रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Tuesday, September 30, 2008

ईद एवं नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें

ईद एवं नवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएं । सभी सुधि पाठक एवं ब्लॉगर भाइयों के घर शान्ति, शक्ति, सम्पति स्वरुप, सयम सादगी, सफलता, समृधि, संस्कार, सम्मान, स्वस्थ्य सरसवती आप सब के साथ हो। एक बार फ़िर नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें।

Saturday, September 27, 2008

दिल में सूराख .....

देश के दिल दिल्ली अब दिल की मरीज़ हो चली है। आज दोपहर २:१५ से २:३० के बीच दिल्ली के पुराने और मशहूर इलाके महरौली में दो संदिग्ध विस्फोट हुए जिसमे अब तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार ४-५ लोगों की मौत हो चुकी है जबकि असली आंकडा अभी आना बाकी है। ज्ञात हो कि कुतुबमीनार के लिए मशहूर इलाके महरौली के फूल बाज़ार के इलाके में यह धमाका हुआ। यह धमाके इस मायने में खतरनाक संकेत देते हैं कि पुलिस और सरकार ने पिछली १३ सितम्बर को हुए धमाको के बाद बड़े बड़े दावे कर डाले थे। हाल ही में आतंकियों ने अनेक ई मेल भी की जिनमे तमाम तरह की धमकियां दी गई और पुलिस ने सतर्कता भी बढ़ा दी पर नतीजे सिफर ही रहे और आज फिर ये घटना हुई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार स्कूटर सवार दो युवकों ने एक झोले में यह विस्फोटक फूल बाज़ार की सड़क पर फेंका और वहाँ से चले गए, उनको लोगों ने यह कह कर आवाज़ भी दी कि शायद उनका कोई सामान गिर गया हो पर जब तक लोग कुछ समझ पाते ...... चारों तरफ़ लाशें, घायल और खून बिखरा पड़ा था। बताया जाता है कि उस बैग को एक बच्चे ने उठाया और उसके साथ ही उस बैग में धमाका हो गया और उस बच्चे के चीथड़े उड़ गए। अभी तक ४ लोगों की मौत की ख़बर है जिसमे दो बच्चे हैं। सवाल आतंकियों से है जो अपने आपको दहशतगर्द की जगह मुजाहिद्दीन कहते हैं ..... कि धर्म की लड़ाई में बेगुनाहों की जान लेने पर क्या कोई धर्म माफ़ करता है ? सवाल सरकार से है जो शायद सुरक्षा से ज्यादा मुआवजा देने में तत्परता दिखाती है......कि आख़िर उसकी कोई जवाबदेही है या नहीं ? सवाल हम सबसे है कि हम अपने समाज और अपने मुल्क को लेकर कितने संवेदनशील हैं ....... क्या अब हमें सड़कों पर नहीं उतर आना चाहिए ? दुष्यंत कुमार ने जैसा कहा.... पक चुकी हैं आदतें बातों से सर होंगी नहीं कोई हंगामा करो ऐसे गुज़र होगी नहीं अब वक़्त आ गया है कि हम सोचना शुरू करें ...... नेताओं से उम्मीद ना करें, अपने अपने स्तर पर आतंक के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखें....सडकों पर तमाशबीन बनने की जगह सडको पर जुटना शुरू करें ...... ???

Friday, September 26, 2008

बीआरपी के लिए

जिस प्रकार से न्यूज़ चैनल वाले टीआरपी के लिए मरे जा रहें हैं यही हाल ब्लॉग वालों का हो चुका है। टीवी की टीआरपी है तो ब्लॉग की बीआरपी। अब टीवी वाले क्या करतें हैं वही ब्लॉग लेखक करें तो क्या कहने। मसलन लड़कियों के बारे में ऐसी ऐसी कहानियाँ लिखो कि ब्लॉग पर दस्तक देने वाले को यूँ लगे जैसे वह कोई नीली फ़िल्म देख रहा हो। [तड़का लगाने के लिए केवल अधोवस्त्र पहने लड़की के फोटो डाले जा सकते है।] ख़ुद के साथ ऐसी कहानी जोड़ दो तो कुछ अलग बात हो। किसी बड़े से बड़े नेता, अभिनेता,पत्रकार, अभिनेत्री के बारे में लिख दो कुछ चटक मटक वाला, फ़िर देखो बीआरपी कैसे ऊपर जाती है। ख़ुद न लिखो तो जिसने लिखा है उसकी बखिया खोल दो और खुलवा दो अपने मित्रों से । अपने निजी संबंधों को ब्लॉग में उजागर करो फोटो सहित। अगर आप थोड़े बहुत जाने माने आदमी है तो और भी अधिक आसन है बीआरपी को ऊपर लेकर जाना। ब्लॉग पर जितनी अधिक मिर्च मसाले का तड़का होगा उतनी अधिक होगी बीआरपी। उसके बाद चैनल से मुकाबला होगा। जिस प्रकार टीआरपी एक ख़बर होती है उसी प्रकार बीआरपी भी ख़बर हुआ करेगी। महिलाएं अपने ब्लॉग पर तड़फ,विरह ,प्रेमरोग से ओत प्रोत शेरो शायरी लिख सकतीं हैं।[ खुले बाल उदास चेहरे की फोटो जलती हुई मोमबत्ती के साथ हो तो सोने पर सुहागा।] बी आर पी इतनी ऊपर जायेगी कि ब्लॉग लेखक को संभालनी मुश्किल हो जायेगी। भूतप्रेत,चमत्कार,टोने टोटके जो भी उलूल जलूल हो बस ब्लॉग में भर दो कौन से दाम लगते हैं। हमें तो अपनी बीआरपी से मतलब है। जब न्यूज़ चैनल वाले,जो हर घर में दस्तक देते हैं, कुछ भी दिखा सकते हैं तो ब्लॉग लेखक को क्या? तो आज से , आज से क्यों अभी से शुरू हो जाओ फ़िर देखो आप बीआरपी की किन बुलंदियों को गले लगाते है। ओके आल दी बेस्ट ।

