Sunday, October 6, 2024
क्यूं दूर हुए .
Sunday, September 15, 2024
तनुजा
कोमल तन चंचल चितवन
मुख पर तेरे प्यार की आभा है
पाना चाहूं सानिध्य तेरा
जग देखने की अभिलाषा है
मन में जीवन की एक ललक
अस्तित्व तेरी पहचान हूं मैं
तेरी कोख में सांसें लेती हूं
इस दुनिया से अनजान हूं मैं
नव जीवन का संचार किया
दिया ईश्वर ने संसार मुझे
बोलो क्या दोगी जननी तुम
जीने का अधिकार मुझे
परछाई हूं मैं तेरी मां
तेरा ही तो अंश हूं मैं
क्या दोष है इसमें मेरा गर
नहीं तुम्हारा वंश हूं मैं
तेरी तनुजा कोई बोझ नहीं
ममता का अमृत पीने दो
पल्लवित पुष्पित होने का
एक बार तो मुझको मौका दो
ये कामना अंर्तमन की है
नैनों की मौन ये भाषा है
पाना चाहूं सानिध्य तेरा
जग देखने की अभिलाषा है
Saturday, August 23, 2014
http://singhtulika.blogspot.in/2014/08/badlte-rishto-ke-rang.html?m=1
Friday, February 28, 2014
Thursday, August 15, 2013
सपनों का हिन्दुस्तान
Friday, July 12, 2013
ग़ज़ल
Wednesday, April 17, 2013
जनपक्ष: हम गैर को सतायेंगे गुजरात की तरह !
Monday, September 3, 2012
बेटी बचाओ,.ताकि लड़के उनको छेड़ सकें !
Friday, August 17, 2012
बहुत मुश्किल है उलझी फूल मालाओं को सुलझाना
श्रीगंगानगर-एक समारोह में फूलों की मालाएँ उलझ गईं। मन में विचार आया कि रिश्तों और मालाओं में कोई फर्क नहीं है। माला ने जैसे एक संदेश दिया कि रिश्तों को फूल मालाओं की तरह रखो, तभी ये हर किसी के गले की शोभा बनेंगे वरना तो उलझ कर टूट जाएंगे। जैसे माला एक दूसरे में उलझ कर टूट जाती हैं। ऐसा इसलिए हुआ कि मालाएँ गड-मड हो गई। ऊपर नीचे हो गई। बस उलझ गई। जब उलझ गई तो उनको जल्दबाज़ी में नहीं सुलझाया जा सकता। उलझी मालाओं को सुलझाने के लिए धैर्य और समझदारी की आवश्यकता होती है। जल्दबाज़ी और झुंझलाने के नहीं। कौनसी माला का धागा किसमें उलझ गया....किस माला का फूल किस माला के फूल में अटक गया। फिर उनको इधर उधर से सहजता से निकालना...कभी किस धागे पकड़ना कभी किसी को। किसी को ज़ोर से,खीजे अंदाज में खींचा तो माला टूट जाएगी....फूल बिखर जाएंगे। टूटी माला किस काम की। रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं। एक एक फूल से माला बनती है तो एक एक मेम्बर से घर । एक माला एक घर। कई घर तो परिवार हो गए। सभी का अपना महत्व...खास महक...अलग रंग रूप...जुदा मिजाज। ठीक फूलों की तरह। माला की भांति। रिश्ते भी जब उलझते हैं तो उनको सुलझाना बड़ी ही मुश्किल का काम होता है। एक घर को खींच के इधर उधर करते हैं हैं तो वह किसी और में उलझ जाता है। कभी कोई धागा अटका कभी कोई फूल उलझा। ......बहुत समय लगता है उलझे रिश्ते सुलझाने में। कई बार तो उलझन ऐसी होती है कि कोई ना कोई “माला” तोड़नी पड़ती है। तोड़ा किसको जाता है जो सभी से उलझी हो...अब या तो वह “माला” छोटी हो जाएगी या टूट कर बिखर जाएगी। माली को देखो....वह कितनी ही मालाओं को सहेज कर रखता है...बंधी होती हैं सबकी सब एक धागे में। कहीं कोई उलझन नहीं। वह जानता है मालाओं का मिजाज...उनको बिना उलझाए रखने का ढंग। बस, बड़े परिवारों में पहले कोई ना कोई मुखिया होता जो अपने सभी घरों को इसी प्रकार रखता था। अपने अनुभव और धैर्य से वह या तो रिश्तों को उलझने देता ही नहीं था अगर उलझ भी जाते थे तो उसे उनको सुलझाना आता था बिना कोई “माला” को तोड़े। अब तो सब कुछ नहीं तो बहुत कुछ बदल गया। ना बड़े परिवार है ना कोई मुखिया। छोटे छोटे घर हैं..और एक एक घर के कई मुखिया। जब इन घरों के रिश्ते उलझते हैं तो फिर...फिर मामला बिगड़ जाता है। लोग बात बनाते हैं। जैसे किसी समारोह में.....अरे मालाएँ तो उलझ गई....टूट गई...ठीक से नहीं रखा....क्यों होता है ना ऐसा ही। “कचरा” पुस्तक की लाइन है---लबों कों खोल दे,तू कुछ तो बोल दे....मन की सारी, गाँठे प्यारी....इक दिन मुझ संग खोल दे.....तू मुझ से बोल रे...... ।
Thursday, August 9, 2012
प्रधानी की लूट
पंचायती राज में भारत के गाँव में ,
काली सी दाल पके पीपल के छाँव में !
