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Monday, August 31, 2009

लो क सं घ र्ष !: जीवन है केवल छाया

जीवन सरिता का पानी , लहरों की आँख मिचौनी मेघों का मतवालापन , बरखा की मौन कहानी गल बाहीं डाले कलियाँ, है लता कुंज में हँसती चलना,जलना , जीवन है आहात स्वर में हँस कहती संसार समर में कोई, अपना ही है पराया सम्बन्ध ज्योति के छल में, जीवन है केवल छाया डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

2 comments:

Asha Joglekar said...

Kawita sunder hai par is prakar ke prastuti se usaka asar kum hota hai. mera sampadak jee se anurodh hai ki kawita ke prsentation par dhyan den, usako gadya kee tarah na prastut karen.

हेमन्त कुमार said...

बेहतर रचना । आभार ।

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