Thursday, September 25, 2008

क्यूँ भोगे कोई कलाकार कष्ट

यूँ तो कलाकारों को हमेशा ही कष्ट भोगना पड़ता है, और कलाकार कलाकार ही होता हैं जो समाज सुधर करने चलता है और समाज इस कदर प्रताडित करता हैउसे अपने कलाकार होने से घृणा होने लगती है। मैं भी एक कलाकार हू। पहले था नही अब बना हू । रंग मंच पर एक दो ही नाटक कियाहै और कलाकारों के बारे में जान कर मन में काफी दुःख होता। किस कदर कलाकारों की जिन्दगी संघर्ष से सुरु होकर संघर्ष में ही ख़तम हो जाती है।
घर और समाज इस से अछूता नही हैं। घर में परिवार वाले कहते हैं की देख नचनिया बजनिया बनी इ इ इ । समाज में लोग कहते हैं की काम धाम नइखे कमाए के आच्छा धंधा अपना लेले बा ।
इतना सब कुछ होने के बाद भी कलाकार नीलकंठ के सामान सब कुछ पी जाता है और समाज को उसकी कमी को दिखता हैं । समाज देखता हैं और कुछ देर बाद भूल जाता है । यदि प्रस्तुति आच्छी हुई तो थोडी देर वाहवाह उसके बाद ताना देना शुरू कर देते हैं लोग।
कलाकारों के अंदर कोई नही देखता की उसके अन्दर भी एक आदमियत है उसके अन्दर भावना है। छोटे शहरो में तो काफी ख़राब स्थिति है। रंगमंच पर अगर कुछ करना है तो कोई कलाकारों को मदद को आगे नही आता । ५०० रु० का डौगी मुर्गा खा सकता है पर ५० रु० नाटक करने को लोग नही दे सकते।
काफी कुछ सहना पड़ता है फ़िर भी मुस्कुराना पड़ता है। अभी मात्र चार सालों से ही इस क्षेत्र में हूँ इस दौरान कुछ आच्छा अनुभव नही रहा है मुझे । कभी कभी तो इतनी प्रशंशा मिलती है की मन में काफी जोश भर जाता है । जिसके बदौलत आज भी रंगमंच पर काफी कुछ करने मन होता है पर सबसे बड़ी समस्या वही होती ही धन की जो एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार से आने वाला कलाकार कभी पुरा नही कर सकता है। हर कलाकार की कमजोरी होती है रंगमंच । मैं क्या लिखू समझ में नही आ रहा है । फ़िर भी कलाकार होने का दंश झेलना ही पड़ेगा मुझे । सारे रंगकर्मियों को सादर प्रणाम करते हुए दिल से लिखे इस पोस्ट को अब समाप्त कर रहा हू । आप सबों का प्यार, दुलार , स्नेह , आशीर्वाद मुझे इस क्षेत्र से जोड़े रख सकता हैं कृपया हिम्मत दे। dhanyawad।

