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Tuesday, December 9, 2008

२६ नवंबर,2008

मस्त संगीत रोशनी मध्दम जिव्हा की तृप्ती माहौल में एक अजीब सी लहराती मस्ती अचानक चलती गोलियाँ सन् सन् जिंदगी सस्ती आँखों के सामने मृत्यु का तांडव करवाते दानव फटते बम धुआँ और आग चीखें पुकारतीं यह घमासान फिर हैं भी दौडते कुछ इन्सान रखते हैं लोगों को सुरक्षित जान पर खेल कर और वे शूर वीर वे जाँ-बांज आते हैं दौड कर लगे रहते हैं जब तक न खत्म होता आतंक जीवट से लडते हैं सीमित साधनों से, प्राण खोते हुए अंत में लहराते हैं मुस्कुराते हुए जीत का तिरंगा नसीबों वाले बच जाने वाले शुक्र मनाते हैं यह आतंक तो हुआ खत्म पर आगे क्या ?

3 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

उन्होंने तो अपना कर्तव्य बखूबी निभाया. उनको शत शत नमन. पर क्या हम सब अपनी जिम्मेदारियों को समझ पायेंगे. आख़िर कब हमलोग जन-प्रतिनिधिओं का सही सही चुनाव करेंगे.

सुलभ पत्र

Prakash Badal said...

bahut badhiyaa, aapke rachanaa yathaarh batati hai

पुरुषोत्तम कुमार said...

यह आतंक तो खत्म हुआ, अब आगे क्या होगा?
बहुत अच्छी कविता।

सुरक्षा अस्त्र

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