अरी ! युक्ति तू शाश्वत ,
मोहिनी रूप फिर धर ले ।
अमृत देवो को देकर,
मोहित असुरो को कर ले॥
बुद्धि कभी, चातुर्य कभी,
विधि तू कौशल्य निपुणता।
युग-तपन शांत करने को,
है कैसी आज विवशता ॥
कल्याणी शक्ति अमर ते ,
निज आशा वि्स्तृत कर दो,
वातायन स्वस्ति विखेरे ,
महिमामय करुणा वर दो॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Sunday, September 27, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment