रंगकर्मी परिवार मे आपका स्वागत है। सदस्यता और राय के लिये हमें मेल करें- humrangkarmi@gmail.com

Website templates

Tuesday, March 17, 2009

सबकुछ याद है

मुझे अपने घर का आँगन सामने की गली याद आती है , जहाँ कभी , किसी जमाने में मेले लगते थेवो खिलौने याद आते है ,जो कभी बिका करते थेछोटा सा घर , पर बहुत खुबसूरत , शाम का समय और छत पर टहलना , सबकुछ याद हैकुछ मिटटी और कुछ ईंट की वो इमारत , वो रास्ते जिनपर कभी दौडा करते थे , सबकुछ याद हैगंवई गाँव के लोग कितने भले लगते थे , सीधा सपाट जीवन , कही मिलावट नही , दूर - दूर तक खेत , जिनमे गाय -भैसों को चराना , वो गोबर की गंध भैसों को चारा डालना , सबकुछ याद हैगाय की दही सही , मट्ठे से ही काम चलाना , मटर की छीमी को गोहरे की आग में पकाना , सबकुछ याद हैवो सुबह सबेरे का अंदाज , गायों का रम्भाना , भागते हुए नहर पर जाना और पूरब में लालिमा छाना , सबकुछ याद हैबैलों की खनकती हुई घंटियाँ , दूर - दूर तक फैली हरियाली , वो पीपल का पेड़ और छुपकर जामुन पर चढ़ जाना , सबकुछ याद हैपाठशाला में किताबें खोलना और छुपकर भाग जाना , दोस्तों के साथ बागीचों में दिन बिताना , सबकुछ याद हैनानी से कहानी की जिद करना ,मामा से डांट खाना , नाना का खूब समझाना , मीठे की भेली को चुराना और चुपके से निकल जाना सबकुछ याद हैअब लगता है , उन रास्तों से हटा कर कोई मुझे फेंक रहा हैवो दिन आज जब याद याते है तो मन को बेचैन कर देते है ...... अब कुछ यादें धुंधली होती जा रही हैफ़िर भी बहुत कुछ याद है

1 comment:

Asha Joglekar said...

बहुत संदर चित्र खींचा है आपने गाँव के जीवन का और ये आपका अपना अनुभव है ।

सुरक्षा अस्त्र

Text selection Lock by Hindi Blog Tips