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Monday, September 12, 2011

फालतू

संवाद थम जाता है माँ के साथ,
जब छूट जाता है बचपन का आँगन
चिठ्ठियों का अंतराल लंबे से लंबा होता चला जाता है
और सब सिमट जाता है एक वाक्य में,
“ कैसी हो माँ “ ?
माँ का जवाब उससे भी संक्षिप्त,
“ठीक” ।
पर उसकी आँखें बोलती हैं,
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।

5 comments:

Unknown said...

बेहद संवेदनशील .........

मीनाक्षी said...

कोशिश यह होनी चाहिए कि जितना हो सके उनके साथ वक्त बिताया जाए...फोन,नेट या साथ रहकर..ऐसे भाव भावुक कर जाते हैं...

मनप्रीत सिंह said...

Behtreen...Bahut badiya

Rewa Tibrewal said...

truth of todays world......bahut umda likha hai........

Monika Jain said...

very touchy

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