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Saturday, November 17, 2007

मीडिया का कड़वा सच

दूर कहीं छोटेसे शहर में बैठा हर इसांन जो जुड़ना चाहता है खबरो कि दुनिया से आज के इस दौर में उसकी पहली पसंद होती है न्यूज़ चैनल . हर कोई रिपोर्टर और एंकर बनने का ख्वाब देखता है । उस वक्त ज़हन में सिर्फ एक ही बात होती है हमें मौका मिले तो सही दुनिया बदल कर रख देगें । औऱ अपने सपनो को पूरा करने के लिए चले आते है इन ख़बरो के बाजार वाले शहर में । जहां आकड़ो पर नजर डाले तो तकरीबन हर साल 6 से 7 हजार लोग दुनिया बदलने का दावा करके इस बाजार में उतरते हैं औऱ उनके भावनाओं को हवा देने के लिए मोटी रकम में यहां हर नुक्कड़ पर एक खबरो की दुकान दूर से ही नज़र आ जाएगी । लेकिन बाजार में उतरने के साथ हर पल सामना होने लगता है मिडिया के उन पहलूओ से जिनसे हर नया इंसान होता है बेखबर जब तक वो इनसे रूबरू होता है तब तक काफई कुछ हाथ से निकल चुका होता है । जहां तक मेरा अनुभन है मैने हर दुसरे नये पज्ञकार की जुबान से सिर्फ एक ही बात सुनी है काश मेरा भी कोई रिश्तेदार नातेदार होता तो मैं भी इस चैनल में होता और तो और अगर कोई नहीं है घर को तो कोई प्रभावशाली नेता से ही जान पहचान होती तो काम बन जाता । क्या खबरो की दुनिया से जुड़ने वाली नईपीढ़ी को बैसाखी का सहारा ले कर आगे जाना पड़ेगा । ख़बर कम और रोजी रोटी की चिंता ज्यादा करना पड़े गा । अगर जिंदगी के मुताबिक जरुरत ही ना पुरी होगी तो कोई भी दूसरो की तकलीफ कैसे पहचानेगा, जब तक वो खुद तकलीफ से जूझ रहा हो । मिडिया मैं कोई ऐसी संस्थआ जरूर होनी चाहिए जो इन सारी बुनियादी चिजो पर नजर रख सके । जहां हर नया पत्रकार बिना किसी डर के अपनी बात कह सके । नहीं तो अभी हालात इतने बिगड़े हुए है मसलन जहां लड़को को नौकरी के लिए महिनो किसी ना किसी के चक्कर लगाने पड़ते और लड़कियो को नौकरी के लिए वो हर कुछ सुनना पड़ता है जो उन्हे पसंद ना हो. खबरो से ज्यादा अपराध की तरफ बढ़ाने में कारगर होता जा रहा है वो बहुत ही भाग्यशाली लोग होते है जिन्हे बिना इन सबसे गुजरे इसमें प्रवेश मिलता है । मेरी गुजारिश है हर उन बड़े सिनियर पत्रकारो से कि इस बात को नज़रअंदाज न करे औऱ आने वाली पिढ़ी के लिए एक मापदंड तय करे और उन पर नजर भी रखे नहीं तो अपराध तो बढ़ेगा ही और खबरो की दुनिया का जबवा जो बाकी क्षेत्रों में है उस पर भी असर पड़ेगा। तुलिका सिंह ,CNEB NEWS

2 comments:

Ashish Maharishi said...

तूलिका जी इसके लिए काफी हद तक वो लोग जिम्मेदार हैं जो मीडिया में ऊँचे ओहदे पर बैठे हुए हैं..और अब तो बाजारवाद के इस वक्त में जो मिशन की बात करता है उसकी हँसी उडाई जाती हैं. और हँसी उडाने वाले मीडिया के ही सीनीयर लोग होते हैं.

Ankit Mathur said...

माफ़ कीजियेगा तूलिका जी, अनावश्यक रूप
से आपकी टेरिटरी में हस्तक्षेप कर रहा हूं
परन्तु मेरा अपना मानना है कि,
पत्रकारिता से संबंधित लेख हम भडास पर भी
प्रकाशित कर सकते हैं।
"रंगकर्मी" को यदि रंग कर्म से जुडी बातो,
जानकारियों के लिये ही छोड़ दें तो कैसा रहेगा?
.............................
मात्र एक विचार है, कृपया अन्यथा ना लें।

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