सदा-ऐ-हिंद

मेरा मुल्क मेरा वतन गुलसितां था

वो पिछले दिनों था बदला हुआ सा

यहाँ राम भी थे

अयोध्या बसा था

ये बंजर बियाबां

ये किसका गुमां था

ये नानक की भूमि

यशोदा की बेटी

खड़ी बीच चकले

सदाएं हैं देती

ये गांधी के शव हैं

ये बिस्मिल की लाशें

मरे सारे इकबाल

किसको तलाशें

मेरा मुल्क मेरा वतन हिन्दोस्तां

बचा लो इसे ये तुम्हारा गुलसितां

एक बार की बात है

एक बार की बात है श्रीगंगानगर में एक नेता हुआ करता था। आर्थिक रूप से बहुत कमजोर वह नेता आम जन के लिए बहुत उपयोगी था। कुछ नहीं था फ़िर भी उसके यहाँ कम करवाने वालों की भीड़ लगी रहती थी। वह जाने माने राज नेता भैरों सिंह शेखावत का भी खास था। १९९३ में उसने श्रीगंगानगर से जनता दल की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ा। मगर बहुत कम वोट से हार गया। इस चुनाव में भैरों सिंह शेखावत तीसरे स्थान पर रहे। हारने के बाद भी जनता का उस नेता से और नेता का जनता से मोह भंग नही हुआ। दोनों का प्रेम बना रहा। पॉँच साल गुजर गए। विधानसभा के चुनाव में इस बार नेता जी निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में थे। जनता फ़िर साथ लगी। इस बार भी कम अन्तर से नेता जी विधायक बनने से रह गए। खैर वक्त ने तो बीतना ही था, सो बीता। २००३ में फ़िर विधानसभा चुनाव आए। इस बार नेता जी के हाथ में बीजेपी की टिकट थी। जनता इसके पीछे पागल हो गई।नेता जी को रिकॉर्ड मतों से जीता कर विधानसभा भेजा। बस तब से नेता जी का हाजमा बिगड़ गया। जो मित्र घर का खर्च वहां करते थे उनसे लेकर आम जन तक से व्यवहार करने का उनका स्टाइल बदल गया। अपने साथी नेता पर जान लेवा हमला करवाने की शाजिश रचने के आरोप में न्यायिक हिरासत में भी रहा। इस मामले का मुख्य आरोपी तो अभी तक फरार है जो नेता जी का पीए था। और भी ना जाने क्या क्या हुआ। श्रीगंगानगर की जनता नेता जी से दूर और बहुत दूर हो गई। आज अखबार में नेता जी कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी के साथ खड़े हुए थे। वे अब इस बार का चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ने के मूड में हैं। पता नहीं वहां की जनता का क्या होगा जहाँ से ये चुनाव लडेंगें। राजस्थान के निवासी तो इस नेता जी को जान ही गए होंगें बाकी भी थोडी देर में जान जायेंगें। जिसने दुःख दर्द में नेता जी का साथ दिया नेता जी उनके ही नहीं हुए तो कांग्रेस के क्या होंगे जिसकी तमाम उमर उन्होंने खिलाफत की है। आदरणीय,सुबह सुबह स्मरणीय, पूजनीय,इस नेता का नाम है श्री श्री सुरेन्द्र सिंह राठौर । जब २००३ में ये चुनाव जीते तब जन जन को ऐसा लगा जैसे श्रीगंगानगर को लम्बी काली रात के बाद भोर का उजाला नसीब हुआ हो। तब कोई क्या जानता था कि रात और काली होने वाली है। चलो जो कुछ हुआ उस से कांग्रेस की नेता सोनिया जी को क्या सरोकार हो सकता है। उन्होंने तो राजनीती करनी है। उनकी बला से किसी के भी सपने खाक में मिले उनको क्या। यही तो है "राजनीती" जिसमे नीति तो गायब हो गई बस राज रह गया। राज करना है राज से।

दर्द

इस दर्द को जान लें अब हम दर्द कितनी तरह का होता है एक दर्द चोट का होता एक दर्द मन का होता है । एक दर्द है पराया तो एक दर्द अपना होता है । एक दर्द भूल जाता है एक दर्द रिसता रहता है एक दर्द छुरी सा है अगर एक दर्द मीठा होता है । एक दर्द दूसरे का दिया एक दर्द अपना देता है एक दर्द की दवा होती एक दर्द सदा रहता है इस जिंदगी का दर्दों से एक गहरा रिश्ता होता है इस दर्द के बिना उसका अस्तित्व कहाँ बचता है

Wednesday, September 24, 2008

"अपलक" बिना झपकाए मैं, अपलक देखूं, तुम को देखने की, अपनी ललक देखूं

Tuesday, September 23, 2008

कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ


मेरे मुल्क की बदनसीबी में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...

जात धर्म की राजनीति में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


बीती रात को चौराहे पर, एक अक्स की साँस रुकी थी

दर्पण के बिखरे टुकडों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नींद में शायद, चाँद रात में, एक रूह की काँप सुनी थी

सरगम के टूटे साजों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


आज सुबह सहरी से पहेले, आसमान में घटा सुर्ख थी

कुचले फूलों के रंगों में, कौन है हिंदू , कौन मुसलमाँ...


आजादी की सालगिरह पर, एक ज़फर की मौत हुई थी

अमर शहीदों के बलिदानों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


नदी किनारे, ज़र्द रेत पर, नंगी लाशें पड़ी हुई हैं

सौ करोड़ इन बेगुनाहों में, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ...


मेरे वतन के परवाजों में, मार मज़हब की कब तक होगी

जन गन मन अधिनायक जय हे, कौन है हिंदू, कौन मुसलमाँ

Monday, September 22, 2008

"तेरी चाहत"

"तेरी चाहत"
तेरी हर अदा पे मुझे बस प्यार आता है, जब मेरे साथ तू होती है करार आता है..
तेरी आँखें है सनम, या के हैं जाम-ऐ-शराब, तेरी नज़रों को मैं देखूं तो खुमार आता है..
तू मेरे सामने है, ख्वाब हो , बेदारी हो, अपनी बांहों में लिए तुझ को चला जाता हूँ..
तुझसे मिलने पे जो आजाए जुदाई का ख़याल, दिल में तूफ़ान सा उठता ही चला जाता है..
तेरी चाहत की मेरे दिल में है हद कितनी, कहाँ ग़ज़लों में या अल्फाज़ में कह पाता हूँ ..

