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Tuesday, August 25, 2009

लो क सं घ र्ष !: लालच की रक्तिम आँखें...

लालच की रक्तिम आँखें , भृकुटी छल बल से गहरी असत रंगे दोनों कपोल ,
असी-काम पार्श्व में प्रहरी
मन में मालिन्य भरा है , 'स्व' तक संसार है सीमित संसृति विकास अवरोधी , कलि कलुष असार असीमित सव रस छलना आँचल में , कल्पना तीत सम्मोहन सम्बन्ध तिरोहित होते , क्रूरता करे आरोहन डॉक्टर यशवीर सिंह चंदेल "राही"

2 comments:

आशा जोगळेकर said...

Bap re ! stree ke prati itana awishwas.

jamos jhalla said...

Yeh bhee jeevan kaa ek roop hai.lekin yashveer ji jara HINDI mai likhaa karo.
jhalli-kalam-se
jhalli gallan
angrezivichar.blogspot.com

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