Monday, November 26, 2007
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परवेज़ सागर
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इलेक्ट्रानिक मीडिया में भूकंप
आज सुबह 4 बजकर 43 मिनट पर दिल्ली और आसपास के इलाकों में भूकंप के झटके महसूस किए गए। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.3 थी, जो ख़तरे के लिहाज़ से अधिक नहीं मानी जाती है। खुदा का शुक्र था कि कुछ भी नुक़सान नहीं हुआ। लेकिन इलेक्ट्रानिक मीडिया में इसकी तीव्रता काफ़ी अधिक दिखी। आमतौर पर 6 बजे सुबह से लाइव बुलेटिन की शुरुआत करने वाले ख़बरिया चैनलों में आज पांच बजे का बुलेटिन भी लाइव था। फिर शुरू हुआ, जनता के फ़ोन कॉल्स के आमंत्रण का चिर-परिचित सिलसिला और वही घिसे-पिटे सवाल मसलन जब भूकंप आया तो आप उस वक्त आपने कैसा महसूस किया, आपने फिर क्या किया, आपको कैसा लगा, आप उस वक्त क्या कर रहे थे, जाहिर है लोग घरों से बाहर निकल आए होंगे, फिर उसके बाद क्या हुआ आदि- आदि। ऐसे-ऐसे सवाल जिन्हें सुनकर आप हैरान हो जाएंगे। ऐसे सवाल जो खुद में जवाब हैं। पर ऐंकर करे क्या, उन्हें तो टाइम पास करना है। प्रतिक्रया देने वाले बदल रहे थे, ऐंकर वही, सवाल भी वही। साफ़ नज़र आ रहा था कि उनके पास इन्फॉर्मेशन कम है लिहाज़ा एक ही बात को रिपीट करने के सिवा कोई चारा नहीं। कुछ देर तक मौसम वैज्ञानिक से संपर्क स्थापित हो चुका था, रिसर्च भी हो चुकी थी। तब तक इसका एपिसेंटर और तीव्रता भी पता चल चुकी थी। अब तक तो काफ़ी मटेरियल हो चुका था उनके पास एक घंटे खाने के लिए। लगभग सारे शीर्षस्थ चैनल इसे जमकर भुनाने में लगे थे। सच भी है क्या पता अगला भूकंप कब आए। कई चैनलों के ऐंकर तो बार-बार मौसम वैज्ञानिक से एक ही सवाल दोहरा रहे थे या यू कहें कहलवा लेना चाह रहे थे कि वो किसी भी तरह से अगले भूकंप की भविष्यवाणी कर दे। बहरहाल, उन्होंने ऐसा नहीं किया। अंग्रेजी चैनलों मे भी ख़बर थी, लेकिन वो जनता से प्रतिक्रिया नहीं मांग रहे थे, शायद उनका दर्शकवर्ग प्रतिक्रया देने में समर्थ नहीं है या उन्हें प्रतिक्रिया की ज़रूरत नहीं, भगवान जाने। शायद ख़बरों को भुनाने के लिए उतावलेपन की कमी ही वो बड़ी चीज़ है जो अंग्रेजी चैनलों को हिंदी ख़बरिया चैनलों से जुदा करती है। समझ में नहीं आता वो दर्शकों को अपनी ओर खींचने के ऐसे मौके छोंड़ देते हैं फिर भी जनता में उनकी क्रेडिबिलिटी कहीं अधिक है। आखिर हम कब इस बात को समझेंगे कि दर्शकों को अपनी ओर खींचने की कोशिश तो ज़रूरी है। लेकिन उसके और भी तरीके हैं।
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