Saturday, September 20, 2008

आवतानी की स्मृति में रंगलीला ने किया "सेटिंग"

आगरा में जाने माने रंगकर्मी स्वर्गीय गिरीश आवतानी की पुण्य तिथि के अवसर पर इप्टा द्वारा "नाटक की ज़रूरत" विषय पर आयोजित की गई गोष्ठी में रंगकर्म को समाज में बदलाव लाने का एक बेहतर माध्यम बताया गया। इस मौके पर नाट्य संस्था रंगलीला के चर्चित नाटक "सेटिंग" का मंचन किया गया। जो वर्तमान समाज में व्याप्त रिश्वतखोरी की परम्परा पर गहरा कटाक्ष करता नज़र आता है। वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल शुक्ल के मार्गदर्शन में तलत उमरी ने इस नाटक का निर्देशन किया है। रंगलीला के कलाकार इस नाटक के कई मंचन कर चुके है। लोगो को ये नाटक खूब पसंद आ रहा है।

Wednesday, September 17, 2008

इंसान

मुआफी चाहती हूँ काफी समय हुए कुछ लिख नहीं पायी.......लेखन वाकेई आसान कला नहीं जब उमड़ती है तो रुकने का नाम नहीं लेती और जब नहीं उमड़ना चाहती तो मन और भावनाओं को बंजर बना देती है........सच ही कहा है- लव्ज़ एहसास से छाने लगे ये तो हद है लव्ज़ माने भी छुपाने लगे ये तो हद है............ इन दिनों देश में कुछ इस तरह की घटनाएं हुईं कि कभी ख़ुद पर तो कभी समाज पर और कभी इसके तह में छिपी राजनीति पर कोफ़्त होता है..............क्या हम इतने अपाहिज हो चुके हैं, कुछ भी होता रहे हमारी ऑखों के सामने और हम सहने को मजबूर हैं....कोई दूसरा रास्ता नहीं सिवाय सहने के........ पर ये देश ऐसा है जहॉ ऑसुओं के साथ भी खिलवाड़ होता है........संवेदनाओं से राजनीति की जाती है......... इस देश पर फ़क्र है हमें............ फक्र है कि हम इस देश के नागरिक हैं.......... ये देश प्रतीक है गंगा-जमुनी तहज़ीब का ........ हिन्दू-मुस्लिम-सिख-इसाई एकता का........ हिन्दी-मराठी,सभी भाषाओं और बोलियों का......... पर क्या वाकेई ? इस देश के टुकड़े-टुकड़े करने को तैयार हैं यहॉ के रहनुमा। बात सिर्फ हिन्दू और मुसलमा की नहीं है ,बात अब हिन्दी और मराठी की भी है.... बात मज़हब की ही नहीं , बात अब भाषा कीभी है आखिर कब तक ये तांडव जारी रहेगा........ तांडव मौत का , बेगुनाहों की मौत का ...... क्या आप में से कोई है जो ज़िन्दा है...............

"आशनाई"

"आशनाई"
'नज़र से नज़र" कभी मिलाई तो होती.... दिल की बात कभी हमसे भी, बनाई तो होती.... क्यूँ कर रही शबे-फुरकत से' आशनाई सारी रात.....
कभी मेरी तरह अंधेरों मे,
"आईने से आंख लडाई तो होती "
(शबे फुरकत- विरह की रात )

Monday, September 15, 2008

"किसको पता"

"किसको पता"
कोई गोली कहाँ चलेगी , किसको पता,
कोई बम्ब कहाँ फटेगा, किसको पता,
आज अभी तुम मांग सजा लो,
बिंदीया लगा लो,
कब ये मांग सूनी हो जाए किसको पता???
हरी-हरी ये कांच की चूडी जो मन भाए,
गोरे-गोरे हाथों पर तुम इन्हे सजा लो,
कब ये हाथ सुने हो जायें किसको पता???
अपने बाबा की गोदी पर आज ही चढ़कर,
अपने सारी की सारी जिद्द पुरी कर लो,
कब तुम भी लावारिस बन जाओ किसको पता???
नन्ही आँखों से सपना मत देखो ,
की तुम पायलट बनोगे,
कब नीला अम्बर शमशान बन जाए किसको पता???
आओ हम सब मिलकर कुछ ऐसा कर जायें,
हम हिन्दुस्तानी नही झुकेंगे- नही झुकेंगे,
चल जाएगा सब को पता -सब को पता"

Sunday, September 14, 2008

सदी के पार

रेत की तासीर में है आंच, बारिश धूप की है मैं नदी के पार जाना चाहता हूँ। मैं कोई पाषाण का टुकड़ा नही हूँ आदमी हूँ , आदमी हूँ इसलिए संवेदना में हांफता हूँ। हांफ कर कुछ पल ठहरने को भला तुम हार का पर्याय कैसे मान लोगे । मैं शिशिर का ठूंठ , पल्लवहीन पौधा भी नही हूँ बीज हूँ मुझमें उपजने की सभी संभावना मौजूद हैं जब, क्योँ करूँ स्वागत किसी बांझे दशक का। मैं सदी के पार जाना चाहता हूँ ।

Saturday, September 13, 2008

"सजा"

"सजा"
आज ख़ुद को एक बेरहम सजा दी मैंने ,
एक तस्वीर थी तेरी वो जला दी मैंने
तेरे वो खत जो मुझे रुला जाते थे
भीगा के आंसुओं से उनमे भी, " आग लगा दी मैंने ..."

