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Sunday, September 13, 2009

लो क सं घ र्ष !: क्या मिलन विरह में अन्तर

क्या मिलन विरह में अन्तर, सम्भव जान पड़ते हैं निद्रा संगिनी होती तो, सपने जगते रहते हैं जीवन का सस्वर होना, विधि का वरदान नही है आरोह पतन की सीमा, इतना जग नाम नही है मिट्टी से मिट्टी का तन, मिट्टी में मिट्टी का तन हिमबिंदु निशा अवगुण्ठन, ज्योतित क्षण भर का जीवन डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

हेमन्त कुमार said...

बेहतरीन । आभार ।

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