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Sunday, August 30, 2009

लो क सं घ र्ष !: यूं नियति नटी नर्तित हो....

यूं नियति नटी नर्तित हो, श्रंखला तोड़ जाती है सम्बन्धों की मृदु छाया , आभास करा जाती है ईश्वरता और अमरता , कुछ माया की सुन्दरता शिव सत्य स्वयं बन जाए, जीवन की गुण ग्राहकता जग में पलकों का खुलना, फिर सपनो की परछाई आसक्त-व्यथा का क्रंदन, कहता जीवन पहुनाई -डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

हेमन्त कुमार said...

बेहतर भावाभिव्यक्ति ।

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