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Saturday, September 6, 2008

"दर्द का वादा"

"दर्द का वादा"

जिंदगी का ना जाने मुझसे और तकाजा क्या है ,
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ????
एहसान तेरा है की दुःख दर्द का सैलाब दिया ,
मेरी आँखों को तुने आंसुओं से तार दिया..
एक बार भी न समझा मुझे भाता क्या है?????
छीन कर बैठ गयी मेरी मोहब्बत को कभी,
जब भी मिली एक नयी चाल मेरे साथ चली,
मेरी तकदीर से अब तेरा इरादा क्या है??????
जब भी मिलती है कहीं रूठ के चल देती है,
मेरे दिल को तू फिर एक बार मसल देती है
हैरान हूँ मुकदर को मेरे तराशा क्या है ?????
कौन सी खताओं की मुझे रोज सजा देती है,
मुश्किलें डाल के बस मौत का पता देती है ...
तेरा अब मेरी वफाओं मे और इजाफा क्या है ?????
जिंदगी का ना जाने मुझसे और तकाजा क्या है ,
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है????

4 comments:

राज भाटिय़ा said...

वाह आप ने तो इस गजल मे पुरी जिन्दगी का फ़लसफ़ा ही लिख दिया...
जिंदगी का ना जाने मुझसे और तकाजा क्या है ,
धन्यवाद

व्‍यंग्‍य-बाण said...

jindagi aur bataa tera irada kya hai.aapki kavita late mukesh ji ke geet se milti julti hai.fir bhi achchhi kavita hai.thanks.

Gali-koocha said...

sachmuch dard ka vada esa hi hota hai. Jise dard milta hai vahi jan sakta hai.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

aapka dard shabdon me utar kar kavita ban gya.go ahead.-govind goyal sriganganagar

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