रात गहरी और काली
मेरे राहों की तरह
कहीं कुछ सूझता ही नही ।
इस शहर में मौत का तांडव
कब हो जायेगा
कोई जानता ही नही ।
हम निकम्मे, बेईमान
किस को हम दोषी कहें
सब हमारा ही किया धरा ।
जिस जनता की रगों में
खून बहता ही नही
उसका जीना मरना क्या ।
छटपटाती जिंदगी
और बेरहम ये मौत भी
आज शरमिंदा है ।
मोटी चमडी, काले चश्मे
उजले लिबास, काली करतूतें
हमारे नेता हैं ये ।
Tuesday, July 19, 2011
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3 comments:
bahut khoob .....maujooda daastaan ko byaan karti ye rachna.
हम निकम्मे, बेईमान
किस को हम दोषी कहें
सब हमारा ही किया धरा ।
जिस जनता की रगों में
खून बहता ही नही
उसका जीना मरना क्या ।
सच्चाई कहती अच्छी प्रस्तुति
हम निकम्मे, बेईमान
किस को हम दोषी कहें
सब हमारा ही किया धरा ।
बहुत सही लिखा है आपने
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