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Thursday, August 20, 2009

लो क सं घ र्ष !: सरकारी गुन्ड़न से बंधू , बोलौ कैसे जान बची॥

नेता पुलिस दुऔ हत्यारे ,कैसे मान सम्मान बची। सरकारी गुन्ड़न से बंधू, बोलौ कैसे जान बची ॥ नेता जी सत्ता के बल पर, घर औ जमीन हथियाय रहे। जो करें शिकायत थाने पर, थानेदारो लातियाय रहे ॥ असहाय गरीब किसानन कै, अब कैसे खेत मकान बची। सरकारी गुन्ड़न से बंधू, बोलौ कैसे जान बची ॥ अपराधी चोर लुटेरा अब, सत्ता कै दामन थाम रहे। औ बड़े-बड़े आइ ए एस , सब उनका ठोक सलाम रहे ॥ कैसे देश की महिमा, कैसे देश कै गौरव गान बची। सरकारी गुन्ड़न से बंधू, बोलौ कैसे जान बची ॥ जहाँ देखो ठेकेदारन कै, बस अब तौ तूती बोल रही। माफिया कै नजर भाई टेढी , अफसरन कै कुर्सी डोल रही॥ कैसे ई दूषित समाज से, भारत कै पहिचान बची। सरकारी गुन्ड़न से बंधू , बोलौ कैसे जान बची॥ ईमानदार अधिकारीं का सत्ता कै गुंडे डांट रहे। भष्टाचारी अफसर नेता, सब मिलिकै बन्दर बाँट रहे॥ सीधे साँचे अधिकारिन कै , अब कैसे ईमान बची। सरकारी गुन्ड़न से बंधू , बोलौ कैसे जान बची॥ मोहम्मद जमील शास्त्री

1 comment:

हेमन्त कुमार said...

सही कहा आपने।आभार।

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