बंधन का ज्ञान किसे है ,
सन्दर्भ शून्य कर देता।
मादक मकरन्द लुटाता ,
अलि को पंकिल कर देता॥
भवसागर जीवन नैया ,
लघुता पर रोदन करती।
इश्वर की माया विस्तृत,
कर्मो का शोधन करती॥
प्रणय ज्वाल में तिल तिलकर
जीवन का जलते जाना।
प्रतिपल लघुता आभाषित ,
संयम का गलते जाना॥
डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"
Saturday, August 22, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया. उम्मीद करता हूँ, आगे भी ऐसी नज़रे-इनायत मिलती रहेगी
mushkil likha hai......par achha hai...
Post a Comment