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Wednesday, July 9, 2008

कागा बोले

कागा बैठ मुंडेर पर बोले सूचक शव्द अतिथि आने वालें हैं क्यूं खडी हो स्तव्ध जाओ जाकर कर लो आज जी भर साज सिंगार मलिन केश ये धो डालो, पहनो कंगना, हार उड उड रे कागा, तुझी को पहना दूं ये हार क्या पर सच में आयेंगे मन मोहन गिरिधार बैठ जरा सी देर को, तुझे खिलाऊँ खीर उनकी बाट सजाऊंगी रंगोली डाल अबीर चंदन के उबटन से तेरे तनको शीतल कर दूं इस शुभ वार्ता के लिये जीवन न्योछावर कर दूं कागा इस संदेस से ले लीन्हा मुझे मोल तन मन पुलकित कर गई बोली तेरी अनमोल

3 comments:

Keerti Vaidya said...

locvley poem ...

ilesh said...

supeb intajaar ko behad khubsurat bana diya aapne asha ji...

Naveen Bhagat said...

" चंदन के उबटन से तेरे तनको शीतल कर दूं
इस शुभ वार्ता के लिये जीवन न्योछावर कर दूं"

Mrs Asha, I'm not a good critic, but if I ask my reaction to this poem.. पावन is the the first word for it

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