तोड़ना नही सम्भव है,
विधि के विधान की कारा ।
अपराजेय शक्ति है कलि की,
पाकर अवलंब तुम्हारा ॥
श्रृंखला कठिन नियमो की,
विधना भी मुक्त नही है ।
वरदान कवच से धरणी ,
अभिशापित है यक्त नही है॥
हो अजेय शक्ति नतमस्तक ,
पौरुष बल ग्राह्य नही है।
तप संयम मुक्ति विजय श्री ,
रोदन ही भाग्य नही है॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही
Saturday, September 26, 2009
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1 comment:
बिलकुल सही लिखा
धन्यवाद
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