक था। महिलाएं ग़लत कर रही थी या सही यह उनका विवेक। मगर जिस देश में नदियों को माता कहा जाता है वहां यह सब सम्भव है।

सोने का लिफाफा

एक लिफाफा कागज़ का था राह में बेसुध भटक रहा था फिजा सुनहरी साथ थी उसके उसके अन्दर चाँद छिपा था हल्की नीली शक्ल पे उसकी काला स्याह एक हरफ चढा था ख़त के ऊपर नाम था मेरा पता भी मेरे आँगन का था चाँद की आँखें सुर्ख लाल थी लबों से तारे बिखर रहे थे ग्यारह तारे आसमान में एक मेरी मुट्ठी में कैद था हथेलियों पर ख़ाक जमी थी तारा मेरे नाम का ना था बारह तारे आसमान में एक लिफाफा फटा हुआ था एक लिफाफा कागज़ का था जिसके अन्दर चाँद छुपा था फिजा सुनहरी साथ में लेकर उसका चेहरा ज़र्द पड़ा था

निष्ठा अपने स्वार्थ तक

श्रीगंगानगर में एक कांग्रेस नेता हैं राधेश्याम गंगानगर। इनको कांग्रेस का पर्याय कहा जाता था। गत सात विधानसभा चुनाव ने ये कांग्रेस के उम्मीदवार थे। बीजेपी के दिग्गज भैरों सिंह शेखावत को भी इनके सामने हार का मुहं देखना पड़ा। इस बार कांग्रेस ने इस बुजुर्ग को टिकट देना उचित न समझा। बस तो निष्ठा बदल गई,बगावत की आवाज बुलंद कर दी। जिनकी चौखट पर टिकट के लिए हाजिरी लगा रहे थे उन नेताओं को ही कोसना शुरू कर दिया। यहाँ तक कहा कि टिकट पैसे लेकर बांटी गई हैं। ऐलान कर दिया कि कांग्रेस उम्मीदवार की जमानत जब्त करवा देंगें। अब इस नेता ने महापंचायत बुलाई है उसमे निर्णय होगा कि नेता जी को चुनाव लड़ना चाहिए या नही। राधेश्याम आज जो कुछ है वह कांग्रेस की ही बदोलत है जिसकी खिलाफत करने की वह शुरुआत कर रहा है। कांग्रेस ने जिस राज कुमार गौड़ को टिकट दी है वह बुरा आदमी नहीं है, साफ छवि का मिलनसार आदमी है। ३७ साल से राजनीति में है। सीधे सीधे किसी प्रकार का कोई आरोप नहीं है। लेकिन उसके पास कार्यकर्त्ता नहीं हैं। इतने लंबे राजनीतिक जीवन में गौड़ के साथ केवल तीन आदमी ही दिखे। ऐसे में वे क्या करेंगे कहना मुश्किल है। रही बात बीजेपी कि तो उसके पास इस से अच्छा मौका कोई हो नहीं सकता। जाति गत समीकरणों की बात करें तो उसके पास प्रहलाद टाक है। राजनीति में बिल्कुल फ्रेश चेहरा। इनके कुम्हार समाज को अभी तक बीजेपी कांग्रेस ने टिकट नहीं दी है। ओबीसी के इस इलाके में बहुत अधिक मतदाता हैं। कांग्रेस में बगावत के समय वे बीजेपी के लिए कोई चमत्कार करने सकते हैं। अन्य उम्मीदवार फिलहाल पीछे हुए हैं, उनकी टिकट मांगने की गति धीमी हो गई उत्साह भी नहीं रहा। जनता तो बस इंतजार ही कर सकती है।

Wednesday, November 5, 2008

"प्यार बेशुमार लिखूं"

"प्यार बेशुमार लिखूं"
अपने खामोश तकल्लुम मैं ये इज़हार लिखूं, हर जगह तेरे ही एक नाम की तकरार लिखूं... एक हरकत भी कलम की हो तुझे प्यार लिखूं, प्यार तू एक लिखे मैं तुझे सो बार लिखूं.... बेकरारी भरे दिल का तू ही है करार लिखूं, अपनी इन तेज बदहवास धड़कनों की रफ़्तार लिखूं... आज लाया हूँ तुझे दिल का ये उपहार लिखूं, हाँ मिलन के है अब बहुत जल्द ये आसार लिखूं.... तेरी नज़रों ने जो उठाया है वो खुमार लिखूं ,
अपने हर लफ्ज़ से तुझे प्यार बेशुमार लिखूं...

Tuesday, November 4, 2008

क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब

----- चुटकी----- जो कई साल से नहीं मिला वो मिलेगा,स्नेह करेगा तुम्हे पुचकारेगा, प्यार से पूछेगा तुमसे दिल की बात, हे सखी, क्यों तंग करती हो क्यों दिखाती हो झूठे ख्वाब, कुछ और न समझ सखी नेता जी आयेंगें क्योंकि सामने हैं चुनाव। ----गोविन्द गोयल

Monday, November 3, 2008

" तेरा होना "

" तेरा होना "
मुझे भाता है मेरे साथ मे तेरा होना, सोच मे बात मे जज्बात मे तेरा होना
जिंदगी के मेरे हर साज़ मे तेरा होना,
मेरे सुर मे मेरी आवाज़ मे तेरा होना, पल पल की बंधती हुई आस मे तेरा होना, मेरे हर एहसास के एहसास मे तेरा होना रूह मे रूह की हर प्यास मे तेरा होना, जीस्त की बाकी हर एक साँस मे तेरा होना, लगता है अब ये सफर सुख से गुजर जाएगा जब से पाया है मैंने साथ में तेरा होना .....

