रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Thursday, March 27, 2008

HAPPY WORLD THEATRE DAY

All the world a stage and
we are all merely Actors.

They have their exits

& their entrances.

One person in his time

plays many Parts....


HAPPY WORLD THEATRE DAY

Sunday, March 23, 2008

पत्रकारों ने मनाई फूलों व सब्जियों से होली।


होली के रंग मीडिया क्लब के संग।

सहारनपुर में पत्रकारों ने मनाई फूलों व सब्जियों से होली।

होली की मस्ती में झूमें नेता, अधिकारी व पत्रकार।
http://postmortom.blogspot.com




Tuesday, March 18, 2008

होली है ?

मुझी को देकर गालियाँ कहते हैं वो कि होली है गज़ल के बीच तालियाँ बजाते हैं वो कि होली है मेरे शेरों को चुरा, खुद के नाम से कहते हैं वो मैं अगर कर दूँ सवाल सुनाते हैं वो कि होली है मेरे घर आकर के अक्सर खाते हैं वो मिठाइयाँ मैं जो उनके घर गया कहते हैं वो कि होली है मेरी महबूबा के रुख पर मल देते हैं रंग और गुलाल मै जो भाभी को रंग दूँ तो, पूछें ये कैसी होली है हम तो ऐसी दोस्ती से बाज़ आये हैं जनाब ये न कहिये, छोडिये डालिये खाक, होली है

Monday, March 17, 2008

सिलसिला .....



कया
है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....


पलकों पे इक खाव्ब रुक गया
लबो पे तेरा नाम गुनगुना गया
सुबह हमारी फूलों से महका गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....

फूलों सा नम औंस से भीगा गया
चाँद के टुकड़े से हमे दमका गया
सावन के हिंडोले में झुला गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....

दिए के ज्योत जैसे जला गया
मंदिर्यालय की घंटियों सा बज गया
पावन श्लोको सा बरस गया..

कया है, सिलसिला जो तुमसे जुड़ गया....


कीर्ती वैद्य .........

चक दे..........रंगकर्मी!

दोस्तों, आपको ये जानकारी देते हुए हर्ष हो रहा है कि आपका ब्लॉग रंगकर्मी देश के तेज़ी से उभरते हुए तीन ब्लॉग्स में अपनी जगह बना चुका है। जानेमाने मीडिया हाउस हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप की पत्रिका कादम्बिनी ने अपने पिछले अंक (मार्च 2008) में ब्लाग्स के बारे में ये जानकारी छापी है। आपकी लगातार कोशिशों और सहयोग की वजह से ही ब्लॉग को ये उपलब्धि हासिल हो सकी है। इसलिए क़ामयाबी का सेहरा भी आपके ही सर बंधता है। लिहाज़ा, आपसे ये अनुरोध है कि ब्लॉग्स को अपनी नयी-नयी रचनाओं, कहानियों, कविताओं आदि से नवाज़ते रहें। पिछले कुछ दिनों से कई साथियों की ब्लॉग में कमी-सी महसूस हो रही है। कृपया अपनी मौजूदगी का अहसास करायें और अपना साथ बनाए रखें।

- परवेज सागर,
रंगकर्मी परिवार

Thursday, March 13, 2008

जब हम मिल जाएँगे.....

हाँ, इक दिन वो आयेगा जब हम मिलेंगे... इक गर्म चाय के संग, हम बातो मैं घुल जाएँगे. कुर्मुरे चिप्स चटकाते, करीब थोरा ओर आ जाएँगे. कोसी-कोसी धुप तले, प्रेम-प्रीत में भर जाएँगे ठंडे पानी के गिलास संग, मीठे सपने संजो लेंगे. तंग भरी सड़क पे चलते-चलते, हम भि ज़िन्दगी को पकड़ लेंगे. भुट्टे पे नींबू-मसाला चख अपना भि घर बसा लेंगे हाँ, इक दिन वो आयेगा आयेगा जब हम मिल जाएँगे..... कीर्ती वैद्य.....

Wednesday, March 5, 2008

लटका दो.....

अक्सर लोग चेहरे बदल-बदल अपनी तस्वीरे खीन्च्वाते है रंगीन फ्रेम में चढा उन्हे दीवारों पर लटकाते है बेवजह उनपर नज़र दौडा अपनी बेवाकुफियो पे हंसते है अरे, कोई समझाए इन्हे वो इस तरह का नाटक कर अपना ही ड्रामा क्यों रचते है लटकाना ही है तो लटका दो थके हुए समाजिक ढांचे को लाचार पडे, कानून को इक रोटी के टुकडे के लिए नचाते अपने नेताओ को मासूम बचपन छीनते जेब गरमाते उध्यमियो को अरे.... सच कहती हूँ लटका दो ऐसे लाचारों को शायद फिर सच मज़ा आयेगा उन्हे देख मुस्कुराने का अब अपनी नहीं, उनकी बेवाकुफियो पे हंसने का ..... कीर्ती वैद्य....

Tuesday, March 4, 2008

Do you know about Global Warming?

