रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Wednesday, May 27, 2009

धार्मिक कट्टरपंथी तो हारे पर बाजार कट्टरपंथी जीत गये

- प्रो. बनवारी लाल श र्मा

कमाल है इस देश की जनता का ! चुनाव में वह नतीजा कर दिखाया जिसकी किसी को उम्मीद न थी। जनता ने सारी अटकलें, चुनावी पण्डितों के विश्लेषण और भविष्यवाणियाँ झुठला दीं। चुनाव नतीजे सुनाये जाने से पहले काँग्रेस भी घबड़ायी हुई थी, सरकार बनाने का समर्थन पाने के लिए छोटी-छोटी पार्टियों पर डोरे डाल रही थी, ‘फीलर’ छोड़ रही थी। हमारी नजर में इस चुनाव में कुछ अच्छी बातें हुई तो कुछ बहुत ही खराब, खतरनाक। पहले अच्छी बातें लेंः- (1) जाति और धर्म के नाम पर वोटों की जोड़-तोड़ को, जिसे ‘सोशल इन्जीनियरिंग’ का सुन्दर सा नाम दिया गया था, जनता ने ध्वस्त कर दिया। सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर ‘पढ़ी-लिखी दलित’ की बेटी दिल्ली की गद्दी पर बैठने का सपना देख रही थी, वह सपना तोड़ दिया। उत्तर प्रदेश के दलितों ने मायावती को चेतावनी दे दी इस चुनाव के मार्फत कि दलितों के नाम पर दलितों के कुछ न करके करोड़ों रूपए बड़े-बड़े स्मारक, नेताओं के और खुद अपने लिये बनाना जनता मंजूर नहीं करती। उसी उत्तर प्रदेश ने दिखा दिया कि हिन्दू-मुसलमानों की राजनीति नहीं चलेगी। यह मुलायम सिंह ने भी देख लिया कि उनके सभी ग्यारह मुसलमान उम्मीदवार हार गये। भाजपा को भी झटका दिया कि धर्म और राम मन्दिर पर जनता बेवकुफ बनना नहीं चाहती। (2) जनता ने मौकापरस्ती को करारी शिकस्त दी। चार साल तक वामपंथी और पूरे पाँच साल तक समाजवादी-लोकशक्तिवादी काँग्रेस का साथ देकर सत्ता सुख भोगते रहे और यह भाँप कर कि काँग्रेस का नाव डूबने वाली है, अलग होकर काँग्रेस की आलोचना में जुट गये। जनता ने वामपंथियों, मुलायम सिंह, लालूप्रसाद और पासवान को धूल चटा दी। पासवान तो ‘क्लीन बोल्ड’ हो गये। (3) जनता ने धार्मिक कट्टरवाद को काफी हद तक नकार दिया। भाजपा को कट्टरपंथी नेता नरेन्द्र मोदी चुनाव प्रचार कराया, उसे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी कह डाला। पर इसका नतीजा उलटा निकला। भारत जैसे देश के लिए यह शुभ लक्षण है क्योंकि यहाँ अनेक धर्म-सम्प्रदायों के लोग रहते हैं। (4) जो नामी-गिरामी माफिया और अपराधी थे, जनता ने उन्हें पछाड़ दिया। (5) पिछले लगभग दो दशक से चल रही गठबन्धन की अस्थिर राजनीति, जिसमें खरीद-फरोख्त आम बात थी, को जनता ने नकार दिया और एक स्थायी सरकार बनाने का जनादेश दिया। (6) जनसंघर्षों का साथ देने से राजनैतिक दल कामयाबी हासिल कर सकते हैं, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस का 2 से बढ़ कर 20 सीट पाना इसका उदाहरण है। नन्दीग्राम, सिंगूर, लालगढ़ के आन्दोलनों ने वामदलों के तीस साल पुराने किले को हिला दिया। प्रो. बनवारी लाल शर्मा ’आजादी बचाओ आन्दोलन’ के राष्ट्रीय संयोजक हैं।

