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"आँखें "
तुम्हें देखने को तरसती हैं आँखें,
बहोत याद कर के बरसती हैं ऑंखें...........
जब जब ख्यालों में लातें हैं तुमको,
शर्मो हया से लरजती हैं ऑंखें ............
फूलों का तबस्सुम, या पतझड़ का मौसम,
तेरी बाट मे ही सरकती हैं ऑंखें.................
यूँ तन्हाई मे जब बिखरता है दामन,
तेरे साथ को बस सिसकती हैं आंखें...........
चिरागों के लौ मे भी जान ना रहे जब,
ग़म -ऐ-इश्क में फिर दहकती हैं ऑंखें...........
2 comments:
तुम्हें देखने को तरसती हैं आँखें,
बहुत ही प्यारी कविता हे आंखो पर धन्यवाद
चिरागों के लौ मे भी जान ना रहे जब,
ग़म -ऐ-इश्क में फिर दहकती हैं ऑंखें.
wah kya bat hai.
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