ईद एवं नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं । सभी सुधि पाठक एवं ब्लॉगर भाइयों के घर शान्ति, शक्ति, सम्पति स्वरुप, सयम सादगी, सफलता, समृधि, संस्कार, सम्मान, स्वस्थ्य सरसवती आप सब के साथ हो। एक बार फ़िर नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें।
कलाकारों एंव पत्रकारों का साझा मंच
मेरा मुल्क मेरा वतन गुलसितां था
वो पिछले दिनों था बदला हुआ सा
यहाँ राम भी थे
अयोध्या बसा था
ये बंजर बियाबां
ये किसका गुमां था
ये नानक की भूमि
यशोदा की बेटी
खड़ी बीच चकले
सदाएं हैं देती
ये गांधी के शव हैं
ये बिस्मिल की लाशें
मरे सारे इकबाल
किसको तलाशें
मेरा मुल्क मेरा वतन हिन्दोस्तां
बचा लो इसे ये तुम्हारा गुलसितां
मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी
दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी
सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी
कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...
आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी
अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं
सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...
मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी
जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ
काफ़ी दिनों से इस कविता को पूरा करने के लिए परेशान था सो आज हो ही गई ...... ये हम सबकी हकीक़त है ..... सब जो सोचा करते हैं, तो पढ़ें ....
चुप रहो
तुम्हारी आवाज़
दूसरों के कानों तक न जाए
यही बेहतर है
तुम्हारी आवाज़
हो सकता है
सच बोले
जो दूसरों को हो नापसंद
तो कर लो इसे बंद
तुम्हारी आवाज़
हो सकता है
तुम्हारे पक्ष में हो
और उनको लगे अपने ख़िलाफ़
वो करेंगे नहीं माफ़
तुम्हारी आवाज़
हो सकता है इतनी बुलंद हो
कि उनके कानों के परदे फट जायें
फिर तुम्हारे साथी भी
तुमसे कट जाएँ
तुम्हारी आवाज़
दूसरी आवाजों से अलग हुई
तो
उन आवाजों को अच्छा नहीं लगेगा
वो
तब ?
तुम्हारी आवाज़ में
सवाल हो सकते हैं
सवालों से बडों का अपमान होता है
तुम्हारी आवाज़ में
अगर जवाब हुए तो
उनका हत मान होता है
तुम्हारी आवाज़
भले तुमको मधुर लगे
पर उनको ये पसंद नहीं
इसलिए
या तो चुप रहो
या फिर ज़ोर से चिल्लाओ
दुनिया को भूल जाओ
बंधन क्यूंकि
टूटने को उत्सुक है
राधाकृष्णन, कबीर, तुम्हारे या फिर अपने बहाने ...? (कुछ व्यक्तिगत कारणों से इधर व्यस्त या कहूं की अस्त - व्यस्त रहा इस कारण शिक्षक दिवस पर ज़्यादा तैयारी से ब्लॉग पर नही आ पाया उसके लिए क्षमायाचना के साथ) A teacher affects eternity; he can never tell where his influence stops ( एक शिक्षक आने वाले युगों तक प्रभाव डालता है.....कितना और कितने समय तक यह उसे ख़ुद को भी नहीं मालूम होता !) हेनरी ब्रुक एडम्स की यह उक्ति वाकई कितनी सटीक है। कल जब मैं पहली बार इतनी परेशानी में था की मुझे याद ही न रहा कि आज शिक्षक दिवस है, तभी मुझे एक ई मेल मिली जिसमे यह उक्ति थी ..... कुछ समय के लिए अपनी सारी परेशानी भूल कर स्कूल के दिनों में चला गया।
राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं । क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥
सुबह सुबह अपनी साइकिल उठा कर सबसे पहले फूलों की दूकान पर जाकर मास्टर जी/सर/गुरूजी के लिए फूल खरीदना...... "५ रुपये का है बेटा .... " "चचा यार घर से ३ ही रुपये मिले हैं आज मास्टर साब को फूल देना ज़रूरी है....टीचर्स डे है ना आज !" "ऊ तो मालोमै है हमको, अमा बरखुरदार ये बताओ ..... साल भर तो उनको तिगनी का नाच नचाये रहते हो, ससुर ऊ दिन उनकी गाड़ी की हवा भी तुम्ही निकाले थे ना ? आज कौन सा गज़ब हो गया कि अमां फूल पाती चढ़ा रहे हो ??" " अमां चचा ऐसा है कहानी ना समझाओ हमको, आज देश के दूसरे राष्ट्रपति डाक्टर राधाकृष्णन की सालगिरह है .... वो भी टीचर थे ..... बस उन्ही की याद में शिक्षक दिवस मनाते हैं " " अच्छा जैसे १५ अगस्त - २६ जनवरी मानते हैं ?" " हाँ ऐसे ही समझ लीजिये .... ख़ुद तो चले गए ...हम को फंसा गए ये सब मनाने को !!"
