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Sunday, August 23, 2009

लो क सं घ र्ष !: इर्ष्या से अधर सजाये....

यह स्वार्थ सिन्धु का गौरव अति पारावार प्रबल है सर्वश्व समाहित इसमें, आतप मार्तंड सबल है मृदुभाषा का मुख मंडल, है अंहकार की दारा सिंदूर -मोह-मद-चूनर, भुजपाश क्रोध की करा आश्वाशन आभा मंडित, इर्ष्या से अधर सजाये पर द्रोही कंचन काया, सुख शान्ति जलाती जाए डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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