किस रावण की भुजा उखाडूँ....
किस लंका को आग लगाऊँ।
घर घर रावण, घर घर लंका....
इतने राम कहां से लाऊँ।।
विजयदशमी की शुभकामनाएं
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4 comments:
इतने राम कहाँ से लाऊँ?
बहुत कम शब्दों में झकझोर देने वाली रचना!
जारी रहें.
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लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!
परवेज साहब अगर हम अपने बच्चो मै अच्छॆ अच्छे संस्कार डाले तो भारत मै हर घर मै राम ही राम हो... ओर यह रावण खुद वा खुद भाग जाये...
आप को ईद मुबारक( देर से ही सही)
आप को ओर आप के परिवार को विजयादशमी की शुभकामनांए.
Thanks & Same to you Raj Sahab........
हर तरफ राम हैं
जितने रावन उतने राम हैं
जो पाप करत सो रावण
जो पाप हरत वो राम
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