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Tuesday, August 25, 2009

लो क सं घ र्ष !: ह्रदय-उपवन में एक बार ,प्रिय ! ........

युग-युग से प्यासे मन का , कुछ तो तुम प्यास बुझाते। ह्रदय-उपवन में एक बार ,प्रिय ! अब तो जाते॥ प्रतिक्षण रही निहार, अश्रुपूरित में आँखें राहें। मधुर मिलन को लालायित ये विह्वल व्याकुल बाहें दुःख भरी प्रेम की नगरी में, कुछ मधुर रागिनी गाते ह्रदय-उपवन में एक बार , प्रिय ! अब तो जाते इस निर्जन उपवन में भी, करते कुछ रोज बसेरा यहीं डाल देते प्रियवर ! मम उर में अपना डेरा॥ करते हम तन - मन न्योछावर ,जीवन - धन - दान लुटाते ह्रदय - उपवन में, एक बार, प्रिय ! अब तो जाते। सेज सजाकर तुम्हें सुलाते , निशदिन सेवा करते। इक टक पलकें खोल, नयन भर तुमको देखा करते निज व्यथित नयन - वारिधि में, प्रिय ! स्नान कराते ह्रदय उपवन में एक बार , प्रिय ! अबतो जाते अब पलक -पाँवडे राहो में , नयनो के बिछा दिए है। पग-पग पर हमने प्राणों के, दीपक भी जला दिए है॥ शून्य - शिखर जीवन - पथ हे, मंगलमय इसे बनाते ह्रदय - उपवन में एक बार, प्रिय! अब तो जाते कट सकेंगी तुम बिन , जीवन की लम्बी राहें रुक सकेंगी तुम बिन , दुःख- दर्द भरी ये आहें॥ निर्जीव व्यथित मम उर में , आशा का दीप जलाते ह्रदय उपवन में एक बार, प्रिय ! अब तो जाते॥ खुले रहेंगे सजल नयन , तृष्णा का अंत होगा। मधुर-मिलन जीवन , एक बार भी यदि होगा॥ विनती है यही तन-मन की, श्वासों में बस जाते। ह्रदय-उपवन में एक बार-प्रिय ! अब तो जाते॥ -मोहम्मद जमील शास्त्री

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