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Friday, May 8, 2009

सिसकते अरमान फीकी मुस्कान

नारी क्या है...... जो जन्म लेते ही घर परिवार की इज्जत और आबरूह हो जाती है..... जिसके कदम चलना भी नहीं सिखते............... और पांव में मर्यादा की बेड़िया डाल जाती है............. खुद की पहचान खोजती वो हर शख्स से यही सवाल करती है................ मैं कौन हूं................. जवाब तो मिला जरूर मिला.............. लेकिन उसमें भी उसका अस्तित्व................. किसी की परछाई के तले जबी हुई नजर आती है........... वो खुद की तलाश करती हुई परिवार की मर्यादा का बोझ ढोती हुयी॥ यौवन में प्रवेश कर जाती है.............. उसके ख्वाब आसमान की ऊचाइयों को छूने लगते है............ उसके अंदर भी प्यार के अंकुर फूटने लगते है॥ लेकिन वो अहसास कड़वी हकिकत के सामने छोटी नजर आती है............. हर पल दिल में सिर्फ यही ख्याल........... उसके कमजोर कंधो पर है................ किसी के परिवार की लाज................... वो दिल ही दिल में कसमसा जाती है................ उसका दिल उससे लाखों सवाल पूछता है............. लेकिन जवाब फिर से वहीं होता है……........... वो कौन है................... वो क्यों अपने अरमानों को पंख दे............ वो किसके लिए जिए................ इन्हीं सवालों के साथ वो अपनी उम्र की उस दहलीज पर आ जाती है॥ जहां उसे भी किसी की जरूरत होती है .......... जीवन साथी तो मिलता है........... साथ चलने की कसमें भी खाता है............. लेकिन ये क्या............. यहां भी नारी इच्छाओं का बोझ ढोती नजर आती है........... हर कदम के साथ टूटते है वो हसीन सपने.............. जिनको दिल में सजोएं वो ऊम्र की इस दहलीज पर आती है............. फीकी मुस्कान के पीछे सिसकते वो सपने हर पल करते है यहीं सवाल............... क्यों नहीं है तेरी जिंदगी का कोई अरमान................. क्यों दिल में धधकती आग पर फैला रखा है फिकी मुस्कान................ सोचती हूं खोजूं इन सब सवालों के जवाब................... दूर कहीं चली जाऊं इन रिश्तों के बोझ से.............. लेकिन ऐसा हो न सका................... बंध गए है मेरी पांव में ऐसी बेड़िया................. जो बन गए है मेरी पहचान..................... जिनके बिना एक कदम भी चलना हो जाएगा नाकाम............... कुछ ऐसे सिसकते सवालों के साथ नारी दुनियां से दूर चली जाती है................. और मर्यादाओं की बेडि़या किसी और को सौंप जाती है.................... लेकिन ये सवाल आज अपनी सिसकियों से बहुतों को रात भर जगाती है................ कभी कहीं तो इनके मिलेंगे जवाब..हम ना सही कोई औऱ सही.. जिएगा अपनी जिंदगी अपने शर्तों पर...वो अपने पंख फैला उड़ जाएगी आसमान की उस ऊचाई पर जहां सूरज भी अपनी गर्मी से तपता हुआ पानी की तलाश करता है... बहुत कुछ लिखना चाहती हूं अपने दिल के हर सवाल को खोजना चाहती हूं पर ऐसा हो नहीं पाता ना मालूम कब दिल में उठने वाले लाखों सवालों के जवाब मिलेंगे.. ना जाने कब दिल के अहसास महसूस होंगे... ना जाने कब???????????????????????

3 comments:

jamos jhalla said...

ablaa jeevan hai tumhaaree yehi kahaanee |
aanchal mai hai doodh aur aankho mai paanee||

मीनाक्षी said...

मैं कौन हूँ... नारी सवाल करती है लेकिन उसे पता नही कि जवाब भी वही दे सकती है...जब वह खुद अपने आप को सबल मानेगी तभी जान पाएगी कि एक नारी के बल पर ही परिवार फलता फूलता है..

tulika singh said...

jamos जी आपने तो इस कविता का सार ही बदल कर रख दिया.....ये आक्रोश है नारी के अंदर का...और अगर नारी सिर्फ अपने दिल की बात सुनने लगे तो..इस दुनियां में सब कुछ बदल जाएगा.. फिर कोई ना होगा ये कहने वाला कि अबला जीवन है तुन्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी... कृपया नारी को under estemiate करने से पहले खुद एक बार जरूर सोचना चाहिए कि आपके अस्तित्व का निर्माण करने वाली भी एक नारी है.....

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