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Wednesday, September 3, 2008

"तुम्हें पा रहा हूँ"

"तुम्हें पा रहा हूँ" तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ, लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ.... ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम, मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........ शमा बन के तुम सामने जल रही हो, मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ .... तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ, युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ... अभी तो भटकती ही राहों में उलझा, नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ.... नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा, नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ...... बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है, तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ.......... कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम, मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........

4 comments:

MANVINDER BHIMBER said...

hi ,
tum kaya likhri ho...
jaa ...maja aa gya...
kai baar pad chuki hu

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर ,
धन्यवाद

Arvind Mishra said...

उसी चिरन्तन कशिश की एक पुरजोर अभिव्यक्ति

Asha Joglekar said...

seemaji wakaee aapke kalam to kmal ke hain.

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