Monday, September 8, 2008

जायें तो जायें कहां..... चार घण्टे के बन्धक

परवेज़ सागर बेपनाह मौहब्बत की अनमोल निशानी ताजमहल..... एक शंहशाह की प्यार की निशानी ताजमहल..... जो हर पल याद दिलाता है मौहब्बत के उस जज़्बे की जिसकी खातिर शाहजंहा ने दुनिया को ताजमहल की शक्ल मे एक शाहकार दिया। पूरी दुनिया मे ताज को मौहब्बत की मिसाल माना जाता है। लेकिन कोई सोच भी नही सकता कि आज ताजमहल की वजह से कई हजार लोग परेशान हो रहें हैं। दरअसल, ताजगंज के आस-पास इस परेशानी का आगाज़ रात मे ताज को खोले जाने से शुरु हुआ। ताजमहल को रात मे खोले जाने के लिये तीन साल पहले प्रशासन ने कड़ी मशक्कत की। नतीजन सुप्रीम कोर्ट ने कुछ कड़ी शर्तों के साथ ताज को रात मे खोले जाने की इजाज़त दे दी। आगरा पुलिस और प्रशासन के लिये भी ये किसी चुनौती से कम नही है। सुप्रीम कोर्ट ने सबसे अहम शर्त सुरक्षा को लेकर रखी थी। स्थानीय पुलिस, प्रशासन और ताज की आन्तरिक सुरक्षा का जिम्मा उठाने वाली सीआईएसएफ ने इसका खाका तैयार किया। इस योजना के तहत रात के वक्त ताज खुलने पर पूर्वी गेट से दशहरा घाट और प्रचीन मन्दिर को तरफ जाने वाले रास्ते को चार घण्टे के लिये पूर्वी तरह से बन्द किये जाना शामिल है। ताज के पूर्वी गेट के पार रहने वालों के लिये हर माह रात मे पांच दिन ताज खुलना बड़ी परेशानी का सबब बन गया। जब इस योजना पर अमल शुरु किया गया तो उन चार घण्टो के दौरान दशहराघाट प्राचीन मन्दिर, हजरत अहमद बुखारी की दरगाह, अहमद बुखारी कब्रिस्तान, राजीव नगर, वासुदेव कॉलोनी, फोरेस्ट कॉलोनी, जालमा कुष्ठ आश्रम के अलावा ग्राम नगला पैमा, गढी बंगज और नगला कल्फी का आने-जाने का रास्ता पूरी तरह से बन्द होने लगा है। इन जगहो पर रहने वालों की तादाद लगभग पन्द्रह हजार है। रास्ता बन्द किये जाने से ये लोग एक बन्धक की तरह हो जाते हैं। इन इलाकों मे जाने के लिये कोई और वैकल्पिक मार्ग भी नही है। इस परेशानी को लेकर कई बार प्रभावित लोगों ने आवाज़ उठाई लेकिन कोई नतीजा नही निकला। पिछले तीन सालों मे आगरा की पर्यटन विकास समिति और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने इस परेशानी को लेकर आवाज़ बुलन्द की पर हर बार सिवाय आश्वासनों के उन्हे कुछ नही मिला। समिति के अध्यक्ष एंव कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सैय्यद इब्राहिम जै़दी कहते है कि उन्होने पहले दिन से ही इस मामले को लेकर अधिकारियों से बात की थी। तब भी उन्हे केवल आश्वसन मिला था और आज भी हालात जैसे के तैसे है। इस समस्या के चलते कई बार हालात बड़े संगीन हो जाते है। सुरक्षा कारणों से ना तो फोर व्हीलर और ना ही टू व्हीलर इस इलाके मे नही जा सकते। यहां तक कि रिक्शा, साईकिल और पैदल व्यक्ति भी उस चार घण्टे के दौरान वहां से नही जा सकते। जैदी के नेतृत्व मे पूर्वी गेट मार्ग की जगह एक वैकल्पिक मार्ग बनाये जाने की मांग भी लम्बे समय से की जा रही है। जै़दी के मुताबिक दिन मे भी बिना पास के कोई वाहन इस रास्ते से नही गुज़र सकता। यही नही बल्कि स्कूल रिक्शा, पानी के टैंकर, दूध सप्लाई वाले वाहन या ज़रुरत की सामान ले जाने वाले अन्य वाहन भी इस इलाके मे नही आ-जा सकते। जिस वजह से कई तरह की दिक्कतें पेश आती हैं। ताजगंज निवासी रामप्रकाश बघेल के मुताबिक उस चार घण्टे के दौरान और कई बार दिन मे भी चिकित्सा सुविधा से वंचित रह जाने के कारण कई लोग मौत के मुंह मे भी जा चुके हैं। लेकिन प्रशासन के कानों पर जूं तक नही रेंगती। रात मे ताज के दिदार करने वालों की संख्या अब केवल नाम मात्र की रह गयी है लेकिन इन्तज़ाम चार घण्टे के लिये ही किये जाते है। सैकंड़ो पुलिसकर्मी इस दौरान शिल्पग्राम से लेकर ताज के पूर्वी गेट तक तैनात किये जाते हैं। सुरक्षा का आलम ये होता है कि परिन्दा भी पर ना मार सके। लेकिन इस बीच पूर्वीगेट के पार रहने वाले लोग चाहें लुटे या मरे लेकिन वो इस रास्ते से पार नही जा सकते। दशहरा घाट प्राचीन मन्दिर के पुजारी बताते हैं कि कई बार तो ऐसा होता है कि इस पार के लोग अन्तिम संस्कार के लिये शव लेकर जा रहे है लेकिन रास्ता बन्द होने की वजह से उन्हे घण्टो इन्तज़ार करना पड़ता है। उनके मुताबिक आगरा प्रशासन ने बिना सोचे समझे ये रास्ता बन्द किये जाने की योजना बना ड़ाली। जिसका खामियाज़ा हम लोग भुगत रहे हैं। आगरा प्रशासन के अधिकारी पूछे जाने पर बताते हैं कि इस समस्या पर विचार कर योजना बनाई जा रही है। जिसके तहत जल्द ही एक वैकल्पिक मार्ग बनाया जायेगा जो इन लोगों की परेशानी को दूर करेगा। इस मार्ग को बनाये जाने का प्रस्ताव पास तो हो गया है लेकिन ये मार्ग कब बनेगा इसका जवाब फिलहाल इन अधिकारियों के पास नही है। यहां के जनप्रतिनिधियों के पास भी इस मामले को लेकर कोई खास जवाब नही है। स्थानीय विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो हर बार परेशान लोगों को जल्द ही रास्ता बना लिये जाने का आश्वासन दे रहे हैं। पर रास्ता बनना कब शुरु होगा ये उन्हे भी नही पता। पिछले तीन साल ये मामला लगातार सुर्खीयों मे रहा है लेकिन इस परेशानी से दो-चार हो रहे लगभग पन्द्रह हज़ार लोग अभी तक उस राह की बाट जोह रहे है जो उनको नया रास्ता दिखायेगी।