नमक है किसका दाल है किसकी ,
मांगे हिसाब औकात है किसकी !
बिकता है मत मदिरा के अनुपात में ,
आरक्षण के कारण बाँट जात-२ में !
कुछ कर दे कर-२ कंगाल हो गए ,
कुछ गाँव के सरपंच के दलाल हो गए !
मूंछ वाला कोई तो कोई मुछ्मुंडा,
प्रधान का दाहिना हाथ है गुंडा !
कैसे हो देश में विकाश मूलभूत ,
गाँव में है मची प्रधानी की लूट !
-विनयतोष मिश्र
www.vinaytosh.blogspot.com
Sunday, April 1, 2012
Celebrating Urdu Poetry & the syncretic traditions it stands for
Mushaira Jashn-e-Bahar – 2012
By Madan Jha
Delhi:Poetry is a gift in any language. But when its Urdu poetry, and that too read live to an audience hungry for verse, no platform does it better than mushaira Jashn-e-Bahar. Continuing its tradition of bringing the best of contemporary Urdu poetry to its lovers, mushaira Jahsn-e-Bahar marks its 14th edition in the capital on Friday, April 6th 2012.
Javed Akhtar and Prof Waseem Barelvi, top Urdu poets from India, will share the stage with eminent Pakistani poets Zehra Nigah and Anwar Masood. America’s Max Bruce, globally popular for the freshness of his verse, will also be among a score of poets at this biggest non-official, non-political mushaira of the country, on the evening of Friday, April 6th, 2012, at Delhi Public School, Mathura Road, New Delhi.
Poetry unites across cultures, like noting else does. And this year Jashn-e-Bahar Trust brings together the bests of Urdu poets from the USA, the UK, the UAE, Canada, Pakistan and all over India. “We want to present the diversity in the practice of Urdu verse and its cross-cultural, and now global, richness to our audiences,” says Kamna Prasad, Founder of the non-profit Jashn-e-Bahar Trust that organized this international mushaira.
Our films, the diaspora and the potency of Urdu has created a remarkable global identity for this essentially Indian language and this year, mushaira Jashn-e-Bahar underscores this emerging aspect of Urdu’s poetic expression, says Kamna Prasad. In fact, in this information age, powered by IT, Urdu has crossed all barriers – be they international borders, its script, ethnicities or cultures, she adds.
Contrary to popular perception, Urdu, with its enchanting poetic expression, is becomingy increasingly popular among the youth as well. At Jashn-e-Bahar Trust, we always organise our mushairas in educational institutions. The idea is to showcase our rich literary heritage to the young minds. This year, the mushaira is also traveling to Karim college, Jamshedpur, as part of the same campaign and a school student from DPS will read his verse in the Delhi edition, Kamna Prasad says.
Contemporary Urdu poetry and the best of our syncretic cultural traditions are showcased at Mushaira Jashn-e-Bahar where modern calligraphy by eminent painter M F Husain representing the sweep and reach of Urdu, finds place amid cutting edge new media and set décor reminiscent of the classical age of Urdu poetry.
The poets list for the evening includes – Zehra Nigah and Anwar Masood, Pakistan; Max Bruce, USA; Dr Taqi Abedi, Canada; Basir Kazmi, UK; Dr Zubair Farooq Alarshi, UAE and Aziz Nabeel, Qatar. From India – Javed Akhtar, Prof Waseem Barelvi, Mansoor Usmani, Gauhar Raza, Dipti MIshra, Mukhtar Yusufi, Rajesh Reddy, Nasrin Naqqash and Nuzhat Anjum.
Thursday, March 29, 2012
Kumari Selja inaugurated 2nd Haryana Contemporary Art Exhibition
Sunday, October 23, 2011
दिवाली
नव सुवसना नारी नर सब आज स्वागत में भजे
धूप, चंदन, पुष्पमाला करें पूजन लक्ष्मी का
मलिनता और द्वेष ईर्षा आज के दिन सब त्यजें ।
नाना विविध पकवान से श्री भोग को अर्पित करें
प्रसाद ये फिर स्नेह पूर्वक साथ साथ ग्रहण करें
नमन मन से करें, विनती, देवि से समृध्दी की
घर द्वार आंगन नगर देश सब धान्य औ धन से भरे ।
सुख शांति का साम्राज्य हो पर देश हित तत्पर रहें
हमें असावध देख बैरी ना कोई खटपट करे
मजबूत हों सैनिक हमारे, नागरिक भी सशक्त हों
यही इच्छा करें और इसको कर्म से सुफल करे ।
सभी ब्लॉगर बंधु भगिनियों को दिवाली की अनेक शुभ कामनाएँ ।