हमारी बोलने की आदत से
परेशां होते हो तुम
और गुस्सा करके
चले जाते हो कही
आज देखो हम मौन है
और हमारे आसपास बिखरी
अनगिनत खामोशिया
फिर भी तुम्हारी गुस्सा करने की
अदा का इंतज़ार बाकि
शायाद अपनी अपनी आदत की बात है .......
एक अजब खामोश धड़कन शुन्य में भी आती जीसकी आवाज खोजता हूँ हर तरफ़ दर्द का पता नही हर रोज सवाल करता हूँ समाधान पाता नही एक अजब खामोश धड़कन वीचलीतहो रहा मन मन वीराने में घुलकर खो गया लगा राह में कही पर गुम हो गया बेजान आखें देखती रही वह आखों से ओझल हो गया एक सुनसान घर देखता रहा एकटक अंदर से आती आवाज वो अजीब अँधेरी रात मै गया सहम एक अजब खामोश धड़कन
हमारी बोलने की आदत से परेशां होते हो तुम और गुस्सा करके चले जाते हो कही. आज देखो हम मौन है और हमारे आसपास बिखरी अनगिनत खामोशिया फिर भी तुम्हारी गुस्सा करने की अदा का इंतज़ार बाकि शायाद अपनी अपनी आदत की बात है | --------
महक जी,
आपकी यह कविता मेरे वर्तमान जीवन की सच्चाई से बहुत मिलती है | दिल की गहराईयों तक उतर गई |मेरे अंतर्मन को छू लिया |
खामोशियाँ भी बोलती हैं.......
जब तुम पास थे,
तब...
हर शै चहकती थी हर दिशा सतरंगी थी हर फ़िज़ां में रंगत थी हर नज़र में तुम ही तुम थीं
अब तुम पास नहीं हो अब खामोशियाँ भी खामोश हैं और तन्हाईयाँ भी तन्हाँ........
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7 comments:
बहुत गहरी बात कह दी आप ने इस छोटी सी कविता मे .
धन्यवाद
चले जाते हो कही
आज देखो हम मौन है
और हमारे आसपास बिखरी
अनगिनत खामोशिया
एक अजब खामोश धड़कन
शुन्य में भी आती जीसकी आवाज
खोजता हूँ हर तरफ़
दर्द का पता नही
हर रोज सवाल करता हूँ
समाधान पाता नही
एक अजब खामोश धड़कन
वीचलीतहो रहा मन
मन वीराने में घुलकर खो गया
लगा राह में कही पर गुम हो गया
बेजान आखें देखती रही
वह आखों से ओझल हो गया
एक सुनसान घर
देखता रहा एकटक
अंदर से आती आवाज
वो अजीब अँधेरी रात
मै गया सहम
एक अजब खामोश धड़कन
hum maun hai line bahut meaningful hai.
Bahut sunder mehek ji.
... बहुत खूब, प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
हमारी बोलने की आदत से
परेशां होते हो तुम
और गुस्सा करके
चले जाते हो कही.
आज देखो हम मौन है
और हमारे आसपास बिखरी
अनगिनत खामोशिया
फिर भी तुम्हारी गुस्सा करने की
अदा का इंतज़ार बाकि
शायाद अपनी अपनी आदत की बात है |
--------
महक जी,
आपकी यह कविता मेरे वर्तमान जीवन की सच्चाई से बहुत मिलती है | दिल की गहराईयों तक उतर गई |मेरे अंतर्मन को छू लिया |
खामोशियाँ भी बोलती हैं.......
जब तुम पास थे,
तब...
हर शै चहकती थी
हर दिशा सतरंगी थी
हर फ़िज़ां में रंगत थी
हर नज़र में तुम ही तुम थीं
अब तुम पास नहीं हो
अब खामोशियाँ भी खामोश हैं
और
तन्हाईयाँ भी तन्हाँ........
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