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Friday, August 14, 2009

लो क सं घ र्ष !: वंशी की मधुरिम तानें...

वंशी की मधुरिम तानें है कौन छेड़ता मन में ? कुछ स्नेह-सुधा बरसता है कौन व्यष्टि के मन में ? रे कौन चमक जाता है, निर्भय सूखे सावन में। सागर का खारा पानी , अमृत बन जाता घन में॥ किसमें ऐसी गति है जो, सबमें गतिमयता भरता। मानव-मानस दर्पण में, है कौन अल्च्छित रहता ॥ डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

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