Global Warming is defined as the increase of the average temperature on Earth. As the Earth is getting hotter, disasters like hurricanes, droughts and floods are getting more frequent Over the last 100 years, the average temperature of the air near the Earth´s surface has risen a little less than 1° Celsius (0.74 ± 0.18°C, or 1.3 ± 0.32° Fahrenheit). Does not seem all that much? It is responsible for the conspicuous increase in storms, floods and raging forest fires we have seen in the last ten years, though, say scientists Their data show that an increase of one degree Celsius makes the Earth warmer now than it has been for at least a thousand years. Out of the 20 warmest years on record, 19 have occurred since 1980. The three hottest years ever observed have all occurred in the last eight years, even.
But it is not only about how much the Earth is warming, it is also about how fast it is warming. There have always been natural climate changes – Ice Ages and the warm intermediate times between them – but those evolved over periods of 50,000 to 100,000 years

Monday, March 3, 2008

आग


मेरे अंदर एक आग जल रही है
जो मुझे चैन से जीने नही देती ।
वैसे भी एक स्त्री को जीने के लिये चाहिये क्या
पेट भर खाना, कपडा और सिर पे छत,
शायद थोडे से जेवर थोडे अच्छे कपडे
मैं अपनी आग को समेट कर मुस्कुराती हूँ
मेहमानों का स्वागत करती हूँ
घरवालों को खुश रखने का भरसक प्रयास करती हूँ
लेकिन कोई मुझे भीतर से कचोटता रहता है
क्यूं नही मैं अपने स्वत्व को ललकारती
क्यूं नही अपनी अस्मिता को उभारती
क्यूं नही अपना आप निखारती
क्यूं , क्यूं, क्यूं,
मेरे अंदर की यही आग मुझे जला रही है
जो मुझे चैन से जीने नही देती ।

Saturday, March 1, 2008

बजट या चुनावी घोषणापत्र ?

बचपन से ये नसीहतें सुनता आया हूं - बजट बनाकर काम करो। जितना बजट एलॉउ करे उतना ही ख़र्च करो। कभी घरवालों से, कभी बड़े-बूढ़ों से तो कभी दोस्तों से। हां, ये अलग बात है कि ये कला अभी तक नहीं सीख पाया। ख़ुद न सीख पाने की नाकामी कहें या कुछ और... पर अब मैं भी मानने लगा हूं कि बजट बनाना एक महान कला है। जो इस कला में पारंगत हैं, उसके धनी होने की उम्मींद बढ़ जाती है। कल जब चिदंबरम साहब का बजट देखा तो ये क्लियर हो गया कि चुनावों में कामयाबी का रास्ता भी बजट से ही होकर जाता है। यानि बजट कामयाबी की सीढ़ी है। हर बजट एक योजना है...एक जुगत है...कभी मौजूद संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल की, कभी पैसे बचाने की, तो कभी चुनाव जीतने की। लेकिन, चिदंबरम जी के बजट को क्या कहें......ये आप तय करें। वैसे कल के बजट ने आज के अख़बारों की सुर्खियां ख़ूब बटोरी हैं। भले ही कुछ राजनीतिक पार्टियां और मीडियावाले इसे चुनावी बजट बता रहे हों, लेकिन हर ख़ासोआम अख़बार-टीवी में चीजों की कीमतों के घटने की घोषणा देख-देख कर चिदंबरम साहब की जय बोल रहा है। कम-से-कम टीवी में दिखाए गए वॉक्सपॉप तो यही साबित करने में लगे हैं। ये सब देख-सुनकर मन में कुछ सवाल कुलबुला रहे हैं........जितने भी बजट पहले देखे हैं उनमें सरकार कभी तो ग़रीब किसानों के कर्ज़ माफ़ करती आई है, कभी आयकर का दायरा बढ़ा देती है तो कभी क़ीमतें घटती हैं। घोषणाएं ऐसी होती हैं जैसे बस एकदम देश की तस्वीर बदलने वाली है। लेकिन तस्वीर तो बद से बदतर होती जा रही है। अमीरी और ग़रीबी के बीच की खाई पाटे नहीं पट रही। सरकार किसानों को कर्ज़ देती है, वो जब चुका पाने में नाकाम होते हैं तो ख़ुदकुशी करने लगते हैं। फिर कर्ज़ माफ़ी की घोषणा हो जाती हैं। लेकिन, वो रास्ता कभी नहीं तलाशा जाता जिससे किसान आत्मनिर्भर हो सके। उसे कर्ज़ लेने की नौबत ही न आए। ऐसी नीतियां क्यों नहीं बनतीं कि किसानों को सस्ते ब्याज़ दर में लोन मिले और वो उसे चुका पाए। भीख चाहे 60 करोड़ की ही क्यों न हो, सराही तो नहीं जा सकती। देश की समस्याओं से लड़ने का बजट क्यों नहीं बनाया जाता, गरीबी हटाने का बजट कब बनेगा? जब चुनाव आने वाले होते हैं तो अक़्सर सरकारें लुभावने बजट देती हैं, लेकिन इससे किसानों को, ग़रीबों को कितना फ़ायदा पहुंचता है ये किसी से छिपा नहीं है। बहरहाल... अब तो बजट पेश करते वक़्त जनता को सुनहरे ख़्वाब दिखाने का ट्रेंड भी शुरू हो रहा है। हर रूलिंग पार्टी का लास्ट बजट....बजट कम चुनावी घोषणापत्र अधिक जान पड़ता है। ये बात केवल लालू के रेल बजट या चिदंबरम के आम बजट की नहीं है, पिछल कुछ सालों के बजट के दौरान हुई घोषणाएं इस बात को पुख़्ता आधार देती हैं।

What analysts say about Budget...

