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Sunday, September 6, 2009

लो क सं घ र्ष !: अपने वजूद के लिए संघर्ष करता देश का जनमानस

देश में एक तरफ सूखे की स्थिति दूसरी तरफ बाढ़ के हालात इस कदर बिगड़ गये हैं कि बहुसंख्यक आबादी का अपने आप में जीविकोपार्जन करना मुश्किल हो गया है। मँहगाई के चलते दाल 90 रूपये किलो तक पहुँच गयी है। आम आदमी की थाली से भोजन गायब होता जा रहा है। बाढ़ और सूखे की वजह से मुख्य उत्पादक किसान और खेत मजदूर तबाह हो रहे हैं, स्थितियाँ विकट हैं। मुख्य विपक्षी दल भाजपा व सत्तारूढ़ दल कांग्रेस जिन्ना विवाद में उलझे हुए हैं जब पूँजीवादी संकट के चलते मेहनतकश जनता तबाह और बरबाद हो रही होती है तब ये पूँजीवादी दल इसी तरह के मुद्दे उछालकर जनता का ध्यान उनके क्रिया-कलापों की तरफ न जाये, इसी तरह की बहस छेड़ते रहते हैं। आज पूँजीवादी व्यवस्था को जनसंघर्ष के माध्यम से उखाड़ फेंकने की है और एक ऐसी व्यवस्था कायम करने की है जो टाटा बिरला और अम्बानियों से संचालित न हो क्योंकि ये इजारेदार पूँजीपति साम्राज्यवादी शक्तियों के ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं और इनका मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक सम्पदाओं का दोहन कर अपने आर्थिक साम्राज्य को बढावा देना है इसके लिए यह लोग सब कुछ करने के लिए तैयार हैं। मानवीय संवेदनाओं से रहित ये पूँजीवादी विदेशों का कचरा भी लाकर इस देश में बेचकर मुनाफा कमाने से बाज नहीं आते हैं। -मुहम्मद शुऐब -रणधीर सिंह ‘सुमन’

1 comment:

Asha Joglekar said...

Aapka kehana sahee hai, sare desh men jinna Dharm nirpeksh the ya nahee yah sabse mahatw poorn wishay ho gaya hai .Are jo hua hua khak dalo uspar. Abhi ke bare men socho. Cheen kee senaen 1 1/2 km tak ander ghus aaeen hain, atankwad apni charam seema par hai. mehangaee nit naye aasman choo rahee hai. koee hai jo is taraf dekhe ?

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