ज़िंदगी की एक और दोपहर बीत गई
और मैं बस देखता रह गया
कुछ साथ आए
और कुछ पीछे छुटते गए
फिर भी मैंने हार नहीं मानी
और लोगों को जोड़ता गया
जोड़ तोड़ के इस खेल में
मैं खुद ही टूटता गया
फिर भी अब अगली दोपहर का इंतजार है
आशीष
प्रिय आशीष, आपकी रचना मे ज़िन्दगी की वो हकीकत है जिससे हम लोग हरदिन दोचार होते है। शब्दों का चयन और लिखने का अन्दाज़ लाजवाब है। आपके विचार सदा इसी तरह शब्दों की शक्ल मे हमे मिलते रहें। इसी उम्मीद के साथ...........
life is a play . we all are players. earth is a rangmanch we all do our jobs in well manner. not only u waiting next noon... but also all human being do this.
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5 comments:
प्रिय आशीष,
आपकी रचना मे ज़िन्दगी की वो हकीकत है जिससे हम लोग हरदिन दोचार होते है। शब्दों का चयन और लिखने का अन्दाज़ लाजवाब है। आपके विचार सदा इसी तरह शब्दों की शक्ल मे हमे मिलते रहें। इसी उम्मीद के साथ...........
परवेज़ सागर
great...bhut payri rachna hai
sach asa he to kartey hai hum
dear aashish,
thanks for writing a nice kabita
life is a play . we all are players. earth is a rangmanch we all do our jobs in well manner. not only u waiting next noon... but also all human being do this.
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