कुत्ते को घुमाते हैं शान से

---- चुटकी---- बुजुर्ग माँ-बाप के साथ चलते हुए शरमाते हैं हम, अपने कुत्ते को सुबह शाम घुमाते हैं हम। ------ अधिकारों के लिए लगा देंगें अपने घर में ही आग, अपने कर्त्तव्यों को मगर भूल जाते हैं हम। ---- कश्मीर से कन्याकुमारी तक खंड खंड हो रहा है देश फ़िर भी अनेकता में एकता के नारे लगाते हैं हम। ---- सबको पता है कि बिल्कुल अकेले हैं हम, हम, अपने आप को फ़िर भी बतातें हैं हम। ---गोविन्द गोयल

Sunday, November 2, 2008

खौफनाक मंज़र

देश की जानी-मानी न्यूज़ एजेन्सी सीएनएनआई के न्यूज़ ब्लॉग पर कुछ तस्वीरें डाली गयी हैं जो किसी भी इन्सान के रोगंटे खड़े कर सकती हैं। उन्ही मे से एक तस्वीर यहां डाल रहा हूँ। इस तस्वीर को देखकर आप जान जायेगें कि दुनिया मे कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनकी मरने के बाद भी दुर्गति होती है। इस पर सवाल उठता है कि आखिर इसके लिये ज़िम्मेदार कौन है? साभार-CNNi

काजल की कोठरी में भी झकाझक

हम बुद्धिजीवी हर वक्त यही शोर मचाते हैं हैं की हाय!हाय! राजनीति में साफ छवि और ईमानदार आदमी नही आते। लेकिन देखने लायक जो हैं उनकी क्या स्थिति इस राजनीति में है,उसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। श्रीगंगानगर जिले में है एक गाँव है २५ बी बी। वहां के गुरमीत सिंह कुन्नर पंच से लेकर लेकर विधायक तक रहे। लेकिन किसी के पास उनके खिलाफ कुछ कहने को नही है। कितने ही चुनाव लड़े मगर आज तक एक पैसे का भी चंदा उन्होंने नहीं लिया। किसी का काम करवाने के लिए उन्होंने अपने गाड़ी घोडे इस्तेमाल किए। राजस्थान में जब वे विधायक चुने गए तो उन्हें सबसे ईमानदार और साफ छवि के विधायक के रूप में जाना जाता था। कांग्रेस को समर्पित यह आदमी आज कांग्रेस की टिकट के लिए कांग्रेस के बड़े लीडर्स की चौखट पर हाजिरी लगाने को मजबूर है। जिस करनपुर विधानसभा से गुरमीत कुन्नर टिकट मांग रहा है वहां की हर दिवार पर लिखा हुआ है किगुरमीत सिंह कुन्नर जिताऊ और टिकाऊ नेता है किंतु यह कहानी कांग्रेस के लीडर्स को समझ नहीं आ रही। गत दिवस हजारों लोगों ने गुरमीत सिंह कुन्नर के यहाँ जाकर उनके प्रति समर्थन जताया, उनको अपना नेता और विधायक माना। ऐसी हालातों मेंकोई सोच सकता है कि ईमानदार और साफ छवि के लोग राजनीति में आयेंगें। पूरे इलाके में कोई भी एजेंसी सर्वे करे या करवाए, एक आदमी भी यह कहने वाला नहीं मिलेगा कि गुरमीत सिंह कुन्नर ने किसी को सताया है या अपनी पहुँच का नाजायज इस्तेमाल उसके खिलाफ किया। जब राजनीति का ये हाल है तो कोई क्या करेगा। यहाँ तो छल प्रपंच करने वालों का बोलबाला है। राजनीति को काजल की कोठरी कहना ग़लत नहीं है। जिसमे हर पल कालिख लगने की सम्भावना बनी रहती है। अगर ऐसे में कोई अपने आप को बेदाग रख जन जन के साथ है तो उसकी तारीफ की ही जानी चाहिए। जागरूक ब्लोगर्स,इस पोस्ट को पढ़ने वाले बताएं कि आख़िर वह क्या करे? राजनीति से सन्यास लेकर घर बैठ जाए या फ़िर लडाई लड़े जनता के लिए जो उसको मानती है।

छठी का दूध याद आ गया

---- चुटकी----- राज ठाकरे तो एक दम से पलटी खा गया, शायद उसको छठी का दूध याद आ गया। -----गोविन्द गोयल

Saturday, November 1, 2008

अंधेर नगरी चौपट राजा

---चुटकी---- अंधेर नगरी चौपट राजा, हिंदुस्तान का तो बज गया बाजा। टके सेर भाजी टके सेर खाजा, लूटनी है तो जल्दी से आजा। ---गोविन्द गोयल

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