"कभी आ कर रुला जाते"
दिल की उजड़ी हुई बस्ती,कभी आ कर बसा जाते
कुछ बेचैन मेरी हस्ती , कभी आ कर बहला जाते...
युगों का फासला झेला , ऐसे एक उम्मीद को लेकर ,
रात भर आँखें हैं जगती . कभी आ कर सुला जाते ...
दुनिया के सितम ऐसे , उस पर मंजिल नही कोई ,
ख़ुद की बेहाली पे तरसती , कभी आ कर सजा जाते ...
तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...
वीराना, मीलों भर सुखा , मेरी पलकों मे बसता है ,
बनजर हो के राह तकती , कभी आ कर रुला जाते.........
5 comments:
बहुत बहुत दर्दीली और भावः प्रधान रचना/ दुनिया के सितम ,मंजिल का आभाव .उजड़ी बस्ती ,बैचेन हस्ती बीराना बंजर ,बहाली /सुंदर शब्दों का चयन और ख़ास तौर पर शीर्षक /चित्र का चयन वेसे तो ठीक ही है परन्तु उतना सानुकूल नहीं है /क्षमा के साथ निवेदन /
तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...
वीराना, मीलों भर सुखा , मेरी पलकों मे बसता है ,
बनजर हो के राह तकती , कभी आ कर रुला जाते.........
khoobsurat
rulane wale to bahut mil jayenge, jarurat to aise hamdardon kee hai jo rote huye ko hasa jaye.
तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...
i think day by day u will be turned as a living legend of poetry
बहोत खूब सीमाजी ।
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