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Thursday, August 27, 2009

लो क सं घ र्ष !: आहत है रवि शशि उडगन

है स्वतन्त्र जीव जगती का , बस स्वारथ से अनुशासित। शाश्वत है सत्य यही है, जीवन इससे अनुप्राणित आहत है सभी दिशायें, आहत धरती, जल, प्लावन है व्योम इसी से आहत, आहत है रवि शशि उडगन शिशु अश्रु बेंचती है यह , ममता , विनाशती बंधन। निर्धन का सब हर लेती, करती अर्थी पर नर्तन डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

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