Sunday, September 7, 2008

आवाज़ .....

काफ़ी दिनों से इस कविता को पूरा करने के लिए परेशान था सो आज हो ही गई ...... ये हम सबकी हकीक़त है ..... सब जो सोचा करते हैं, तो पढ़ें ....

चुप रहो

तुम्हारी आवाज़

दूसरों के कानों तक न जाए

यही बेहतर है

तुम्हारी आवाज़

हो सकता है

सच बोले

जो दूसरों को हो नापसंद

तो कर लो इसे बंद

तुम्हारी आवाज़

हो सकता है

तुम्हारे पक्ष में हो

और उनको लगे अपने ख़िलाफ़

वो करेंगे नहीं माफ़

तुम्हारी आवाज़

हो सकता है इतनी बुलंद हो

कि उनके कानों के परदे फट जायें

फिर तुम्हारे साथी भी

तुमसे कट जाएँ

तुम्हारी आवाज़

दूसरी आवाजों से अलग हुई

तो

उन आवाजों को अच्छा नहीं लगेगा

वो

तब ?

तुम्हारी आवाज़ में

सवाल हो सकते हैं

सवालों से बडों का अपमान होता है

तुम्हारी आवाज़ में

अगर जवाब हुए तो

उनका हत मान होता है

तुम्हारी आवाज़

भले तुमको मधुर लगे

पर उनको ये पसंद नहीं

इसलिए

या तो चुप रहो

या फिर ज़ोर से चिल्लाओ

दुनिया को भूल जाओ

बंधन क्यूंकि

टूटने को उत्सुक है

Saturday, September 6, 2008

"दर्द का वादा"

"दर्द का वादा"

जिंदगी का ना जाने मुझसे और तकाजा क्या है ,
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है ????
एहसान तेरा है की दुःख दर्द का सैलाब दिया ,
मेरी आँखों को तुने आंसुओं से तार दिया..
एक बार भी न समझा मुझे भाता क्या है?????
छीन कर बैठ गयी मेरी मोहब्बत को कभी,
जब भी मिली एक नयी चाल मेरे साथ चली,
मेरी तकदीर से अब तेरा इरादा क्या है??????
जब भी मिलती है कहीं रूठ के चल देती है,
मेरे दिल को तू फिर एक बार मसल देती है
हैरान हूँ मुकदर को मेरे तराशा क्या है ?????
कौन सी खताओं की मुझे रोज सजा देती है,
मुश्किलें डाल के बस मौत का पता देती है ...
तेरा अब मेरी वफाओं मे और इजाफा क्या है ?????
जिंदगी का ना जाने मुझसे और तकाजा क्या है ,
इसके दामन से मेरे दर्द का और वादा क्या है????