We expect teachers to handle teenage pregnancy, substance abuse, and the failings of the family। Then we expect them to educate our children - John Sculley मैं सोचता हूँ हम में से ज़्यादातर को ये याद होगा ...... उसके बाद स्कूल में मास्टर साहब से दरवाज़े का फीता कटवाना और फिर उनको पूरी कक्षा की ओर से एक तोहफा ...... और फिर होड़ लग जाती उनको अपना अपना गुलाब देने की, कभी कभी कुछ बड़े घरों के बच्चे जब अध्यापकों के लिए महंगे तोहफे ले आते तब थोड़ा बुरा भी लगता पर खैर ...... अगले दिन से फिर वही .... " होम वर्क किया ?" " नहीं सर !" " जाओ पीछे जा कर दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो जाओ !" " सर, आइन्दा से ऐसा नहीं होगा !" " जितना कहा उतना सुनो ... पीछे !!" (और फिर तमाम तरह के बुरे चेहरे बनाते हुए पीछे जाकर खड़े हो जाते थे, दिमाग चलता रहता था कि अब इनको कैसे परेशान करना है ....)
गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट
अन्तर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट
ये सब याद आया और फिर याद आया स्कूल का आखिरी दिन और उस दिन की बाद से हर रोज़ स्कूल को, स्कूल के टीचरों को और स्कूल के दोस्तों को याद करना ..... वो सारे टीचर जिनको सताया उनकी भी याद आती है .....जिन सहपाठियों से एक एक साल बात नहीं की उनको रोज़ ऑरकुट पर ढूंढता हूँ ...... आज सोचता हूँ तो पाता हूँ कि आज जो कुछ हूँ उसमे उनका कितना बड़ा योगदान है ...... अंग्रेज़ी की क्लास में मार न खाता तो आज फर्राटे से बोल नहीं पाता, गणित की कक्षा में पीछे ना खडा होता तो आज जीवन के सवाल क्या हल कर पाता ? भूगोल की जिन कक्षाओं से गोल रहा वो आज तक गोल गोल घुमा रही हैं ......
गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय
आज जो कुछ हूँ उसमें उनका योगदान अपरिमेय है...... उसका धन्यवाद नहीं कर सकता
तेरा तुझको सौंप दूँ, क्या लागत है मोर
मेरा मुझ में कुछ नाही, जो होवत सो तोर
पर आज ये बताना चाहता हूँ कि जो कुछ हूँ ...... आपकी वजह से, जहाँ तक पहुँच पाया आपकी वजह से ......जहाँ तक जाऊँगा, वह रास्ता आपका दिखाया हुआ है और चलने का हौसला भी आपने ही दिया है ! अगर कभी वो पा पाया जो सोच रखा है तो ...... वो मेरा नहीं आपका प्राप्य होगा, मेरी उपलब्धियां हमेशा आपकी मोहताज होंगी .....
गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः
आप सब जो बचपन से अब तक चलना ही नहीं .... बदलना भी सिखाते रहे ......... कल अगर दुनिया बदली तो सबसे पहला श्रेय आपको मिलेगा ...... हम सब ये स्वीकार करते हैं कि आप हमारे बचपन की यादों से वर्तमान के वक्त में शामिल हैं ..... आप की वजह से हम हैं इसलिए हम आप से अलग नहीं हो सकते आपकी शिक्षा से हमारा ज्ञान है आपकी दीक्षा से हमारा व्यवहार है आपके प्रेक्षण से हमारा चरित्र आपकी प्रेरणा से हमारी प्रगति आपके ध्यान से हमारी शुचिता है अगर आज भी हम इतना नहीं पथ भ्रष्ट हुए जितना दुनिया ने प्रयास किया तो उसकी वजह भी आप हैं ...... आपकी मति आज हमारी गति बन गई है और अधिक लिखना अब मूर्खता है ..... कबीर का अब यह आख़िरी दोहा बचा है,
सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय
सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुन लिखा ना जाए
( सारी धरती को कागज़ कर लूँ, सारे जंगलों के पेडो की कलम बना दूँ, सातों सागरों की स्याही कर लूँ पर गुरु के गुन लिखना सम्भव नहीं )
Web counte from website-hit-counters.com . |