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Wednesday, December 31, 2008

साल 2008

1. दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई. 2. इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे धोनी नम्बर 1, सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे. 3. विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे Happy New Year to Rangkarmi family and all Readers. - Sulabh Jaiswal

अलविदा-2008

साल 2008 का अन्तिम सूर्यास्त
जैसे कह रहा हो :-
सूरज हूँ ज़िन्दगी की रमक छोड़ जाऊँगा, मैं डूब भी गया तो शफक छोड़ जाऊँगा।

" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"

" नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं"
दुखदायी जो पल थे उन्हें भुलाएं मधुर स्म्रतियों से नव वर्ष को गले लगायें , करते है दुआ हम रब से सर झुकाके ... इस साल के सारे सपने पुरे हो आपके.
"नव वर्ष २००९ - आप सभी ब्लॉग परिवार और समस्त देश वासियों के परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं "

आया नव वर्ष आया

आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार दे रहा है ये दस्तक , बार बार ! बीते बरस की बातों को , दे बिसार लेकर आया है ये , खुशियाँ और प्यार ! खुले बाहों से स्वागत कर ,इसका यार और मान ,अपने ईश्वर का आभार ! आओ , कुछ नया संकल्प करें यार मिटायें ,आपसी बैर ,भेदभाव ,यार ! लोगो में बाटें ,दोस्ती का उपहार और दिलो में भरे , बस प्यार ही प्यार ! अपने घर, समाज, और देश से करें प्यार हम सब एक है , ये दुनिया को बता दे यार ! कोई नया हूनर ,आओ सीखें यार जमाने को बता दे , हम क्या है यार ! आप सबको ,है विजय का प्यारा सा नमस्कार नव वर्ष मंगलमय हो ,यही है मेरी कामना यार ! आया नव वर्ष ,आया आपके द्वार दे रहा है ये दस्तक , बार बार !

प्रीत,प्यार और स्नेह की धरा पर

वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना ये वो जगह है जहाँ पर श्री कृष्ण- राधा के अलावा कुछ भी नहीं है। गत पांच दिनों में से चार दिन इन्ही के सानिध्य में गुजरे। राधा कभी थी या नहीं, लेकिन आज इन स्थानों के चप्पे चप्पे पर राधा ही राधा है। बहती हवा राधा राधा करके कान के पास से उसके होने का अहसास करवाती है। दीवारों पर राधा, श्री राधा लिखा हुआ है। एक रिक्शा वाला भी घंटी नहीं बजाता, राधे राधे बोलकर राहगीरों को रास्ता छोड़ने को कहता है। वृन्दावन में ५५०० मन्दिर हैं। सब के सब राधा कृष्ण के। बांके बिहारी का मन्दिर, कोई समय ऐसा नहीं जब भीड़ ना होती हो। मन्दिर में आते ही मन निर्मल हो जाता है। आंखों के सामने, मन में केवल होता है बांके बिहारी। रास बिहारी मन्दिर। मन्दिर में चार शतक पुरानी मूर्तियाँ हैं। मगर ऐसा लगता है जैसे आज ही उनको घडा गया हो। मन्दिर का रूप रंग देखते देखते मन नहीं भरता। श्री रंगराज का मन्दिर। मन्दिर में सोने की मूर्तियाँ, उनके सोने के वाहन,सोने के गरुड़ खंभ। क्या कहने! गोवर्धन की परिकर्मा। लोगों की आस्था को नमन करने के अलावा कुछ करने को जी नहीं हुआ। वाहन के लोग कहते हैं। वृन्दावन,नंदगाँव,बरसाना दूध दही का खाना। इस क्षेत्र में ताली बजाकर हंसने का भी बहुत महत्व है। हर किसी से सुनने को मिल जाएगा-जो वृन्दावन में हँसे,उसका घर सुख से बसे। जो वृन्दावन में roye वो अपने नैना खोये।वहां मधुवन है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ श्री कृष्ण गोपियों के संग रास रचाया करते थे। अब भी ऐसा होता है। इसलिए मधुवन में रात को किसी को भी रुकने नही दिया जाता। बाकायदा ढूंढ़ ढूंढ़ कर सबको वन से बहार निकल दिया जाता है। वृन्दावन में बंदरों का बहुत बोलबाला है। लेकिन आप उनके सामने राधे राधे बोलोगे तो बन्दर चुपचाप आपके निकट से चला जाएगा। इन बंदरों को चश्मा और पर्स बहुत पसंद हैं। पलक झपकते ही आपका चश्मा उतार लेंगें। इसलिए जगह जगह लिखा हुआ है कि चश्मा और पर्स संभाल कर रखें। यहाँ एक मन्दिर है इस्कोन। मन्दिर में कैमरा मोबाइल फ़ोन तक नहीं ले जा सकते। मन्दिर के अन्दर आरती के समय जब "हरे कृष्णा हरे कृष्णा, कृष्णा कृष्णा हरे हरे,हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" के स्वर गूंजते हैं तो हर कोई अपने आप ही झुमने को मजबूर हो जाता है। कृष्ण नाम की ऐसी मस्ती आती है की मन्दिर से जाने को जी नहीं करता। मथुरा तो है ही कृष्ण की जन्म स्थली। जन्म स्थली पर सी आर पी एफ की चौकसी है। सब कुछ देखने लायक। चार दिन कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अब उस व्यक्ति के बारे जिसकी भावना के चलते हम इन स्थानों के दर्शन कर सके। उनका नाम हैं श्री मारुती नंदन शास्त्री। कथा वाचक हैं, मुझ से स्नेह करतें हैं। उनका कोई आयोजन था। उन्होंने स्नेह से बुलाया और हम कच्चे धागे से बंधे चले गए। कहतें हैं कि वृन्दावन में किसी ना किसी बहाने से ही आना होता है। अगर आप सीधे वृन्दावन आने को प्रोग्राम बनाओगे तो आना सम्भव नही होता। इसलिए शास्त्री जी को धन्यवाद जिनके कारन हम प्रेम की नगरी में आ सके।