राधाकृष्णन, कबीर, तुम्हारे या फिर अपने बहाने ...? (कुछ व्यक्तिगत कारणों से इधर व्यस्त या कहूं की अस्त - व्यस्त रहा इस कारण शिक्षक दिवस पर ज़्यादा तैयारी से ब्लॉग पर नही आ पाया उसके लिए क्षमायाचना के साथ) A teacher affects eternity; he can never tell where his influence stops ( एक शिक्षक आने वाले युगों तक प्रभाव डालता है.....कितना और कितने समय तक यह उसे ख़ुद को भी नहीं मालूम होता !) हेनरी ब्रुक एडम्स की यह उक्ति वाकई कितनी सटीक है। कल जब मैं पहली बार इतनी परेशानी में था की मुझे याद ही न रहा कि आज शिक्षक दिवस है, तभी मुझे एक ई मेल मिली जिसमे यह उक्ति थी ..... कुछ समय के लिए अपनी सारी परेशानी भूल कर स्कूल के दिनों में चला गया।

राम-नाम कै पटंतरै, देबे कौं कछु नाहिं । क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं ॥

सुबह सुबह अपनी साइकिल उठा कर सबसे पहले फूलों की दूकान पर जाकर मास्टर जी/सर/गुरूजी के लिए फूल खरीदना...... "५ रुपये का है बेटा .... " "चचा यार घर से ३ ही रुपये मिले हैं आज मास्टर साब को फूल देना ज़रूरी है....टीचर्स डे है ना आज !" "ऊ तो मालोमै है हमको, अमा बरखुरदार ये बताओ ..... साल भर तो उनको तिगनी का नाच नचाये रहते हो, ससुर ऊ दिन उनकी गाड़ी की हवा भी तुम्ही निकाले थे ना ? आज कौन सा गज़ब हो गया कि अमां फूल पाती चढ़ा रहे हो ??" " अमां चचा ऐसा है कहानी ना समझाओ हमको, आज देश के दूसरे राष्ट्रपति डाक्टर राधाकृष्णन की सालगिरह है .... वो भी टीचर थे ..... बस उन्ही की याद में शिक्षक दिवस मनाते हैं " " अच्छा जैसे १५ अगस्त - २६ जनवरी मानते हैं ?" " हाँ ऐसे ही समझ लीजिये .... ख़ुद तो चले गए ...हम को फंसा गए ये सब मनाने को !!"

We expect teachers to handle teenage pregnancy, substance abuse, and the failings of the family। Then we expect them to educate our children - John Sculley मैं सोचता हूँ हम में से ज़्यादातर को ये याद होगा ...... उसके बाद स्कूल में मास्टर साहब से दरवाज़े का फीता कटवाना और फिर उनको पूरी कक्षा की ओर से एक तोहफा ...... और फिर होड़ लग जाती उनको अपना अपना गुलाब देने की, कभी कभी कुछ बड़े घरों के बच्चे जब अध्यापकों के लिए महंगे तोहफे ले आते तब थोड़ा बुरा भी लगता पर खैर ...... अगले दिन से फिर वही .... " होम वर्क किया ?" " नहीं सर !" " जाओ पीछे जा कर दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो जाओ !" " सर, आइन्दा से ऐसा नहीं होगा !" " जितना कहा उतना सुनो ... पीछे !!" (और फिर तमाम तरह के बुरे चेहरे बनाते हुए पीछे जाकर खड़े हो जाते थे, दिमाग चलता रहता था कि अब इनको कैसे परेशान करना है ....)

गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है, गढ़ी गढ़ी काढ़े खोट

अन्तर हाथ सहार दे, बाहर बाहे चोट

ये सब याद आया और फिर याद आया स्कूल का आखिरी दिन और उस दिन की बाद से हर रोज़ स्कूल को, स्कूल के टीचरों को और स्कूल के दोस्तों को याद करना ..... वो सारे टीचर जिनको सताया उनकी भी याद आती है .....जिन सहपाठियों से एक एक साल बात नहीं की उनको रोज़ ऑरकुट पर ढूंढता हूँ ...... आज सोचता हूँ तो पाता हूँ कि आज जो कुछ हूँ उसमे उनका कितना बड़ा योगदान है ...... अंग्रेज़ी की क्लास में मार न खाता तो आज फर्राटे से बोल नहीं पाता, गणित की कक्षा में पीछे ना खडा होता तो आज जीवन के सवाल क्या हल कर पाता ? भूगोल की जिन कक्षाओं से गोल रहा वो आज तक गोल गोल घुमा रही हैं ......

गुरु गोविन्द दोउ खड़े, काके लागू पाय

बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय

आज जो कुछ हूँ उसमें उनका योगदान अपरिमेय है...... उसका धन्यवाद नहीं कर सकता

तेरा तुझको सौंप दूँ, क्या लागत है मोर

मेरा मुझ में कुछ नाही, जो होवत सो तोर

पर आज ये बताना चाहता हूँ कि जो कुछ हूँ ...... आपकी वजह से, जहाँ तक पहुँच पाया आपकी वजह से ......जहाँ तक जाऊँगा, वह रास्ता आपका दिखाया हुआ है और चलने का हौसला भी आपने ही दिया है ! अगर कभी वो पा पाया जो सोच रखा है तो ...... वो मेरा नहीं आपका प्राप्य होगा, मेरी उपलब्धियां हमेशा आपकी मोहताज होंगी .....

