Thursday, September 25, 2008
एक बार की बात है
एक बार की बात है श्रीगंगानगर में एक नेता हुआ करता था। आर्थिक रूप से बहुत कमजोर वह नेता आम जन के लिए बहुत उपयोगी था। कुछ नहीं था फ़िर भी उसके यहाँ कम करवाने वालों की भीड़ लगी रहती थी। वह जाने माने राज नेता भैरों सिंह शेखावत का भी खास था। १९९३ में उसने श्रीगंगानगर से जनता दल की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा। मगर बहुत कम वोट से हार गया। इस चुनाव में भैरों सिंह शेखावत तीसरे स्थान पर रहे। हारने के बाद भी जनता का उस नेता से और नेता का जनता से मोह भंग नही हुआ। दोनों का प्रेम बना रहा। पॉँच साल गुजर गए। विधानसभा के चुनाव में इस बार नेता जी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे। जनता फ़िर साथ लगी। इस बार भी कम अन्तर से नेता जी विधायक बनने से रह गए। खैर वक्त ने तो बीतना ही था, सो बीता। २००३ में फ़िर विधानसभा चुनाव आए। इस बार नेता जी के हाथ में बीजेपी की टिकट थी। जनता इसके पीछे पागल हो गई।नेता जी को रिकॉर्ड मतों से जीता कर विधानसभा भेजा। बस तब से नेता जी का हाजमा बिगड़ गया। जो मित्र घर का खर्च वहां करते थे उनसे लेकर आम जन तक से व्यवहार करने का उनका स्टाइल बदल गया। अपने साथी नेता पर जान लेवा हमला करवाने की शाजिश रचने के आरोप में न्यायिक हिरासत में भी रहा। इस मामले का मुख्य आरोपी तो अभी तक फरार है जो नेता जी का पीए था। और भी ना जाने क्या क्या हुआ। श्रीगंगानगर की जनता नेता जी से दूर और बहुत दूर हो गई। आज अखबार में नेता जी कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी के साथ खड़े हुए थे। वे अब इस बार का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ने के मूड में हैं। पता नहीं वहां की जनता का क्या होगा जहाँ से ये चुनाव लडेंगें। राजस्थान के निवासी तो इस नेता जी को जान ही गए होंगें बाकी भी थोडी देर में जान जायेंगें। जिसने दुःख दर्द में नेता जी का साथ दिया नेता जी उनके ही नहीं हुए तो कांग्रेस के क्या होंगे जिसकी तमाम उमर उन्होंने खिलाफत की है। आदरणीय,सुबह सुबह स्मरणीय, पूजनीय,इस नेता का नाम है श्री श्री सुरेन्द्र सिंह राठौर । जब २००३ में ये चुनाव जीते तब जन जन को ऐसा लगा जैसे श्रीगंगानगर को लम्बी काली रात के बाद भोर का उजाला नसीब हुआ हो। तब कोई क्या जानता था कि रात और काली होने वाली है। चलो जो कुछ हुआ उस से कांग्रेस की नेता सोनिया जी को क्या सरोकार हो सकता है। उन्होंने तो राजनीती करनी है। उनकी बला से किसी के भी सपने खाक में मिले उनको क्या। यही तो है "राजनीती" जिसमे नीति तो गायब हो गई बस राज रह गया। राज करना है राज से।
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