कम्बल

तेरी यादों का कम्बल लपेट कर घुमती है वो आज कल गुलाबी ठण्ड को इससे बढ़िया गर्माहट भला मिलती और कही

Tuesday, December 30, 2008

युद्ध? को भी बना देंगें बाज़ार

इतने दिन कहाँ रहा, ये चर्चा बाद में, पहले उस "युद्ध" की बात जिसका अभी कोई अता पता ही नही है। इन दिनों शायद ही कोई ऐसा मीडिया होगा जो "युद्ध" युद्ध" ना चिल्ला रहा हो। हर कोई "युद्ध" को अपने पाठकों को "बेच" रहा है जैसे कोई पांच पांच पैसे की गोली बेच रहा हो। इतने जिम्मेदार लोगों ने इसको बहुत ही हलके तरीके से ले रखा है। मेरा शहर बॉर्डर के निकट है। हमने १९७१ के युद्ध के समय भी बहुत कुछ झेला और देखा। इसके बाद वह समय भी देखा जब संसद पर हमले के बाद सीमा के निकट सेना को भेज दिया गया था। बॉर्डर के पास बारूदी सुरंगे बिछाई गई थी। तब पता नहीं कितने ही लोग इन सुरंगों की चपेट में आकर विकलांग हो गए। अब ऐसी कोई बात नहीं है। मैं ख़ुद बॉर्डर पर होकर आया हूँ। पुरा हाल देखा और जाना है। पाक में चाहे जो हो रहा हो, भारत में सेना अभी भी अपनी बैरकों में ही है। बॉर्डर की और जाने वाली किसी सड़क या गली पर सेना की आवाजाही नहीं है। मीडिया में पता नहीं क्या क्या दिखाया,बोला और लिखा जा रहा है। ठीक है वातावरण में तनाव है, दोनों पक्षों में वाक युद्ध हो रहा है, मगर इसको युद्ध की तरह परोसना, कमाल है या मज़बूरी?अख़बारों में बॉर्डर के निकट रहने वाले लोगों के देश प्रेम से ओत प्रोत वक्तव्य छाप रहें हैं।अब कोई ये तो कहने से रहा कि हम कमजोर हैं या हम सेना को अपने खेत नहीं देंगें। मुफ्त में देता भी कौन है। जिस जिस खेत में सुरंगें बिछाई गई थीं उनके मालिकों को हर्जाना दिया गया था। हमारे इस बॉर्डर पर तो सीमा सुरक्षा बल अपनी ड्यूटी कर रहा है. सेना उनके आस पास नहीं है। हैरानी तो तब होती है जब दिल्ली ,जयपुर के बड़े बड़े पत्रकार ये कहतें हैं कि आपके इलाके में सेना की हलचल शुरू हो गई। अब उनको कौन बताये कि इस इलाके में कई सैनिक छावनियां हैं , ऐसे में यहाँ सेना की हलचल एक सामान्य बात है। आम जन सही कहता है कि युद्ध केवल मीडिया में हो रहा है।

Saturday, December 27, 2008

चोरी करना पाप है

हद है! अब ब्लॉग पर भी चोरी होने लगी ।मामला ताजा है , फरवरी २००८ में ही कृत्या मॆ धूमिल पर एक आलेख छपा था, लेखक थे जाने माने कवि और आलोचक भाई सुशील कुमार। अब इसी को शब्दशः चुरा कर मुकुन्द नामक व्यक्ति ने कालचक्र पर छाप दिया है। यहाँ तक कि क़ोटेशन भी वही है।यह ब्लाग की मस्त कलन्दरी दुनिया को गन्दा करने वाला प्रयास है। इसकी लानत मलामत की जानी चाहिये।सबूत के लिये यहाँ

दोनों लिन्क दे रहा हूँ ।http://www.kritya.in/0309/hn/editors_choice.html इस पर सुशील जी का आलेख फ़रवरी मे छपा।http://kalchakra-mukund.blogspot.com/2008/09/blog-post_5626.html इस पर है मुकुन्द जी का स्वचुरित लेख है।

फ़ैसला आप ब्लागर देश के नागरिकों का।

Thursday, December 25, 2008

हैप्पी क्रिसमस

आप सभी को

रंगकर्मी परिवार की ओर से

क्रिसमस की ढेरों शुभकामनाऐं।

Monday, December 22, 2008

मंदी की मार, पत्रकार बेकार

श्रीगंगानगर में पत्रकारों पर मंदी की मार का असर होने लगा है। हिंदुस्तान के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया ग्रुप दैनिक भास्कर के श्रीगंगानगर संस्करण से दो पत्रकारों को नौकरी से अलग कर दिया गया है। इसके विरोध में आज राजस्थान पत्रकार संघ और श्रमजीवी पत्रकार संघ ने अखबार के स्थानीय ऑफिस के आगे धरना देकर एक ज्ञापन कार्यकारी सम्पादक को दिया। ज्ञापन ग्रुप के चेयरमेन के नाम था। धरना स्थल पर अखबार के प्रतियाँ जलाई गईं। यह पहला मौका था जब पत्रकारों के संगठनो ने पत्रकारों को निकाले जाने के विरोध में धरना दिया। श्रीगंगानगर में बड़ी संख्या में दैनिक अख़बार प्रकाशित होते हैं। यहाँ अक्सर कोई ना कोई अखबार के sanchalak किसी reporter को रखते या नौकरी से अलग करते रहें हैं।तीन माह पहले तो एक चलता दैनिक अख़बार समाचार भारती अचानक बंद कर दिया गया। वी ओ आई ने अपना श्रीगंगानगर ऑफिस बंद करके कई जनों को चलता कर दिया था। तब किसी ने इस प्रकार का विरोध नही किया। चलो, देर आयद दुरस्त आयद। उम्मीद है यह सिलसिला बरक़रार रहेगा।

Sunday, December 21, 2008

मैं चाहता हूं

मैं चाहता हूं एक दिन आओ तुम इस तरह कि जैसे यूं ही आ जाती है ओस की बूंद किसी उदास पीले पत्ते पर और थिरकती रहती है देर तक मैं चाहता हूं एक दिन आओ तुम जैसे यूं ही किसी सुबह की पहली अंगड़ाइ के साथ होठों पर आ जाता है वर्षों पहले सुना कोई सादा सा गीत और पहले चुम्बन के स्वाद सा मैं चाहता हूं एक दिन यूं ही पुकारो तुम मेरा नाम जैसे शब्दों से खेलते-खेलते कोई बच्चा रच देता है पहली कविता और फिर गुनगुनाता रहता है बेखयाली में मैं चाहता हूं यूं ही किसी दिन ढूंढते हुए कुछ और तुम ढूंढ लो मेरे कोई पुराना सा ख़त और उदास होने से पहले देर तक मुस्कराती रहो मै चाहता हूँ यूँ ही कभी आ बैठो तुम उस पुराने रेस्तरां की पुरानी वाली सीट पर और सिर्फ एक काफी मंगाकर दोनों हाथों से पियो बारी बारी मैं चाहता हूँ इस तेजी से भागती समय की गाड़ी के लिए कुछ मासूम से कस्बाई स्टेशन

अशोक कुमार पाण्डेय

http://asuvidha.blogspot.com/

एक छोटी सी कहानी-प्यार की

एक अंधी लडकी थी । उसे उसके एक दोस्त के अलावा सबने ठुकरा दिया था । पर वो दोस्त उससे बहुत प्यार करता था । लडकी रोज़ उससे ये कहती कि अगर वो उसे देख पाती तो उसी से शादी करती । एक दिन किसी ने उस लडकी को अपने आंखे दे दीं । जब वो देखने लगी तो उसने देखा की उसका वह दोस्त अंधा था । लड़के ने उससे पूछा की क्या अब वो उससे शादी करेगी ? लडकी ने साफ़ इनकार कर दिया । इस पर उसका दोस्त मुस्कुराया और चुप चाप उसे एक कागज़ देकर चला गया । उस पर लिखा था -
"मेरी आखों का ख्याल रखना"

बचपन के अनोखे दिन

बचपन में हम उन दिनों बहुत ज्यादा शरमाते थे. कविता के दो लाइन भी खुलकर नही बोल पाते थे.

दूरदर्शन के आगे बैठ जंगल- जिंगल गाते थे. पापा घर में आ जाये तब डर से उनके घबराते थे.  

....................आगे पढ़े

Saturday, December 20, 2008

----चुटकी----

जिसका ना दीन ना कोई ईमान, उसका नाम है पाकिस्तान। ----गोविन्द गोयल

Friday, December 19, 2008

कमाऊ पूत की उपेक्षा

अक्सर यह सुनने को मिल ही जाता है कि माँ भी उस संतान का थोड़ा पक्ष जरुर लेती है जो घर चलने में सबसे अधिक योगदान देता हो। किंतु राजनीति में ऐसा नही है। ऐसा होता तो राजस्थान के सी एम अशोक गहलोत अपने मंत्री मंडल गठन में श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ की उपेक्षा नही करते। दोनों जिले खासकर श्रीगंगानगर आर्थिक,सामाजिकऔर सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। किंतु श्री गहलोत ने अपने मंत्री मंडल में इस जिले के किसी विधायक को शामिल नही किया। यह जिला सरकार को सबसे अधिक राजस्व देता है,लेकिन इसकी कोई राजनीतिक पहुँच दिल्ली और जयपुर के राजनीतिक गलियारों में नही है। श्रीगंगानगर-हनुमानगढ़ जिले से कांग्रेस को ६ विधायक मिले। इसके अलावा २ निर्दलियों ने सरकार बनने हेतु अशोक गहलोत ने समर्थन दिया। समर्थन देने वाला एक निर्दलीय सिख समाज से है इसी ने सबसे पहले अशोक गहलोत को समर्थन दिया। यह पहले भी विधायक रह चुका है। सब लोग यहाँ तक की मीडिया भी सभी क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व मिलने के गीत गा रहा है। पता नहीं उनका ध्यान भारत-पाक सीमा से सटे श्रीगंगानगर जिले की ओर क्यूँ नही जाता। क्या इस इलाके के विधायक उस गोलमा देवी जितने भी लायक नहीं जिसको शपथ लेनी भी नही आई। इस से साफ साबित होता है कि जयपुर के राजनीतिक गलियारों में हमारे जिले की क्या अहमियत है। किसी को यह सुनने में अटपटा लगेगा कि राजस्थान के इस लाडले जिले की कई मंडियों में रेल लाइन तक नहीं है जबकि वहां करोड़ों रुपयों का कारोबार हर साल होता है। छोटे से छोटा मुकदमा भी एस पी की इजाजत के बिना दर्ज नही होता। जिला कलेक्टर ओर एस पी नगर की गली ओर बाज़ार तक नहीं जानते। उनके पास नगर के ऐसे पॉँच आदमी भी नहीं जो नगर में कोई कांड होने पर उनकी मदद को आ सके, या उनके कहने से विवाद निपटाने आगे आयें। यहाँ उसी की सुनवाई होती है या तो जिसके पैर में जूता है या काम के पूरे दाम। इसके अलावा कुछ नहीं । हमारें नेताओं में इतनी हिम्मत ही नहीं जो अपना दबदबा जयपुर और दिल्ली के गलियारों में दिखा सकें। "चिंताजनक हैं आज जो हालात मेरी जां,हैं सब ये सियासत के कमालात मेरी जां" "खुदगर्जियों के जाल में उलझे हुये हैं सब,सुनकर समझिये सबके ख्यालात मेरी जां" "अब अपराधियों से ख़ुद ही निपटो, फरियादी का तो रपट लिखवाना मना है"

रिश्ता

तुझे देखा नही ,पर तुझे चाह लिया तुझे ढूँढा नही , पर तुझे पा लिया .. सच !!! कैसे कैसे जादू होतें है ज़िन्दगी के बाजारों में .... रिश्ता अभी अभी मिले है , पर जन्मों की बात लगती है हमारा रिश्ता ख्वाबों की बारात लगती है आओं...एक रिश्ता हम उगा ले ; ज़िन्दगी के बरगद पर , तुम कुछ लम्हों की रोशनी फैला दो , मैं कुछ यादो की झालर बिछा दूँ .. कुछ तेरी साँसे , कुछ मेरी साँसे . इस रिश्ते के नाम उधार दे दे... आओ , एक खवाब बुन ले इस रिश्ते में जो इस उम्र को ठहरा दे ; एक ऐसे मोड़ पर .... जहाँ मैं तेरी आँखों से आंसू चुरा लूँ जहाँ मैं तेरी झोली ,खुशियों से भर दूँ जहाँ मैं अपनी हँसी तुझे दे दूँ .. जहाँ मैं अपनी साँसों में तेरी खुशबु भर लूँ जहाँ मैं अपनी तकदीर में तेरा नाम लिख दूँ जहाँ मैं तुझ में पनाह पा लूँ ... आओ , एक रिश्ता बनाये जिसका कोई नाम न हो जिसमे रूह की बात हो .. और सिर्फ़ तू मेरे साथ हो ... और मोहब्बत के दरवेश कहे अल्लाह , क्या मोहब्बत है !!! vijay kumar sappatti B : http://poemsofvijay.blogspot.com/ M : +91 9849746500 E : vksappatti@gmail.com

Thursday, December 18, 2008

"नवभारत टाईम्स का आभार "

"नवभारत टाईम्स का आभार "
" मेरी रचना "ख्वाबों के आँगन " को नवभारत टाईम्स ने १७/१२/२००८ अपनी साइट http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3846072.cms#write पर जगह देकर मुझे जो मान सम्मान दिया है, उसके लिए मैं सम्पादक जी की दिल से आभारी हूं." अपने अभी पाठको का तहे दिल से शुक्रिया जिन्होंने इस रचना को पढ़कर मुझे एक बार फ़िर से प्रोत्साहन और आशीर्वाद दिया है" 'आभार'

एक और बयान बहादुर

महाराष्ट्र के एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे शहीद हुए या मारे गए? यह बहस थमी तो नई बहस आगे बढ़ाई गई है। इस बहस की शुरुआत दरअसल पाकिस्तानी मीडिया ने की थी। वहां भी बहस आशंका के रूप में थी, करकरे को गोली मालेगांव धमाकों से जुड़े लोगों ने तो नहीं मारी? पाकिस्तानी मीडिया की आशंका पाक सरकार को स्वर देने की कवायद थी। अब कुछ दिनों बाद केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एआर अंतुले भी यही बात कह रहे हैं। पूरा देश जिस केंद्र सरकार से पाकिस्तान पर हमले की मांग कर रहा है, उस सरकार का एक वरिष्ठ मंत्री उसी पाक के सुर में सुर मिला रहा है। इसे ही सियासत कहते हैं। यहां देश की भावनाएं नहीं देखी जाती, वोट देखा जाता है। क्या करेंगे, राजनीति को यूं ही तो दलदल नहीं कहा जाता। अंतुले की एक और बात पर गौर करें। अंतुले कहते हैं पाकिस्तानी आतंकियों के पास एटीएस प्रमुख करकरे को मारने की कोई वजह नहीं थी। मतलब, मुंबई पर आतंकी हमलों में जितने लोगों ने जान गंवाई, उन्हें मारने की आतंकियों के पास वजह थी। (लगे हाथों अंतुले यह भी बता देते तो ज्यादा अच्छा रहता कि वह वजह क्या है)। अंतुले का यह बयान कहीं न कहीं आतंकियों की कारॆवाई को एक आधार भी देता है। हमारे केंद्रीय मंत्री का बयान हमें बताता है कि आतंकी बेवजह किसी को नहीं मारते। पाक परस्त आतंकी अरसे से भारत में खूनखराबा कर रहे हैं। हम मानते हों या नहीं, मंत्री जी मानते हैं कि इसकी वजह है। और वो मानते हैं, तो आपको सुनना-पढ़ना होगा। क्या करेंगे, अभिव्यक्ति की आजादी तो उनके लिए भी है। हो सकता है, कुछ लोग अंतुले की आशंका से सहमत हों। तब भी इस बयान को गैर-जिम्मेदाराना ही माना जाएगा। अगर इस तरह की कोई आशंका है, तो पहले उसकी जांच होनी चाहिए। जांच में यह बात स्थापित होती, तब कही जाती। जांच किए जाने की बात अंतुले भी कह रहे हैं। अंतुले केंद्र के वरिष्ठ मंत्री है। सरकार के स्तर पर अपनी बात रखते। जांच करवाते। तब तक इस पर मुंह खोलने से परहेज करते। लेकिन इतनी शांति से उनका मकसद कहां पूरा होता। पता नहीं, अब भी उनका मकसद पूरा हो पाएगा या नहीं। हो सकता है लेने के देने पड़ जाएं। दरअसल भारतीय राजनीति के कुछ पुराने योद्धा देश की जनता को वतॆमान समय के हिसाब से देख ही नहीं पाते। ये लोग देश की जनता को उसी वक्त के हिसाब से देखते हैं, जब इन्हें विस्मृति दोष नहीं हुआ था। उन्हें याद नहीं कि जनता काफी समझदार हो चुकी है। राजस्थान, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ के चुनावी नतीजों ने भी यही बताया है। किसी राज्य की जनता ने बयान के आधार पर वोट नहीं दिए। वोट काम पर डाले गए।

वैसे अंतुले महोदय शिवराज पाटिल, देशमुख, आरआर पाटिल जैसे बयान बहादुरों से भी कुछ सबक लें।

Tuesday, December 16, 2008

"द्रष्टि"

"द्रष्टि"
अनंतकाल से ये द्रष्टि प्रतीक्षा पग पर अडिग ,
पलकों के आंचल से
सर को ढांक ,
आतुरता की सीमा लाँघ
अविरल अश्रुधारा मे
डूबती , तरती , उभरती ,
व्याकुलता की ऊँचाइयों को छु
प्रतीक्षाक्षण से तकरार करती
तुम्हारी इक आभा को प्यासी
अनंतकाल से ये द्रष्टि
प्रतीक्षा पग पर अडिग

घुटनों के बल झुके बुश

सॉरी ! अचानक बिना बताये गायब रहना पड़ा। इस बीच बुश के साथ वो हो गया जो किसी ने कल्पना भी नही की होगी। कभी ज़िन्दगी में ऐसा होता है कि हम सोच भी नहीं पाते वह हो जाता है। अमेरिका के प्रेजिडेंट की ओर किसी की आँख उठाकर देखने भर की हिम्मत नहीं होती यहाँ जनाब ने दो जूते दे मारे, वो तो बुश चौकस थे वरना कहीं के ना रहते बेचारे। अमेरिकी धौंस एक क्षण में घुटनों के बल झुक गई। इसे कहते हैं वक्त ! वक्त से बड़ा ना कोई था और ना कोई होगा। यह वक्त ही है जिसे हिन्दूस्तान की लीडरशिप को इतना कमजोर बना दिया कि वह पाकिस्तान को धमकी देने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहा है। यह वही हिन्दूस्तान तो है जिसने आज के दिन [ १६/१२/१९७१] को पाकिस्तान का नक्श बदल दिया था। आज हमारी हालत ये कि जब जिसका जी चाहे हमें हमारे घर में आकर पीट जाता है। हमारी लीडरशिप के पैर इतने भारी हो गए कि वह पाकिस्तान के खिलाफ उठ ही नहीं पा रहे। हिन्दूस्तान की विडम्बना देखो कि उसके लिए क्रिकेट ही खुशी और गम प्रकट करने का जरिए हो गया। क्रिकेट में टीम जीती तो भारत जीता। कोई सोचे तो कि क्या क्रिकेट में जीत ही भारत की जीत है? इसका मतलब तो तो क्रिकेट टीम भारत हो गई, वह मुस्कुराये तो हिन्दूस्तान हँसे वह उदास हो तो हिन्दुस्तानी घरों में दरिया बिछा लें, ऐसा ही ना। क्या हिन्दूस्तान की सरकार उस इराकी पत्रकार की हिम्मत से कुछ सबक नही ले सकती? उसका जूता मारना ग़लत है या सही यह बहस का मुद्दा हो सकता है लेकिन उसने अपनी भावनाएं तो प्रकट की। हिन्दुस्तानी अगर मिलकर अपने दोनों जूते पाकिस्तान को मारे तो वह कहीं दिखाई ना दे। सवा दो करोड़ जूते कोई काम नहीं होते। लेकिन हम तो गाँधी जी के पद चिन्हों पर चलने वाले जीव हैं इसलिए ऐसा कुछ भी नही करने वाले। चूँकि लोकसभा चुनाव आ रहे हैं इसलिए थोड़ा बहुत नाटक जरुर करेंगें।

Monday, December 15, 2008

मै निकला हिमपात देखने

निकला मैं कल रात
देखने हिमपात।
क्या खूब बरसते थे
ठंडे तीखे रूई के फाहे
ज्यों तारे टूट कर
गिर रहें हों जमीन पर
या फिर,
स्वर्ग से फूट पड़ा हो
मणि रत्नों का प्रपात।
सडकों पर, छत पर,
पार्क में पड़ी कुर्सियों पर,
पर्वतों के शिखर तक
सागर के तट से
हर तरफ बिछी पड़ीं थी
ठंडी सफ़ेद चादर-
इतनी नाजुक, इतनी निर्मल
झिझक होती थी
कैसे रखूँ मैं कदम इन पर।
खूब घूमा
हवाओं में मदमस्त उडती
बर्फ की बूंदों को
जी भर के चूमा।
निकला मैं कल रात ........
Dr Anoop Kumar Pandey anu29manu@gmail.com
भाई यह कविता कनाडा मे रह रहे मेरे अनुज डा अनूप कुमार पाण्डेय ने भेजी है और चित्र भी … साहित्य के चितेरे थे पर डाक्टरी भारी पडी। अशोक कुमार पाण्डेय

Saturday, December 13, 2008

वैश्विक गाँव के पञ्च परमेश्वर

पहला कुछ नहीं खरीदता न कुछ बेचता है बनाना तो दूर की बात है बिगाड़ने तक का शऊर नहीं है उसे पर तय वही करता है कि क्या बनेगा- कितना बनेगा- कब बनेगा खरीदेगा कौन- कौन बेचेगा दूसरा कुछ नहीं पढ़ता न कुछ लिखता है परीक्षायें और डिग्रियाँ तो खैर जाने दें किताबों से रहा नहीं कभी उसका वास्ता पर तय वही करता है कि कौन पढ़ेगा- क्या पढ़ेगा- कैसे पढ़ेगा पास कौन होगा- कौन फेल तीसरा कुछ नहीं खेलता जोर से चल दे भर तो बढ़ जाता है रक्तचाप धूल तक से बचना होता है उसे पर तय वही करता है कि कौन खेलेगा- क्या खेलेगा- कब खेलेगा जीतेगा कौन- कौन हारेगा चौथा किसी से नहीं लड़ता दरअसल ’शुद्ध ’शाकाहारी है बंदूक की ट्रिगर चलाना तो दूर की बात है गुलेल तक चलाने में कांप जाता है पर तय वही करता है कि कौन लड़ेगा -किससे लड़ेगा - कब लड़ेगा मारेगा कौन - कौन

और पाँचवां सिर्फ चारों का नाम तय करता है।

Friday, December 12, 2008

"मौन का उपवास"

"मौन का उपवास" अनुभूतियों का आचरण शालीन सभ्य सह्रदय हुआ, और भावः भी चुप चाप हैं, अधरों पे आके थम गया शब्दों का बढ़ता कारवां, स्वर कंठ में लुप्त हुए, क्या "मौन" का उपवास है

Thursday, December 11, 2008

मुख्यमंत्री चुनाव December 2008

आये दिन सियासत में अफ़साने बहुत हैं    
खेल दावपेंच के आजमाने बहुत हैं.   
कुर्सी की दौर में सभी पागल से हुए हैं 
इक़ नाजनीन और दीवाने बहुत है .

Wednesday, December 10, 2008

" मायाजाल"

" मायाजाल"
ह्रदय के मानचित्र पर पल पल तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे, यथार्थ को दरकिनार कर कुछ स्वप्नों ने सांसे भरी... छलावों की हवाएं बहती रही बहकावे अपनी चाल चलते रहे, कायदों को सुला , उल्लंघन ने जाग्रत हो अंगडाई ली.. द्रढ़निश्चयता का उपहास कर संकल्प मायाजाल में उलझते रहे, ह्रदय के मानचित्र पर पल पल तमन्नाओं के प्रतिबिम्ब उभरते रहे..

