Saturday, August 29, 2009
लो क सं घ र्ष !: छायानट का सम्मोहन...
व्याकुल उद्वेलित लहरें,
पूर्णिमा -उदधि आलिंगन ।
आवृति नैराश्य विवशता ,
छायानट का सम्मोहन ॥
जगती तेरा सम्मोहन,
युग-युग की व्यथा पुरानी।
यामिनी सिसकती -काया,
सविता की आस पुरानी।
योवन की मधुशाला में,
बाला है पीने वाले।
चिंतन है यही बताता ,
साथी है खाली प्याले ॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'
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