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Wednesday, October 1, 2008

"कभी आ कर रुला जाते"

"कभी आ कर रुला जाते"
दिल की उजड़ी हुई बस्ती,कभी आ कर बसा जाते कुछ बेचैन मेरी हस्ती , कभी आ कर बहला जाते... युगों का फासला झेला , ऐसे एक उम्मीद को लेकर , रात भर आँखें हैं जगती . कभी आ कर सुला जाते ...
दुनिया के सितम ऐसे , उस पर मंजिल नही कोई , ख़ुद की बेहाली पे तरसती , कभी आ कर सजा जाते ... तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन, बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते... वीराना, मीलों भर सुखा , मेरी पलकों मे बसता है , बनजर हो के राह तकती , कभी आ कर रुला जाते.........

5 comments:

BrijmohanShrivastava said...

बहुत बहुत दर्दीली और भावः प्रधान रचना/ दुनिया के सितम ,मंजिल का आभाव .उजड़ी बस्ती ,बैचेन हस्ती बीराना बंजर ,बहाली /सुंदर शब्दों का चयन और ख़ास तौर पर शीर्षक /चित्र का चयन वेसे तो ठीक ही है परन्तु उतना सानुकूल नहीं है /क्षमा के साथ निवेदन /

MANVINDER BHIMBER said...

तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...
वीराना, मीलों भर सुखा , मेरी पलकों मे बसता है ,
बनजर हो के राह तकती , कभी आ कर रुला जाते.........
khoobsurat

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

rulane wale to bahut mil jayenge, jarurat to aise hamdardon kee hai jo rote huye ko hasa jaye.

makrand said...

तेरी यादों की खामोशी , और ये बेजार मेरा दामन,
बेजुबानी है मुझको डसती , कभी आ कर बुला जाते...

i think day by day u will be turned as a living legend of poetry

Asha Joglekar said...

बहोत खूब सीमाजी ।

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