मानवता , करुणा, आशा,
विश्वाश, भक्ति , अभिलाषा।
अनुरक्ति, दया, सज्जनता,
चेरी है शान्ति , पिपासा ॥
कलिकाल तमस का प्रहरी,
नित गहराता जाता है।
मानव सदगुण को प्रतिपल,
कुछ क्षीण बना जाता है ॥
आहुति का भाग्य अनल है,
है पूर्ण स्वयं जलने में ।
परहित उत्सर्ग अकिंचन,
अप्रति हटी गति जलने में
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
Friday, August 28, 2009
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1 comment:
सच है।बेहतर।आभार।
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