इन अच्छी बातों के बावजूद इस चुनाव के कुछ खतरनाक संकेत हैं:- (1) यह पूरा चुनाव पुलिस की बन्दूकों की साया में हुआ है। यह ठीक है कि पुलिस व्यवस्था के कारण झगड़े-फसाद, गुण्डागर्दी और गलत मतदान नहीं हुआ, पर यह तो साफ हो गया कि यह लोकतंत्र बन्दूक से चलता है। इस पूरे लोकतंत्र ने पिछले 60 साल में कैसा समाज बनाया है, यह तो उजागर हो गया। पुलिस न हो तो मतदान ठीक से नहीं हो सकेगा, यह सिद्ध हुआ है। (2) बमुश्किल 50 प्रतिशत मतदान हुआ, यानी आधे मतदाताओं को इस लोकतंत्र से कोई सरोकार नहीं। इन आधे में से 30 प्रतिशत यानी कुल मतदाताओं के 15 प्रतिशत मत लेकर कांग्रेस सरकार बनाने-चलाने जा रही है। यानी 85 प्रतिशत देश के मतदाताओं को कांग्रेस का साथ नहीं मिला है। (3) जाति-धर्म और क्षेत्रवाद के नाम पर वोट मांगने वालों को नकार कर जो बचा उसे जनता ने वोट दिया, वह है कांग्रेस। कांग्रेस ने ‘विकास’ का नारा भी दिया। जनता को लगता है कि कांग्रेस सेक्यूलर है,अवसरवादी नहीं है। विकास की हिमायती है तो इसे ही जिता दो और जिता भी दिया। पर जो बात लोगों के ध्यान में नहींे आयी कि भाजपा अगर धार्मिक कट्टरवादी पार्टी है तो कांग्रेस ‘मार्केट-कट्टरपंथी’ है जिसने देश को देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हवाले कर दिया है। पिछले पांच साल में गठबन्धन की सरकार चलाने के कारण सहयोगी दलों के दबाव में कांग्रेस पूरी तरह भूमण्डलीकरण, उदारीकरण और निजीकरण की नीतियां नहीं लागू कर पायी। इस बार ऐसी कोई रूकावट न होने के कारण आदि सुधाराचार्य डाॅ. मनमोहन सिंह भारत की अर्थव्यवस्था का पूरी तरह से ‘मार्केट इकोनामी’ बना डालेंगे। इसमें कोई शक नहीं है। नीचे लिखे अधूरे काम वे तुरन्त करेंगे और पूरी ताकत के साथ:- (1) बीज अधिनियम पारित कराना जो लंबित पड़ा है; (2) विदेशी विश्वविद्यालय बिल पास कराना, जो अभी तक अटका हुआ है; (3) श्रम कानूनों में संशोधन; (4) रूपए की पूर्ण परिवर्तनीयता जिसे करने के लिए बड़ी कम्पनियों और अमरीका का भारी दबाव पड़ रहा है; (5) विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) कार्यक्रम तेजी से चलाना, जनता के विरोध से यह कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ रहा है; (6) खेती में दूसरी हरित क्रान्ति लाना यानी कारपोरेट खेती, कांट्रैक्ट फार्मिंग लागू करना, यानी खेती से किसानों का भारी संख्या में विस्थापन और बड़ी कम्पनियों का कब्जा; (7) परमाणु करार को तेजी से लागू करना। (4) डाॅ. मनमोहन सिंह और उनकी सरकार अमरीका से किये गये सामरिक सहयोग को और आगे बढ़ायेंगे। अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा ने डाॅ. सिंह को ;ूवदकमतनिसद्ध (ज्ञानी और आश्चर्यजनक) व्यक्ति कह कर उन्हें लुभा लिया है। आतंकवाद के नाम पर अमरीका भारत के साथ सामरिक सन्धि करके अमरीका और चीन के बीच भारत को बफर जोन की तरफ इस्तेमाल करना चाहता है और नयी सरकार यह कर डालेगी। गुटनिरपेक्ष देशों का 60 साल तक नेतृत्व करने वाला भारत ऐलानिया अमरीका का पिछलग्गू देश बनेगा। इस प्रकार नयी सरकार जनता के मुद्दों को सख्ती से दबायेगी, जनता के बीच जो असली मुद्दे हैं, वे ठीक से पहुंचे नहीं हैं। जन आन्दोलनों के सामने दुहरी चुनौतियां हैं-सही मुद्दों को लोगों तक पहुंँचाना और सरकार की गलत, जनविरोधी नीतियों से टक्कर लेना।

No comments:

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips