जन जीवन की वहां सुरक्षा , मात्र कल्पना,
भक्षक बन गया जहाँ रक्षक ही ॥
कहाँ मिले गंतव्य पथिक को
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही॥
कैसे हरा भरा उपवन हो कैसे कलि-कलि मुस्काए
कैसे कोयल मधुरस घोले कैसे कहो वसंत ऋतू आए ।
आग लगा दे जब उपवन का संरक्षक ही।
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही॥
अधरों पर मुस्कान हो कैसे , कैसे मिटे दुराशा मन की
कैसे सुख और शान्ति आए , कष्ट मिटे कैसे जन-जन की
हत्यारा बन गया जहाँ पर आरक्षक ही।
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही॥
हिंसा जहाँ पूज्य हो ,कैसे मानवता को प्राण मिले।
जीवन के इस महाशिविर से बोलो कैसे त्राण मिले॥
अन्धकार का ग्रास बन गया जब दीपक ही।
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही ॥
कैसे फिर किलकारी गूंजे, मुरझाया चेहरा मुस्काये।
भूख- प्यास- भय की तड़पन से मानव कैसे मुक्ति पाये॥
राज धर्म को भूल गया जब जन नायक ही।
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही ॥
मानवता का गला घोटकर लोकतंत्र की बलि चढाते।
धर्म के ठेकेदार- अहिंसा के शिक्षक ही ।
कैसे बचे अस्मिता बोलो , कैसे जीवन ही सुरक्षित
जहाँ लुटेरे साधू वेश में धरती पर फिरते हो हुलाषित ॥
बटमार बन गया भू का चिन्तक
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही॥
पग-पग पर जब जाल बिछे हो बाधिकों ने डेरे डालें हों ।
भेड़े वहां सुरक्षित कितनी जहाँ भेडिये रखवाले हों ॥
कैसे पहुंचे पार डुबो दे जब खेवक ही।
जब भटक गया पथ प्रदर्शक ही॥
-मोहम्मद जमील शास्त्री Tuesday, September 1, 2009
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2 comments:
Path pradashak ki BHATKAN ko shaant karne ko aapke paas KALAM hai.lage rahhiye.
jhalli-kalam-se
angrezi-vichar.blogspot.com
loktantra me path-pradarshak sachha bhaiya... mera tera man hai.....
lalchi ,andhe bahre hum n banen tabhi is loktantra ki jay hai...
thnx narad ji.... muze yon bhi aapse bahut aatmiyata mahsoos ho rahi hai kyunki maine apne school me ek bar naradmuni ji ka role kiya tha.. aur narad ji ki mukhmudra me hi sarvada paee jati hun.. aaj bhi mitra purane muze narad hi kahte hai...
atah dhanyawad...!
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