Sunday, October 23, 2011
दिवाली
नव सुवसना नारी नर सब आज स्वागत में भजे
धूप, चंदन, पुष्पमाला करें पूजन लक्ष्मी का
मलिनता और द्वेष ईर्षा आज के दिन सब त्यजें ।
नाना विविध पकवान से श्री भोग को अर्पित करें
प्रसाद ये फिर स्नेह पूर्वक साथ साथ ग्रहण करें
नमन मन से करें, विनती, देवि से समृध्दी की
घर द्वार आंगन नगर देश सब धान्य औ धन से भरे ।
सुख शांति का साम्राज्य हो पर देश हित तत्पर रहें
हमें असावध देख बैरी ना कोई खटपट करे
मजबूत हों सैनिक हमारे, नागरिक भी सशक्त हों
यही इच्छा करें और इसको कर्म से सुफल करे ।
सभी ब्लॉगर बंधु भगिनियों को दिवाली की अनेक शुभ कामनाएँ ।
Sunday, September 18, 2011
श्रीगंगानगर-सनातन धर्म,संस्कृति में पुत्र की चाहना इसीलिए की जाती है ताकि पिता उसके कंधे पर अंतिम सफर पूरा करे। शायद यही मोक्ष होता होगा। दोनों का। लेकिन तब कोई क्या करे जब पुत्र के होते भी ऐसा ना हो। पुत्र भी कैसा। पूरी तरह सक्षम। खुद भी चिकित्सक पत्नी भी। खुद शिक्षक था। तीन बेटी,एक बेटा। सभी खूब पढे लिखे। ईश्वर जाने किसका कसूर था? माता-पिता बेटी के यहाँ रहने लगे। पुत्र,उसके परिवार से कोई संवाद नहीं। उसने बहिनों से भी कोई संपर्क नहीं रखा। बुजुर्ग पिता ने बेटी के घर अंतिम सांस ली। बेटा नहीं आया। उसी के शहर से वह व्यक्ति आ पहुंचा जो उनको पिता तुल्य मानता था। सूचना मिलने के बावजूद बेटा कंधा देने नहीं आया।किसको अभागा कहेंगे?पिता को या इकलौते पुत्र को! पुत्र वधू को क्या कहें!जो इस मौके पर सास को धीरज बंधाने के लिए उसके पास ना बैठी हो। कैसी विडम्बना है समाज की। जिस बेटी के घर का पानी भी माता पिता पर बोझ समझा जाता है उसी बेटी के घर सभी अंतिम कर्म पूरे हुए। सालों पहले क्या गुजरी होगी माता पिता पर जब उन्होने बेटी के घर रहने का फैसला किया होगा! हैरानी है इतने सालों में बेटा-बहू को कभी समाज में शर्म महसूस नहीं हुई।समाज ने टोका नहीं। बच्चों ने दादा-दादी के बारे में पूछा नहीं या बताया नहीं। रिश्तेदारों ने समझाया नहीं। खून के रिश्ते ऐसे टूटे कि पड़ोसियों जैसे संबंध भी नहीं रहे,बाप-बेटे में। भाई बहिन में। कोई बात ही ऐसी होगी जो अपनों से बड़ी हो गई और पिता को बेटे के बजाए बेटी के घर रहना अधिक सुकून देने वाला लगा। समझ से परे है कि किसको पत्थर दिल कहें।संवेदना शून्य कौन है? माता-पिता या संतान। धन्य है वो माता पिता जिसने ऐसे बेटे को जन्म दिया। जिसने अपने सास ससुर की अपने माता-पिता की तरह सेवा की। आज के दौर में जब बड़े से बड़े मकान भी माता-पिता के लिए छोटा पड़ जाता है। फर्नीचर से लक दक कमरे खाली पड़े रहेंगे, परंतु माता पिता को अपने पास रखने में शान बिगड़ जाती है। अडजस्टमेंट खराब हो जाता है। कुत्ते को चिकित्सक के पास ले जाने में गौरव का अनुभव किया जाता है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ जाने में शर्म आती है। उस समाज में कोई सास ससुर के लिए सालों कुछ करता है। उनको ठाठ से रखता है।तो यह कोई छोटी बात नहीं है। ये तो वक्त ही तय करेगा कि समाज ऐसे बेटे,दामाद को क्या नाम देगा! किसी की पहचान उजागर करना गरिमापूर्ण नहीं है।मगर बात एकदम सच। लेखक भी शामिल था अंतिम यात्रा में। किसी ने कहा है-सारी उम्र गुजारी यों ही,रिश्तों की तुरपाई में,दिल का रिश्ता सच्चा रिश्ता,बाकी सब बेमानी लिख।
Monday, September 12, 2011
फालतू
जब छूट जाता है बचपन का आँगन
चिठ्ठियों का अंतराल लंबे से लंबा होता चला जाता है
और सब सिमट जाता है एक वाक्य में,
“ कैसी हो माँ “ ?
