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Friday, August 28, 2009

लो क सं घ र्ष !: कलिकाल तमस का प्रहरी...

मानवता , करुणा, आशा, विश्वाश, भक्ति , अभिलाषा अनुरक्ति, दया, सज्जनता, चेरी है शान्ति , पिपासा कलिकाल तमस का प्रहरी, नित गहराता जाता है मानव सदगुण को प्रतिपल, कुछ क्षीण बना जाता है आहुति का भाग्य अनल है, है पूर्ण स्वयं जलने में परहित उत्सर्ग अकिंचन, अप्रति हटी गति जलने में डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल 'राही'

1 comment:

हेमन्त कुमार said...

सच है।बेहतर।आभार।

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