Analysts View: (Courtesy: Yahoo Web News) India's 2008/09 budget Finance Minister Palaniappan Chidambaram on Friday presented the fifth and final full budget of the ruling coalition before it faces elections due by May 2009. COMMENTARY: SHUBHADA RAO, CHIEF ECONOMIST, YES BANK, MUMBAI: "It's in line with expectations. The budget has a large rural flavour. Some anti-inflationary measures in the form of excise cuts have been effected. "Tax targets appear ambitious as indicated by a modest fiscal deficit. The emphasis on social sectors like health, education and the rural economy do suggest that the budget is leaning towards some populist measures. "We await details of the funding of the farm loans waiver, which at this point appears a concern." SHARMILA JOSHI, ASST VICE PRESIDENT, PRABHUDAS LILLADHER, MUMBAI: "Overall, a positive budget. We expected it to be populist and it is on those lines. The duty cuts and rural segment focus show they are trying to filter down benefits to the lower end of society. Markets may have reacted negatively on the increase in short-term capital gains tax, but we think there will not be too much impact." RUPA REGE NITSURE, CHIEF ECONOMIST, BANK OF BARODA, MUMBAI: "The budget has effectively responded to the concerns voiced by the economic survey on Feb. 28. While the fiscal deficit target has been met because of buoyant tax revenues, technical and allocative efficiencies in expenses have not improved. "Revenue deficit at 1.4 percent of GDP will act as a major hurdle in achieving fiscal consolidation. The budget has made a serious attempt to stimulate consumption demand by reducing indirect taxes on consumer durables like small cars, two- and three-wheelers etc., and by raising the personal income tax exemption limit. "From the bank's perspective, the waiver of small farm loans in not a negative thing entirely as these were the most stubborn NPAs on banks' loan books. There is comfort that the government will partially bear the burden for banks." SHUCHITA MEHTA, CHIEF INDIA ECONOMIST, STANDARD CHARTERED BANK, MUMBAI: "The focus is on inflation, the social sector and consumer. However, capital spending is a little disappointing. The reduction of the fiscal deficit in '08/09 to 2.5 percent is positive, however it may not include the impact of the pay commission, so it could be higher than forecast. A lower than expected gross borrowing programme is positive from the market perspective." HAN-SIA YEO, STRATEGIST AT BANK OF AMERICA, SINGAPORE: "It is an election budget. The personal income tax changes are definitely welcomed. The smaller than expected borrowing requirement and budget deficit is a positive and the fiscal stimulus should offer some growth support." A. PRASANNA, ECONOMIST AT ICICI SECURITIES, MUMBAI: "It is a progressive, inclusive budget. Despite high provisions of social expenditure and the cost of the farm loan waiver, the finance minister has managed to better the budgeted fiscal deficit target which is a pleasant surprise and bond positive." DEVESH KUMAR, MANAGING DIRECTOR, CENTRUM BROKING, MUMBAI: "Most of the banks have written off their non-performing assets. So the write-off of the loans to farmers may not have much impact. If the government gives some support to the banks, then it will be positive." MARKET REACTION: The stock market was down 2 percent after the government proposed to increase the short-term capital gains tax; shares in Indian vehicle makers rose due to budget proposals to cut excise duties on vehicles bank shares fell due to a proposal to waive the debts of small farmers The yield on the 10-year federal bond was at 7.58 percent, down four basis points from before the budget speech and an intra-day high of 7.66 percent. It had ended at 7.60 percent on Thursday. The partially convertible rupee was at 39.96/97 per dollar, weaker than 39.86/87 beforehand. It had ended at 39.87/88 on Thursday. LINKS: Ministry of Finance Web site at finmin.nic.in and the Press Information Bureau Web site at pib.nic.inand also at http://indiabudget.nic.in. BACKGROUND: - Growth has slowed to an estimated 8.7 percent this fiscal year from a scorching 9.6 percent in 2006/07. - A finance ministry survey said on Thursday that keeping growth at 9 percent would be a challenge, due to inflation and infrastructure bottlenecks, and raising it to double digits would require more reforms. - National elections are due by May 2009. - Farm growth is estimated to slow to 2.6 percent in 2007/08 from 3.8 percent in 2006/07. - Data released on Friday showed annual wholesale price inflation -- the country's main inflation indicator -- in the week to Feb. 16 was 4.89 percent, the highest since June last year....

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips