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Saturday, September 19, 2009

लो क सं घ र्ष !: तृष्णा विराट आनंदित

तृष्णा विराट आनंदित, है नील व्योम सी फैली मादक मोहक चिर संगिनी, ज्यों तामस वृत्ति विषैली वह जननि पाप पुञ्जों की, फेनिल मणियों की माला उन्मत भ्रमित चंचल, पाकर अंचल की हाला छवि मधुर करे उन्मादित , सम्हालूँगा कहता जाए तम के अनंत सागर में, मन डूबा सा उतराए डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

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