माँ का जवाब उससे भी संक्षिप्त,
“ठीक” ।
पर उसकी आँखें बोलती हैं,
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।
Wednesday, September 7, 2011
तेरी मीरा जरुर हो जाऊं।
Tuesday, September 6, 2011
दुर्गा मंदिर के चुनाव में जुगल डूमरा अध्यक्ष बने
हिन्दू बताकर मुस्लिम लड़की से शादी करवा दी
Tuesday, July 19, 2011
दुख्तक
मेरे राहों की तरह
कहीं कुछ सूझता ही नही ।
इस शहर में मौत का तांडव
कब हो जायेगा
कोई जानता ही नही ।
हम निकम्मे, बेईमान
किस को हम दोषी कहें
सब हमारा ही किया धरा ।
जिस जनता की रगों में
खून बहता ही नही
उसका जीना मरना क्या ।
छटपटाती जिंदगी
और बेरहम ये मौत भी
आज शरमिंदा है ।
मोटी चमडी, काले चश्मे
उजले लिबास, काली करतूतें
हमारे नेता हैं ये ।
Wednesday, June 8, 2011
रंगमंच की दुनिया में अमर हो गये हबीब तनवीर
रंगमंच की दुनिया में मशहूर नाट्यकर्मी हबीब तनवीर का नाम हमेशा याद रखा जायेगा। उन्होने भारतीय रंगमंच को आगे ही नही बढ़ाया बल्कि उसे एक नई दिशा भी प्रदान की। आज भले ही हबीब तनवीर इस दुनिया में न हों लेकिन उनकी कला और यादें सभी के जहन में ताजा हैं। उनके कई शागिर्द आज भी अपने उस्ताद की कमी को महसूस करते हैं।
तनवीर के साथ लगभग दो दशक तक सक्रिय रूप से जुड़े रहे नाट्य कलाकार अनूप त्रिवेदी भी उनके ऐसे ही एक शागिर्द हैं। अनूप त्रिवेदी कहते हैं कि उनके जैसा कोई दूसरा नाट्यकर्मी नहीं हो सकता। वह मेरे गुरु थे और मैंने अभिनय की बारीकियां उन्हीं से सीखीं। नाट्य जगत के दिग्गज तनवीर का जन्म एक सितंबर, 1923 को छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ। नागपुर के मॉरिस कॉलेज और अलीगढ़ मुस्लिम विविद्यालय से पढ़ाई करने वाले तनवीर ने नुक्कड़-नाटक के जरिए अपनी एक अलग पहचान कायम की थी।
त्रिवेदी के मुताबिक तनवीर की रग-रग में थियेटर के लिए प्यार था। कुछ लोग उन्हें नुक्कड़-नाटकों तक ही सीमित करते हैं लेकिन उनका योगदान बहुत बड़ा था। वह कला के सच्चे पुजारी थे। उन्होंने मेरे जैसे सैकड़ों युवकों को प्रेरणा दी।
वह 1945 में मुंबई पहुंचे और आकाशवाणी में नौकरी करने लगे। यहीं से उन्होंने फिल्मों में गीत लिखने शुरू किए और कुछ फिल्मों में भी अभिनय किया। माया नगरी में रहकर वह कई नाट्य मंडलियों से जुड़े। बाद में तनवीर दिल्ली आकर सक्रिय रूप से थियेटर से जुड़ गए। इसके बाद बतौर नाट्यकर्मी उनका जो सफर शुरू हुआ वह बेमिसाल रहा। मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल उनकी कर्मस्थली साबित हुई।
हबीब के साथ काम कर चुके नाट्य कलाकार और लेखक निसार अहमद बतातें हैं कि एक नाट्यकर्मी के तौर पूरी दुनिया हबीब तनवीर को जानती है। बहुत से लोग उनकी शख्सियत के कायल हैं। उनके भीतर गज़ब की सादगी थी। उनके साथ काम करने के अनुभव को कभी नहीं भूलाया नही जा सकता।
तनवीर ने अपने लंबे करियर में कई नाटकों का निर्माण और निर्देशन किया। उनका सबसे मशहूर नाटक ‘चरणदास चोर’ रहा। इसका निर्माण वर्ष 1975 में हुआ था। अंगेजी समाचार पत्र ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने इस नाटक को आज़ादी के बाद की 60 सर्वश्रेष्ठ कृतियों में शुमार किया था। तनवीर को संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, पद्मश्री और पद्म भूषण से भी नवाजा गया। वर्ष 1972 से 1978 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे। नाट्य कला के इस सरताज ने आठ जून 2009 को अंतिम सांस ली।
रंगमंच की इतिहास में हबीब तनवीर का नाम हमेशा याद किया जायेगा।
Sunday, May 15, 2011
अमरीका की तानाशाही और इराक का दर्द है “द लॉस्ट सेल्यूट”
इराकी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी का जूता आज तक लोग नही भूले हैं। दरअसल वो जूता इतना खास बन गया था कि दुनिया के कौने कौने मे उस जूते के चर्चे आम हो गये। इराकी जनता के गुस्से का इज़हार करने के लिये अमरीकी राष्ट्रपति जार्ज बुश पर फेंका गया वो जूता भारत मे भी कई लोगों के लिये प्रेरणा बन गया।
पूरी दुनिया के लोग आज तक ये जानने को उत्सुक रहते हैं कि आखिर मुंतज़िर अल ज़ैदी को जूता फेंकने की ज़रुरत क्यों पड़ी? इसी बात को ध्यान मे रखकर जाने-माने फिल्म निर्माता निर्देशक महेश भट्ट ने इस संवेदनशील विषय को लोगों के सामने रखने के लिये रंगमंच की दुनिया में कदम रख दिये।
महेश भट्ट ने मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब द लॉस्ट सेल्यूट टू प्रेसीडेन्ट बुश पर आधारित एक नाटक की रचना कर डाली। शनिवार और रविवार की शाम राजधानी दिल्ली के श्रीराम सेन्टर में महेश भट्ट के नाटक द लॉस्ट सेल्यूट का मंचन किया गया। नाटक मे दर्शाया गया कि किस तरह से अमरीका ने शान्ति के नाम पर छोटे से मगर सम्पन्न राष्ट्र इराक को बर्बाद किया। किस तरह से आंतक और जैविक हथियारों के बहाने बगदाद शहर पर आग बरसाई गयी। किस तरह से अमरीकी सेना ने मासूम बच्चों और औरतों पर कहर बरपाया। यहां तक कि इराक में अस्पतालों को जंग के दौरान बमों के हवाले कर दिया गया। ये नाटक उस आम आदमी की कहानी है जो अपनी आँखों से अपने घर, शहर और वतन की बर्बादी देखता है और जब उसकी हिम्मत जवाब दे जाती है तो वो कुछ कर गुज़रने की ठान लेता है। दरअसल ये नाटक अमरीका की तानाशाही को लोगों के सामने रखता है जो किसी भी मुल्क पर किसी भी बहाने से हमला करने की फिराक मे रहता है। या फिर ये कहें कि दुनिया भर के मुल्कों को डराने की कोशिश करता रहता है। ताकि वो अपनी जायज़ और नाजायज़ नीतियों को दुनिया पर थोप सके।
अस्मिता थियेटर ग्रुप के कलाकारों ने करीब एक घण्टे की इस प्रस्तुति में दर्शकों के सामने मुंतज़िर अल ज़ैदी की पूरी कहानी बंया की। अभिनय की अगर बात की जाये तो नाटक का मुख्य किरदार महेश भट्ट की अगली फिल्म में बतौर नायक एन्ट्री करने वाले इमरान जाहिद ने अदा किया। पूरे नाटक की जान मुंतज़िर अल ज़ैदी का ये किरदार ही था। लेकिन इमरान जाहिद यहां अपने अभिनय की छाप नही छोड़ पाये। नाटक मे कई जगहों पर अन्य किरदार इमरान पर हावी दिखाई दिये। आवाज़ और अभिनय के मामले में इमरान अपने किरदार मे आत्म विश्वास भरने मे नाकाम रहे तो नाटक के सूत्रधार की शक्ल मे विरेन बसोया ने दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित किया। जार्ज वी बुश का किरदार निभाने वाले ईश्वाक सिंह ने भी अपने किरदार के साथ न्याय किया। इन दोनों की संवाद अदायगी काबिल-ए-तारीफ थी। शिल्पी मारवाह ने अपने छोटे पर सशक्त किरदार को जीवंत बनाने का सफल प्रयास किया। इसके अलावा राहुल खन्ना, हिमांशु, सूरज सिंह, गौरव मिश्रा, पंकज दत्ता, शिव चौहान, रंजीत चौहान और मलय गर्ग ने संवाददाताओं की भूमिका मे अपनी आवाज़ को दूर तक पंहुचाया।
नाटक का संगीत और गायन पक्ष कमज़ोर दिखाई दिया। जिसकी ज़िम्मेदारी संगीता गौर को दी गयी थी। पार्श्व संगीत की कमी तो नाटक में शुरु से ही दिख रही थी जबकि पार्श्व संगीत के लिये नाटक मे काफी गुंजाइश थी। कोरस ने गीतों के साथ कोई न्याय नही किया। यहां तक अभिनेताओं और कोरस के बीच तालमेल की कमी लगातार दर्शकों को खलती रही। कई जगहों पर गीतों मे कोरस खुद ही भटक गया। यहां तक फैज़ अहमद, साहिर लुधियानवी और हबीब जलीब के जनगीत दर्शकों को समझ मे ही नही आये।
नाटक के निर्देशक अरविन्द गौर लगातार कई सालों से रंगमंच कर रहे हैं। अरविन्द सामाजिक और रानीतिक नाटकों के लिये जाने जाते हैं। इसलिये उनके निर्देशन मे इस नाटक से उम्मीदें ज़्यादा थी। एक माह की रिहर्सल के बाद भी वो मुख्य किरदार निभाने वाले इमरान ज़ाहिद को पूरी तरह तैयार नही कर पाये। जबकि अन्य किरदार दर्शकों पर छाप छोड़ने मे कामयाब रहे।
नाटक की स्क्रिप्ट और संवाद दर्शकों को पसन्द आये। लखनऊ के राजेश कुमार मुंतज़िर अल ज़ैदी की किताब से ली गयी कहानी को नाटक बनाने मे सफल दिखाई दिये। मैकअप पक्ष को श्रीकान्त वर्मा ने संवारा। नाटक मे लाइटिंग पक्ष भी अच्छा रहा।
मंचन के दौरान खासतौर पर इराकी टीवी पत्रकार मुंतज़िर अल ज़ैदी दिल्ली आये थे। उन्होने नाटक देखने के बाद कहा कि इस नाटक को देखकर उनकी वो सारी यादें ताज़ा हो गयी जो उनके साथ गुज़रा। उन्होने गांधी जी की सराहना करते हुये कहा कि ये देश बहुत सौभाग्यशाली है क्योंकि गांधी जी यहां रहा करते थे। जिन्होने उन्हे भी सच के लिये लड़ने की प्रेरणा दी।
नाटक के निर्माता महेश भट्ट ने कहा कि हम सभी को अन्याय के खिलाफ चुप रहने के बजाय आवाज़ उठानी चाहिये। जब तक हम आवाज़ बुलन्द नही करेगें तब तक हमारी सुनवाई नही होगी। सब साथ आईये और अपने हक के लिये, सच के लिये आवाज़ बुलन्द किजीये।
इस दौरान अभिनेत्री पूजा भट्ट, सांसद जया प्रदा, अभिनेता डीनो मारियो, सन्दीप कपूर आदि मौजूद रहे।
Wednesday, May 11, 2011
Tuesday, May 3, 2011
Saturday, April 23, 2011
Monday, April 18, 2011
Saturday, April 16, 2011
यूसुफ़ अन्सारी को ड़ॉ. अम्बेड़कर सम्मान
मुम्बई। अम्बेड़कर जयन्ती के मौके पर गुरुवार की रात मुम्बई मे आयोजित एक भव्य समारोह में देश के जाने-माने टीवी पत्रकार यूसुफ़ अन्सारी, फिल्म अभिनेता धमेन्द्र, और अभिनेत्री एंव सामाजिक कार्यकर्ता शबाना आज़मी को ड़ॉ. भीमराव अम्बेड़कर अवार्ड़ से सम्मानित किया गया। इनके अलावा कई फिल्मी कलाकारों को अलग-अलग श्रेणी मे अवार्ड़ से नवाज़ा गया।
मुम्बई मे गुरुवार की शाम ड़ॉ. अम्बेड़कर के नाम रही। महानगर के शमुखानन्द चन्द्रशेखर नरेन्द्र सरस्वती ऑडिटोरियम मे मशहूर बॉलीवुड़ पत्रिका पेज3 और महाराजा यशवंत राव होलकर प्रतिष्ठान ने ड़ॉ.भीवराव अम्बेड़कर सम्मान समारोह का आयोजन किया। इस भव्य समारोह मे देश की कई जानी मानी हस्तियां शामिल हुई। देश के जाने-माने टीवी पत्रकार एंव राजनीतिक विश्लेषक यूसुफ़ अन्सारी को अपनी ख़बरों और लेखों में समाज के पिछड़े, अतिपिछड़े, दबे, कुचले और निरक्षर वर्ग की आवाज़ उठाने के लिये इस प्रतिष्ठित सम्मान से सम्मानित किया गया। दिल्ली से पुरुस्कार ग्रहण करने मुम्बई आये वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ़ अन्सारी ने कहा कि वो ये पुरुस्कार पाकर काफी उत्साहित हैं। उनका कहना था कि बाबा साहेब से ही उन्हे निचले तबके की आवाज़ उठाने की प्रेरणा मिली थी और वे तब तक ये काम करते रहेंगें जब तक सबसे पिछड़ा तबका समाज के मजबूत तबकों के बराबर आकर ना खड़ा हो जाये। उन्होने कहा कि बाबा साहेब के नाम पर सम्मान मिलना उनके लिये गर्व की बात है।
इस मौके पर जाने-माने फिल्म अभिनेता धमेन्द्र को बॉलीवुड़ मे उनके सराहनीय योगदान के लिये लाइफटाईम अचीवमेन्ट अवार्ड़ से नवाज़ा गया। साथ ही मशहूर अभिनेत्री एंव सामाजिक कार्यकर्ता शबाना आज़मी को सोशलवर्क में उनके सराहनीय योगदान के लिये इस पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। दोनों कलाकारों ने आयोजकों की सरहाना करते हुये बाबा साहेब के बताये मार्ग का अनुसरण करने की बात कही। इनके अलावा इस मौके पर मशहूर गायिका आशा भौंसले, फिल्म अभिनेता विवेक ओबरॉय, गायिका अनुराधा पौड़वाल, गायक उदित नारायण, अभिनेत्री सलमा आगा, टीवी कलाकार अन्जन श्रीवास्तव, फिल्मकार इकबाल दुर्रानी और महाराष्ट्र के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अनीस अहमद को भी सम्मानित किया गया।
Friday, April 15, 2011
Wednesday, April 13, 2011
Tuesday, April 12, 2011
Saturday, April 9, 2011
हिन्दूस्तान में अन्ना हजारे के पक्ष में चली आंधी से सरकार थोड़ी डगमगाई। आज वह हो जायेगा जो अन्ना चाहते हैं। इस आन्दोलन से जुड़े लोग खुशियाँ मनाएंगे। एक दो दिन में अन्ना को भूल कर आई पी एल में खो जायेंगे। यही होता आया है इस देश में। आजादी मिली। हम सोचने लगे ,अब सब अपने आप ठीक हो जायेगा। क्या हुआ? कई दश पहले " हाय महंगाई..हाय महंगाई " वाला गीत आज भी सटीक है। गोपी फिल्म का गाना " चोर उचक्के नगर सेठ और प्रभु भगत निर्धन होंगे...जिसके हाथ में होगी लाठी भैंस वही ले जायेगा..... " देश के वर्तमान हालत की तस्वीर बयान करता है। लोकतंत्र। कहने मात्र से लोकतंत्र नहीं आ जाता। देखने में तो भारत में जनता की,जनता के लिए जनता द्वारा चुनी हुई सरकारे ही आई हैं। किन्तु लोकतंत्र नहीं आया। भैंस बेशक किसी की रही मगर लेकर वही गया जिसके हाथ में लाठी थी। कहीं ऐसा ही हाल इस आन्दोलन का ना हो जाये। इसलिए अन्ना हजारे के आन्दोलन से जुड़े हर आदमी को सजग ,सचेत रहना है। जो कुछ चार दिनों में जंतर,मंतर पर हुआ उसका डर सरकार को बना रहे। मकसद जन लोकपाल विधेयक नहीं ,करप्शन मुक्त भारत है। विधेयक पहली सीढ़ी है। इसके बन जाने से ही करप्शन ख़तम नहीं हो गया। होगा भी नहीं। अभी तो केवल शुरुआत है। देश में माहौल बना है। आम आदमी के अन्दर करप्शन के प्रति विरोध,आक्रोश मुखर हुआ है। वह सड़क पर उतरा है। यह सब कुछ बना रहना चाहिए। बस यह चिंगारी बुझे नहीं। ऊपर राख दिखे तो दिखे। कुरेदो तो चिंगारी नजर आनी चाहिए जो फूंक मारते ही शोला बन जाने का जज्बा अपने अन्दर समेटे हो, सहेजे हो। वरना सब कुछ जीरो।
Thursday, April 7, 2011
वर्ल्ड कप से बढ़कर है अन्ना हजारे का आन्दोलन
Sunday, April 3, 2011
Thursday, March 31, 2011
Tuesday, March 22, 2011
ग़ज़लों का म्यूजिक ऑडियो सीडी रिलीज़ हुआ ...
Tuesday, March 8, 2011
कैसे मान लूँ ?
कि हमारे बीच
कुछ हुआ न था ।
कैसे जान लूँ
कि तब जो हुआ
वह हुआ न था ।
मेरा तुम्हारा मिलना
दिलों का जुडना
हुआ न था ।
बिछडते हुए
जल्द लौटने का वादा
तुमने किया न था ।
आज एयरपोर्ट पर
पत्नी और बच्चे के साथ
तुम्हारा मिलना
यही आज का सच है
तो कल कुछ भी
हुआ न था ।