गुरु ब्रह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा

गुरु साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवै नमः

आप सब जो बचपन से अब तक चलना ही नहीं .... बदलना भी सिखाते रहे ......... कल अगर दुनिया बदली तो सबसे पहला श्रेय आपको मिलेगा ...... हम सब ये स्वीकार करते हैं कि आप हमारे बचपन की यादों से वर्तमान के वक्त में शामिल हैं ..... आप की वजह से हम हैं इसलिए हम आप से अलग नहीं हो सकते आपकी शिक्षा से हमारा ज्ञान है आपकी दीक्षा से हमारा व्यवहार है आपके प्रेक्षण से हमारा चरित्र आपकी प्रेरणा से हमारी प्रगति आपके ध्यान से हमारी शुचिता है अगर आज भी हम इतना नहीं पथ भ्रष्ट हुए जितना दुनिया ने प्रयास किया तो उसकी वजह भी आप हैं ...... आपकी मति आज हमारी गति बन गई है और अधिक लिखना अब मूर्खता है ..... कबीर का अब यह आख़िरी दोहा बचा है,

सब धरती कागद करूं, लेखनी सब बनराय

सात समुद्र की मसि करूं, गुरु गुन लिखा ना जाए

( सारी धरती को कागज़ कर लूँ, सारे जंगलों के पेडो की कलम बना दूँ, सातों सागरों की स्याही कर लूँ पर गुरु के गुन लिखना सम्भव नहीं )

Friday, September 5, 2008

बीत दिन याद आते हैं !

आज बहुत दिनों के बाद यहां लिखने का का मिला है। पिछले दिनों ज़िन्दगी में बहुत कुछ बदल गया। सच कहुं तो पता ही नहीं चला कि वक़्त कब गुज़र गया। आप सभी लोगों की बहुत याद आती है। ख़ासकर परवेज़ सर की ज़िन्होंने हमेशा हम सबका साथ दिया और मुश्किलों से लड़ने का हौसला भी। शुक्रिया सर।

Thursday, September 4, 2008

"आँखें "

"आँखें "
तुम्हें देखने को तरसती हैं आँखें, बहोत याद कर के बरसती हैं ऑंखें........... जब जब ख्यालों में लातें हैं तुमको, शर्मो हया से लरजती हैं ऑंखें ............ फूलों का तबस्सुम, या पतझड़ का मौसम, तेरी बाट मे ही सरकती हैं ऑंखें................. यूँ तन्हाई मे जब बिखरता है दामन, तेरे साथ को बस सिसकती हैं आंखें........... चिरागों के लौ मे भी जान ना रहे जब, ग़म -ऐ-इश्क में फिर दहकती हैं ऑंखें...........

Wednesday, September 3, 2008

"तुम्हें पा रहा हूँ"

"तुम्हें पा रहा हूँ" तुम्हें खो रहा हूँ तुम्हें पा रहा हूँ, लगातार ख़ुद को मैं समझा रहा हूँ.... ना जाने अचानक कहाँ मिल गयीं तुम, मैं दिन रात तुमको हे दोहरा रहा हूँ........ शमा बन के तुम सामने जल रही हो, मैं परवाना हूँ और जला जा रहा हूँ .... तुम्हारी जुदाई का ग़म पी रहा हूँ, युगों से मैं यूँ ही चला जा रहा हूँ... अभी तो भटकती ही राहों में उलझा, नहीं जानता मैं कहाँ जा रहा हूँ.... नज़र में मेरे बस तुम्हारा है चेहरा, नज़र से नज़र में समां जा रहा हूँ...... बेकली बढ़ गयी है सुकून खो गया है, तुझे याद कर मैं तड़प जा रहा हूँ.......... कहाँ हो छुपी अब तो आ जाओ ना तुम, मैं आवाज़ देता चला जा रह हूँ ........

Tuesday, September 2, 2008

" मैं दूंढ लाता हूँ"

" मैं दूंढ लाता हूँ"
अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ ..... जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ" किसी बस्ती की गलियों में किसी सहरा के आँगन में ... तुम्हारी खुशबुएँ फैली जहाँ भी हों मैं जाता हूँ तुम्हारे प्यार की परछाइयों में रुक के जो ठहरे ............ सफर मैं जिंदिगी का ऐसे ख्वाबों से सजाता हूँ तुम्हारी आरजू ने दर बदर भटका दिया मुझको ............ तुम्हारी जुस्तुजू से अपनी दुनिया को बसाता हूँ कभी दरया के साहिल पे कभी मोजों की मंजिल पे........ तुम्हें मैं ढूँडने हर हर जगह अपने को पाता हूँ हवा के दोष पर हो कि पानी की रवानी पे ............. तुम्हारी याद में मैं अपनी हस्ती को भुलाता हूँ मुझे अब यूँ ने तड़पाओ चली आओ चली आओ ...... चली आओ चली आओ चली आओ चली आओ अगर उस पार हो तुम " मैं अभी कश्ती से आता हूँ ..... जहाँ हो तुम मुझे आवाज़ दो " मैं दूंढ लाता हूँ"...........

Monday, September 1, 2008

"तुम्हारा है

"तुम्हारा है "
जो भी है वो तुम्हारा ... यह दर्द कसक दीवानापन ...
यह रोज़ की बेचैनी उलझन , यह दुनिया से उकताया हुआ मन...
यह जागती आँखें रातों में, तनहाई में मचलना और तड़पन ..........
ये आंसू और बेचैन सा तन , सीने की दुखन आँखों की जलन ,
विरह के गीत ग़ज़ल यह भजन, सब कुछ तो मेरे जीने का सहारा है ........
जो भी है वो तुम्हारा है

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips