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Friday, September 11, 2009

लो क सं घ र्ष !: स्मृति शेष: घुपती हृदय में बल्लम सी जिसकी बात, उसे गपला ले गयी कलमुँही रात-01

वह खोड़ली कलमुँही (6 अगस्त 09) रात थी, जब प्रमोद उपाध्याय जी ज़िन्दगी की फटी जेब से चवन्नी की तरह खो गये। प्रमोद जी इतने निश्छल मन थे कि कोई दुश्मन भी कह दे उनसे कि चल प्रमोद.... एक-एक पैग लगा लें, तो चल पड़े उसके साथ। उनकी ज़बान की साफ़गोई के आगे आइना भी पानी भरे। अपने छोटे से देवास में मालवी, हिन्दी के जादुई जानकार। भोले इतने कि एक बच्चा भी गपला ले, फिर सुना है मौत तो लोमड़ी की भी नानी होती है न, गपला ले गयी। प्रमोद जी को जो जानने वाले जानते हैं कि वह अपनी बात कहने के प्रति कितने जिम़्मेदार थे, अगर उन्हें कहना है और किसी मंच पर सभी हिटलर के नातेदार विराजमान हैं, तब भी वह कहे बिना न रहते। कहने का अंदाज और शब्दों की नोक ऐसी होती कि सामने वाले के हृदय में बल्लम-सी घुप जाती। जैसा सोचते वैसा बोलते और लिखते। न बाहर झूठ-साँच, न भीतर कीच-काच। उन्होंने नवगीत, ग़ज़ल, दोहे सभी विधा की रचनाओं में मालवी का ख़ूबसूरत प्रयोग किया है। रचनाओं के विषय चयन और उनका निर्वहन ग़ज़ब का है, उन्हें पढ़ते हुए लगता-जैसे मालवा के बारे में पढ़ नहीं रहे हैं बल्कि मालवा को सांस लेते। निंदाई-गुड़ाई करते, हल-बक्खर हाँकते, दाल-बाफला बनाते-खाते और फिर अलसाकर नीम की छाँव में दोपहरी गालते देख रहें हैं। मालवा के अनेक रंग उनकी रचनाओं में स्थाईभाव के साथ उभरे हैं। यह बिंदास और फक्कड़ गीतकार कइयों को फाँस की तरह सालता रहा है। प्रमोद जी के एक गीत का हिस्सा देखिए- तुमने हमारे चैके चूल्हे पर रखा जबसे क़दम नून से मोहताज बच्चे पेट रह रहकर बजाते आजू बाजू भीड़ उनके और ऊँची मण्डियाँ हैं। सूने खेतों में हम खड़े सहला रहे खुरपी दराँते। देवास जिले के बागली गाँव में एक बामण परिवार में (1950) जन्मे प्रमोद उपाध्याय कभी बामण नहीं बन सके। उनका जीने का सलीका, लोगों से मिलने-जुलने का ढंग, उन्हें रूढ़ीवादी और गाँव में किसानों, मजदूरों को ठगने वाले बामण से सदा भिन्न ही नहीं, बल्कि उनके खिलाफ़ रहा। प्रमोद जी सदा मज़दूरों और ग़रीब किसानों के दुख-दर्द को, हँसी-ख़ुशी को, तीज-त्यौहार को गीत, कविता, दोहे और ग़ज़ल में ढालते रहे। उनके कुछ दोहे पढ़ें- सूखी रोटी ज्वार की काँदा मिरच नून चाट गई पकवान सब थोड़ी सी लहसून फ़सल पक्की है फाग में टेसू से मुख लाल कुछ तो मण्डी में गई, कुछ ले उड़े दलाल क्रमश : -सत्य नारायण पटेल मो0-09826091605

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