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Thursday, March 5, 2009

सोचता हूँ .......

सोचता हूँ , हल चलाता हुआ मंगरू मुझसे अच्छा है । उसे अपने काम का पता तो है न । वह मन से कर भी रहा है । मुझे तो बहुत कुछ पता ही नही और कुछ - कुछ पता है भी तो काम नही करता । मन से तो बिल्कुल ही नही । अवसर की आहट कई बार सुन कर भी अनसुना कर चुका हूँ , जिसका खामियाजा आजतक भुगत रहा हूँ । लगता है , कोई भी मंडप मेरे लिए नही सजेगा । मेरा कभी भी अभिषेक नही होगा । मै अकेला ही रह जाऊँगा । रातों में चाँदनी नसीब नही होगी । कोई राह नही कोई , कोई मंजील नही दिखती , गोल गोल घूम रहा हूँ । लगता है , आगे बढ़ रहा हूँ । क्या करू ,निर्दोष हिरणों को मारकर सेज नही सजा सकता , सो दुनिया से दो कदम पीछे रह गया । बछडे का हक़ मारकर पंचामृत नही बना सकता , सो प्यासा रह गया । चंदन तरु काटकर तिलक नही लगा सकता , सो आगे नही जा पाया ।

2 comments:

Asha Joglekar said...

ज्यादा सोचना नही बस करना ।

mark rai said...

jee aapake advice ka dhyan rakhuga.

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