वादियों का देश - हिंदुस्तान

अपना हिंदुस्तान जो वादियों का देश है तो लीजिये कुछ पंक्तियाँ पेश है...
वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं स्वयं को समर्पित राष्ट्रवादी बताते है। इस लोकतांत्रिक गणराज्य के, समाजवाद हिंदुस्तान के -स्वयंभू साम्यवादी, जनवादी, मनुवादी, इत्यादि इत्यादि खुद को बताते हैं ।
वैसे हमारा हिंदुस्तान सदियों से जकरा हुआ है, ना जाने किन किन वादियों के बोझ से दुहरा हुआ है। चुनाव मे जातिवादी, नौकरी मे भाई भातिजवादी, वादियों मे आतंकवादी, घाटियों मे उग्रवादी और जंगलों मे नक्सलवादी।हाय हम और आप सिर्फ वादी और प्रतिवादी। लेकिन याद रहे एक वादी जो सब पे भारी है वो है बढ़ती हुई आबादीजी हाँ बढ़ती हुई आबादी ॥

Tuesday, December 9, 2008

२६ नवंबर,2008

मस्त संगीत रोशनी मध्दम जिव्हा की तृप्ती माहौल में एक अजीब सी लहराती मस्ती अचानक चलती गोलियाँ सन् सन् जिंदगी सस्ती आँखों के सामने मृत्यु का तांडव करवाते दानव फटते बम धुआँ और आग चीखें पुकारतीं यह घमासान फिर हैं भी दौडते कुछ इन्सान रखते हैं लोगों को सुरक्षित जान पर खेल कर और वे शूर वीर वे जाँ-बांज आते हैं दौड कर लगे रहते हैं जब तक न खत्म होता आतंक जीवट से लडते हैं सीमित साधनों से, प्राण खोते हुए अंत में लहराते हैं मुस्कुराते हुए जीत का तिरंगा नसीबों वाले बच जाने वाले शुक्र मनाते हैं यह आतंक तो हुआ खत्म पर आगे क्या ?

Sunday, December 7, 2008

वो फिर न कभी हमराह हुआ

अरसा बिता तुम्हे देखा नही याद आए मगर तुम बहुत पल पल आवाज़ देकर भी तुम क्यूँ नही आते ? रूठने की कोई वजह तो हो इंतज़ार किया था उस दिन तुम्हारा शायद वक्त की अफरा तफरी हुयी अब मिओगे जहा ऐसी कोई जगह तो हो एक क्षण में बदल जाती ज़िन्दगी हर पल का दिल मोहताज हुआ जो छुटा पल पीछे इंसान के हाथ से वो फिर न कभी हमराह हुआ

Saturday, December 6, 2008

तुम बिन

'तुम बिन"
हर गीत अधुरा तुम बिन मेरा,
साजों मे भी अब तार नही..
बिखरी हुई रचनाएँ हैं सारी,
शब्दों मे भी वो सार नही...
जज्बातों का उल्लेख करूं क्या ,
भावों मे मिलता करार नही...
तुम अनजानी अभिलाषा मेरी,
क्यूँ सुनते मेरी पुकार नही ...
हर राह पे जैसे पदचाप तुम्हारी ,
रोकूँ कैसे अधिकार नही ...
तर्ष्णा प्यासी एक नज़र को तेरी,
मिलने के मगर आसार नही.....

Thursday, December 4, 2008

शब्दों की वादियाँ"

"शब्दों की वादियाँ"
शब्दों की वादियों मे विचरता ये मन , खोज रहा कुछ ऐसे कण , जो सजा सके मनोभावों को, चाहत के सुंदर साजों को, लुकती छुपती अभिलाषा को, नैनो मे दुबकी जिज्ञासा को, सिमटी सकुचाई आशा को, निश्चल प्रेम की भाषा को, शब्दों की वादियों मे विचरता ये मन , खोज रहा कुछ ऐसे कण............

Wednesday, December 3, 2008

आतंक का दर्द - एक सच्चाई

ये कैसी लड़ाई है कैसा ये आतंकवाद मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे बम फटे मस्जिद में तो कभी देवालय में महफूज़ छुपे बैठे हैं जो आतंक के मुख्यालय में आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं रो रहा आमिर कासव क्या मिला मौत के बदले अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥ - सुलभ पत्र - Hindi Kavita Blog

युही

वादा - ऐ - रस्म उन्हें निभानी आती भी होगी या नही या हम रूठना और वो मनाना इस खेल के नियम बनेंगे =============================== जिहाद के नाम पर भटक जाते मासूम मन उन्हें भी नही पता उनका नाम आतंकवाद है =============================== तकिये के निचे एक डायरी और कलम रखी हुई जब तेरी याद आती है कविता लिख लेती हूँ

Monday, December 1, 2008

सिर्फ़ शोर मचाने से क्या होगा?

जब भी कोई आतंकी हमला होता है, बड़ा शोर मचता है। नेताओं के साथ-साथ आम आदमी का भी शोर हर जगह ध्वनित होता है। किसी भी मुसीबत के बाद शोर स्वाभाविक ही है। इस पर किसी को क्या आपत्ति? दिक्कत यह है कि इस पूरे शोर-शराबे का कोई नतीजा नहीं निकलता। याद होगा, संसद पर हमले के बाद भी बड़ा शोर मचा था। देश के स्वाभिमान पर चोट थी। लगा था कि अब आतंकियों के खिलाफ कोई बड़ी कारॆवाई होगी, जिसके बाद इस तरह का दुस्साहस करने की कोई हिम्मत नहीं कर पाएगा। तब भी हमला पाक प्रायोजित होने के पूरे सुबूत थे। यह बात जोर-शोर से कही भी जा रही थी। इसे सुनकर लगा था कि आतंकियों को शरण और शह देने वाले पाक को इस बार सबक तो जरूर सिखाया जाएगा। पर सब जानते हैं वह शोर किस कदर बेमतलब था। हमारे घर में घुसकर पाक परस्त आतंकियों ने एक बार फिर हमारा सीना छलनी कर दिया। फिर बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं। आईएसआई चीफ को तलब किया गया। पाक ने मना कर दिया। अब हम दाऊद और अजहर मसूद को मांग रहे हैं। पता नहीं यह छोटी सी बात हमारे हुक्मरान क्यों नहीं समझ पाते कि मांगने से दाऊद नहीं मिलता। मिलता होता तो उसे पाक में शरण ही क्यों मिलती। इससे पहले भी कई बार दाऊद और मसूद मांगे गए। हर बार टका सा जवाब मिलता है और हम थक-हारकर चुप बैठ जाते हैं। इस बार भी कोई अलग नतीजा निकल पाएगा, लगता तो नहीं। सच बात तो यह है कि पूरे शोर-शराबे का मकसद सिफॆ जनता का ध्यान बंटाना है। हर बार इस तरह के बड़े हमलों के बाद हमारी सरकारें सियासी प्रबंधन में जुट जाती हैं। ताकि उसे कम से कम राजनीतिक नुकसान हो। कुछ इसी तरह की सोच शिवराज और आरआर पाटिल को हटाने और के पीछे भी दिखती है। शिवराज और चिदबंरम का फकॆ दिखेगा, इसकी क्या गारंटी है। शिवराज पाटिल के पहले आडवाणी के वक्त भी तो हालत कुछ इसी तरह की थी। जाहिर है, कुरसी पर बैठे इंसान को बदलने से कुछ नहीं होता। सच बात तो यह है कि बेहतर शासन-प्रशासन को लेकर किसी राजनेता या राजनीतिक दल के पास न तो कोई योजना है और न ही इच्छा। यही वजह है जनता का ध्यान बंटाने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं। कोई आरआर पाटिल अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले को छोटी-मोटी बात कहता है तो कोई जनता के विरोध पर ही सवाल खड़ा करता है। समस्या केवल नेताओं या राजनीतिक दलों की नहीं है। पूरे समाज को देखें तो कहीं कोई तसल्लीबख्श बात नजर नहीं आएगी। आम जनता कहती है कि हमारे नेता भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। बार-बार दोहराई जाने वाली इस बात को कहते वक्त कोई अपने अंदर झांककर नहीं देखना चाहता। नेताओं के दामन को दागदार बतानेवालों में वे भी शामिल हैं जो चावल, दाल और मसाले में मिलावट करते हैं। दूध में पानी मिलाने का मौका भी कोई नहीं छोड़ता। घूस लेकर काम करनेवाले लोग भी नेताओं को गालियां देने वालों में शामिल हैं तो घूस की बदौलत बड़ा या छोटा काम करवाने वाले भी। जिसे जहां मौका मिल रहा है वहीं भ्रष्टाचार के बहते नाले में डुबकी लगा रहा है। फिर हम किसी पाक-साफ नेता की उम्मीद करते भी हैं तो क्यों? आखिर नेता भी इसी समाज से निकलकर आएगा, ऊपर से तो आएगा नहीं। किसी आतंकी हमले या इसी तरह की किसी विपदा को लेकर नेताओं और सरकार पर बरस पड़ने वालों में वे लोग भी शामिल हैं जो चुनाव के दिनों अपने वोट का इस्तेमाल करने तक निकलने में कष्ट महसूस करते हैं। आखिर तभी तो अक्सर मतदान प्रतिशत साठ-पैंसठ फीसदी से आगे नहीं बढ़ता। मतलब सिफॆ यह कि नेताओं और सत्ता प्रतिष्ठान पर बरसने से कुछ नहीं होगा। पूरे समाज में बदलाव चाहिए। आतंक, भय-भूख और भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प चाहिए। विभाजनकारी तत्वों से लड़ने की तत्परता और देश को एकजुट रखने के लिए कोई भी कुरबानी देने का माद्दा चाहिए। सिफॆ सरकार से उम्मीद लगाए न रहें, खुद भी कुछ करें। इससे काम नहीं चलने वाला कि हम क्या कर सकते हैं, यह तो सरकार और प्रशासन का काम है। या हमारे किए क्या होगा? यह वक्त जागने का है। वरना पता नहीं फिर हालात अपने हाथ में रहें या नहीं।

शेखी बघारतें हैं

---- चुटकी---- वो हमें जब चाहें घर में घुसकर मारते हैं, और फ़िर हम लुटी पिटी हालत में अपनी बहादुरी की शेखी बघारतें हैं। ---- इस बात पर हँसी आती है, कि पाटिल में शर्म और नैतिकता अभी बाकी है।

सुरक्षा अस्त्र

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