आशा का सम्बल सुंदर,
या सुंदर केवल आशा ।
विभ्रमित विश्व में पल-पल ,
लघु जीवन की प्रत्याशा॥
रंग मंच का मर्म कर्म है,
कहीं यवनिका पतन नही ।
अभिनय है सीमा रेखा,
कहीं विमोहित नयन नही॥
सत् भी विश्व असत भी है,
पाप पुण्य ही हेतु बना।
कर्म मुक्ति पाथेय यहाँ,
स्वर्ग नर्क का सेतु बना ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Thursday, September 3, 2009
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1 comment:
बेहतर । आभार ।
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