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Wednesday, July 16, 2008

एकीस्वी सदी मैं दुन्दते रह जाओ गे

बच्चो मैं बचपन , जवानों मैं योवन शीशो मैं दर्पण , जीवन मैं सावन गाँव मैं अखाडा , सेहर मैं सिंगाड़ा और टेबल की जगह पहाडा दुन्दते रह जाओगे.. आँखों मैं पानी , दादी की कहानी प्यार के दो पल , नल नल मैं जल संतो मैं वाणी , करण जैसा दानी घर मैं मेहमान , मनुष्यता का सम्मान पड़ोस की पहचान , रसिको के कान तराजू का बट्टा और लड़कियों का दुप्पटा दुन्दते रह जाओगे भरत सा भाई , लक्ष्मण सा अनुयाई चूड़ी भरी कलाई , शादियों मैं शेहनाई मंच पर कविताई , गरीब को खोली और अगन मैं रोली , परोपकारी बन्दे और अर्थी को कंधे धुन्द्ते रह जाओगे कट्टरता का उपाय ,सबकी राय नेताजी को चुनाव जितने के बाद लखनऊ मैं रहित आस , सास लेने को ताज़ी हवा सरकारी अस्पतालों मैं दावा , संस्कृति का सम्मान और नक्शे मैं पाकिस्तान धुन्द्ते रह जाओगे जवाहर जैसे इज्ज़त , सुबाश जैसे हिम्मत पटेल के इरादे , शास्त्री सीधे सादे पन्नाधाय का त्याग , रानी लक्ष्मीबाई की आग स्वामी विवेकानंद का स्वाभिमान , इन्द्रा जैसे बोल्ड अटल बिहारी जैसा ओल्ड , महात्मा जैसा गोल्ड और मायावती जैसे फ्री होल्ड , दुन्दते रह जाओगे बस दुन्दते रह जाओगे.. ऋत्विक विसेन

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढिया.

Asha Joglekar said...

बहुत कमाल का लिखा है, अगर अशुध्दियाँ न हो तो और मजा आये । जैसे धूंदते या दूंदते नही ढूंढते
होना चाहिये ।
बुरा न मानना मर में बडी हूं तो लिख दिया ।

Fighter Jet said...

nahi manta....sub mil jayenge..jara dhund kar to dekhiye....

Naveen Bhagat said...

Sir, indeed a good poem.. very well drawn thought and beautifully put across..

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