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Friday, September 4, 2009

लो क सं घ र्ष !: क्या पतन समझ पायेगा...

मानव का इतिहास यही, मानस की इतनी गाथा आँखें खुलते रो लेना , फिर झँपने की अभिलाषा जग का क्रम आना-जाना, उत्थान पतन की सीमा दुःख-वारिद , आंसू - बूँदें , रोदन का गर्जन धीमा उठान देखा जिसने, क्या पतन समझ पायेगा निर्माण नही हो जिसका, अवसान कहाँ आयेगा डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

Amit K Sagar said...

गहरी बात! क्या पतन समझ पायेगा...बहुत खूब! जारी रहें.
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