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Friday, July 18, 2008



यादें"

बहुत रुला जाती हैं , दिल को जला जातीं हैं ,
नीदों मे जगा जाती हैं , कितना तड़पा जातीं हैं ,
“यादें" जब भी आती है ”
भीगे भीगे अल्फाजों को , लबों पर लाकर ,
दिल के जज्बातों को , फ़िर से दोहरा जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”
खाली अन्ध्यारे मन के , हर एक कोने मे ,
बीते लम्हों के टूटे मोती , बिखरा जाती हैं ,
“यादें जब भी आती है ”
हम पे जो गुजरी थी , उन सारी तकलीफों के ,
दिल मे दबे हुए , शोलों को भड़का जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”
कितना सता जाती हैं , दीवाना बना जाती हैं ,
हर जख्म दुखा जाती हैं , फ़िर तन्हा कर जाती हैं ,
“यादें जब भी आती हैं ”

2 comments:

tulika singh said...

sima ji aapki 2 -3 poem maine padhi hai... padhkar sirf ek baat lagi.... ki aap apne emotion ko bakhubi poem mai dhal leti hai... wise is poem ko padhakar koi bhi apne past mai chala jayega....... aur ha mere post par comment likhne ke liye thanks

व्‍यंग्‍य-बाण said...

seema ji,
dil ko chhoo gai aapki kavita,

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