"बस यूँही ......"
है बडा दिलनशी प्यार का सिलसिला ,
मेरे दिल को है तेरे दिल से मिला .
तुम मुझे बस यूँही प्यार करते रहो ,
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......
तुम मुझे बस यूँही प्यार करते रहो ,
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......
दिन गुज़र जाने पर रात होती है यूँ ,
दिल से तेरे मेरी बात होती है यूँ ,
मुझसे तुम बस यूँही बात करते रहो
दिल से तेरे मेरी बात होती है यूँ ,
मुझसे तुम बस यूँही बात करते रहो
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......
दिल में मेरे जला कर मोहब्बत के दीप ,
तुम ने उम्मीद को कर दिया है समीप ,
इनको बुझने ना देना जलाते रहो ,
तुम ने उम्मीद को कर दिया है समीप ,
इनको बुझने ना देना जलाते रहो ,
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही ......
मेरी दुनिया को था बस तेरा इंतज़ार ,
इसको महका दिया तुने जाने बहार ,
इस चमन में खड़े मुस्कुराते रहो ,
इसको महका दिया तुने जाने बहार ,
इस चमन में खड़े मुस्कुराते रहो ,
बस यूँही , बस यूँही ,बस यूँही
4 comments:
dilnashin gazal.
Bahut kam log hote hai jinhe likhne ki salahiyat kudrat se milti hai..... Unhi me se ek Aap hai hai..... Ummid hai Aap ki kalam sada aise hi chalti rahegi.... shubhkamnaon sahit.....
Parvez sagar
Nice Poem
"ब्रडस" को "वाँच" करते हुए एक दिन,
गुप्त सीमा की डाली पे मै आ गया,
प्यार ही प्यार बिखरा हुआ था यहाँ,
बस यूंही मै भी ज़रा रुक गया।
-एम,हाशमी
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